06 अगस्त, 2011

आत्मा अमर है



शरीर नश्वर है ....
लोगों की छोड़ो ....तुम भी कहते हो
और स्वयं कृष्ण ने कहा है -
आत्मा अमर है !

मैं इसकी सत्यता को महसूस करना चाहती हूँ
पर सत्य की तलाश में
मुझे खाली सा लगता है
दूर दूर तक सब बेमानी नज़र आता है !
......
क्यूँ ?
क्योंकि हर बार
मैंने अपनी आत्मा को विलीन होते देखा है
खाली डब्बे सा शरीर को चलते देखा है
जाने कब आत्मा लौटे
इस प्रतीक्षा में सांस रोके
उसकी आहटों पर ध्यान लगाए रक्खा है

...... कोई आहट सुनाई नहीं देती !
दम घुटने का एहसास होता है
तब थोड़ा सुगबुगाती हूँ -
' ओह... काफी देर से साँसें ही नहीं लीं '
एक विराम के बाद साँस लेते
उसकी रफ़्तार अजीब सी होती है
और लगता है - तबीयत ठीक नहीं !
...
इसी उहापोह में कल रात
मैंने कृष्ण का हाथ थाम लिया
.... 'भावहीन , सपाट चेहरा '
अकस्मात् अपने प्रश्नों से बाहर मैंने पूछा
'क्या हुआ कृष्ण'
...
भावशून्य आँखों से कृष्ण देखते रहे
और शब्द आंसू बन मेरी आँखों से
उत्तर बन छलकते गए -
' तो तुम भी आत्मा से विलग हो
खाली शरीर लिए
तुम आत्मा को अमर कहते रहे
मेरी तरह उसकी प्रतीक्षा में चलते रहे
और एक आशीर्वचन का विश्वास देते रहे
कि आत्मा अमर है '
है न कृष्ण ?'

38 टिप्‍पणियां:

  1. क्या लिखूं कुछ सूझ ही नहीं रहा.....
    कृष्ण की व्यथा.....या अपनी
    दोनों ही एक-जैसे , एक-से बिन आत्मा के ....... है ना
    आत्मा अमर है
    पर जीते-जी कैसी और किसकी अमरता
    औ मरने के बाद
    कौन किससे मिल पाया है भला

    इससे ज्यादा कुछ और नहीं कह सकती आपकी इस रचना के लिए
    भावों का समंदर जो ना जाने क्या कुछ सोचने पर मजबूर करता है
    गज़ब ...........

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  2. मेरी तरह उसकी प्रतीक्षा में चलते रहे
    और एक आशीर्वचन का विश्वास देते रहे
    कि आत्मा अमर है '
    है न कृष्ण ?'

    गंभीर अभिव्यक्ति जो दिल को छू गई .

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  3. बहुत सुन्दर...पर यह सच है कि आत्मा अमर है! 'कृष्ण' पर न विश्वास हो तो ‘कांट’ को पढ़ लें

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  4. शरीर नश्वर है ....
    लोगों की छोड़ो ....तुम भी कहते हो
    और स्वयं कृष्ण ने कहा है
    आत्मा अमर है !
    सत्य को बड़ी गम्भीरता से कहा है आपने इस रचना के माध्यम से.....बहुत सुंदर।

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  5. ' तो तुम भी आत्मा से विलग हो
    खाली शरीर लिए
    तुम आत्मा को अमर कहते रहे
    मेरी तरह उसकी प्रतीक्षा में चलते रहे
    और एक आशीर्वचन का विश्वास देते रहे
    कि आत्मा अमर है '
    है न कृष्ण ?'
    शरीर की नश्वरता और आत्‍मा के अमरत्‍व का सत्‍य कहती यह अभिव्‍यक्ति नि:सन्‍देह वैसे ही हो जाती है कभी-कभी जैसा आपने कहा .. भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।

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  6. एक अलग ही सोच को परिलक्षित करती रचना।

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  7. नित शरीर जीतता है, आत्मा रोती है।

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  8. भगवान श्री कृष्ण और उनकी 'आत्मा' ने लोक कल्याण के लिए अलगाव को स्वीकारा.....
    लेकिन वर्तमान में हम क्यूँ अपनी आत्मा से विमुख हो बैठे हैं ? ....संभवतः अनुत्तरित रहना ही इस प्रश्न की नियति है...
    गहन चिंतन का आमंत्रण है आपकी रचना...
    सादर...

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  9. तुम आत्मा को अमर कहते रहे
    मेरी तरह उसकी प्रतीक्षा में चलते रहे
    और एक आशीर्वचन का विश्वास देते रहे
    कि आत्मा अमर है '
    है न कृष्ण ?'

    आत्मा पर कुछ भी लिखना मानव के वश में कहाँ है ? जो महसूस होता है वही सत्य लगता है .. सोचने पर विवश करती अच्छी प्रस्तुति ..

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  10. गहन अनुभूति लिए सुन्दर रचना....आभार..

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  11. aaj ke yug men krishna bhi asahay ho jaayenge. vivash to ve tab bhi the jab kkaurav aatmavihin ho anyaay kar rahe the. atma ke rahate koi aisa kar hi nahin sakata hai.
    achchha ahsaas kiya aur phir karvaya.

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  12. chintan aur marm main dubi rachnaa

    man ki vyatha ko sujha nahi paa rahe kuch aise sawal jo sirf sawal banke hi rah
    jayeinge ...

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  13. फिर कृष्ण ने क्या कहा रश्मि जी ?

    वह 'मैं' ही है - यदि 'मैं' निःशब्द हो, तो वह भी निःशब्द रह जाएगा शायद ...

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  14. कृष्ण केंद्र बिंदु हैं, जीवन आधार हैं ।

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  15. इतनी गंभीर कविता पर शरद जोशी का व्यंग्य याद आ रहा है ...वे कहते हैं कि हम भारतीय इसलिए पिछड़ते हैं कि हमारा शरीर धीरे भाग रहा होता है , मगर हमारी आत्मा हमसे आगे भागती है !
    कृष्ण का जवाब भी लिख दें तो दुविधा दूर हो जाए !

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  16. मैंने अपनी आत्मा को विलीन होते देखा है
    खाली डब्बे सा शरीर को चलते देखा है
    जाने कब आत्मा लौटे
    इस प्रतीक्षा में सांस रोके
    उसकी आहटों पर ध्यान लगाए रक्खा है
    ....गहन अनुभूति

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  17. नैनं छिन्दन्ति शास्त्राणि नैनं दहति पावकः , ना चैनं क्लेदयन्ति आपो नैनं शोषयति मारुतः

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  18. satya ko shunya ki tarah dekhe to sab khali khali hi dikhega shnya ko sampurn ta me dekhe ......khali bhi vahi hai purn bhi vahi hai dekhneka hamara andaj alag hai bas..........bahut sunder vichar...

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  19. तुम आत्मा को अमर कहते रहे
    मेरी तरह उसकी प्रतीक्षा में चलते रहे.

    गंभीर चिंतन.

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  20. कुछ सवाल जिनके जवाब को हम सभी खोज रहे है... एक गहन अभिवयक्ति आपकी रचना....

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  21. भावहीन कृष्ण की कल्पना...मुश्किल है...कहीं कृष्ण की आत्मा तो नहीं मिल गई...ये विश्वास दिलाने की आत्मा अमर है...और अमर व्यक्ति सुखी हो सकता है क्या...

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  22. दी , मन अपनी ही उलझनों में व्याकुल था ... आज आपको पढ़ कर कुछ और भी उलझ गया है (

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  23. अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !

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  24. बहुत अद्भुत रचना, कई तरह के भाव मन में उपज रहे हैं. जानते हुए की शरीर नश्वर है और आत्मा अमर, फिर भी छटपटाहट, कैसी तलाश, कैसा भटकाव? बहुत गहरे में सोचने को विवश करती रचना, बधाई.

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  25. Vartman esthityon mein sharir aur aatma ka bahut hi gahan saargarvit yatharthparak vishleshan ke liye aabhar!

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  26. मेरी तरह उसकी प्रतीक्षा में चलते रहे
    और एक आशीर्वचन का विश्वास देते रहे
    कि आत्मा अमर है '
    है न कृष्ण ?


    kitne gahre bhaav hain kavita ke....

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