30 अगस्त, 2011

मुमकिन है क्या ?



राजा भागीरथ की 5500 वर्षों की तपस्या ने
मुझे पृथ्वी पर आने को विवश किया
मेरे उद्दात वेग को शिव ने अपनी जटा में लिया
और मैं गंगा
पृथ्वी पर पाप के विनाश के लिए
आत्मा की तृप्ति के लिए
तर्पण अर्पण की परम्परा लिए उतरी ...

पृथ्वी पर पाप का वीभत्स रूप
शनैः शनैः बढ़ता गया ...
किसी की हत्या , किसी की बर्बादी
आम बात हो गई
स्व के नकारात्मक मद में डूबा इन्सान
हैवान हो उठा !
जघन्य अपराध करके
वह दुर्गा काली की आराधना करता है
खंजर पर
गलत मनसूबों की ललाट पर
देवी देवता के चरणों को छू
विजय तिलक लगाता है
लाशों की बोरियां मुझमें समाहित करता है ...
मेरे सूखते ह्रदय ने
हैवान बने इन्सान को
घुटे स्वर में कई बार पुकारा ...
पर बड़ी बेरहमी से वह मेरी गोद में
लाशें बिछाता गया ......

अति की कगार पर मैंने हर देवालय को
खाली होते देखा है
अब मैं - गंगा
फिर से शिव जटा में समाहित हो
भागीरथ के तप से मुक्त होना चाहती हूँ
क्योंकि इस दर्द से मुक्त करने में
भागीरथ भी अवश शिथिल हैं
उनके तप में मुझे लाने की शक्ति थी
पर घोर नारकीय तांडव के आगे तपस्या
......
अपने अपने दिल पर हाथ रखकर कहो
मुमकिन है क्या ?

49 टिप्‍पणियां:

  1. नए बिम्ब को लेकर रची गई है कविता... बहुत सुन्दर...

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  2. मेरे सूखते ह्रदय ने
    हैवान बने इन्सान को
    घुटे स्वर में कई बार पुकारा ...
    पर बड़ी बेरहमी से वह मेरी गोद में
    लाशें बिछाता गया ......बहुत सुन्दर भावमयी सार्थक रचना..आभार

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  3. सच को उजागर करती बहुत सारगर्भित प्रस्तुति..आभार

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  4. आपने माँ गंगा के दर्द को सही आवाज़ दिया है .कोई सुने तब न.

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  5. अब मैं - गंगा
    फिर से शिव जटा में समाहित हो
    भागीरथ के तप से मुक्त होना चाहती हूँ
    क्योंकि इस दर्द से मुक्त करने में
    भागीरथ भी अवश शिथिल हैं...
    जैसे गंगा का दर्द शब्दों में ढल गया हो... पापनाशिनी को भी दूषित कर दिया हम इंसानों ने... मार्मिक अभिव्यक्ति

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  6. मुझे बार बार गंगा बहती हो क्यूँ सुनने का मन करता है।

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  7. गंगा का दर्द उतर आया है आपकी रचना में ..विचारणीय अभिव्यक्ति

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  8. आज मानव जिस मोड पर पहुंच गया है... गंगा ही क्या पूरी धरती उससे मुक्त होना चाहती है..बढता हुआ प्रदूषण आकाश को भी स्वच्छ व निर्मल नहीं रहने दे रहा है... मुमकिन तो इसे अब प्रकृति स्वयं ही करेगी...

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  9. मेरे सूखते ह्रदय ने
    हैवान बने इन्सान को
    घुटे स्वर में कई बार पुकारा ...
    पर बड़ी बेरहमी से वह मेरी गोद में
    लाशें बिछाता गया ......
    सत्‍य कहती लेखनी आपकी ...आभार ।

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  10. आदरणीया रश्मि जी बहुत ही सुंदर कविता बधाई

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  11. आदरणीया रश्मि जी बहुत ही सुंदर कविता बधाई

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  12. हर शब्‍द सटीक एवं सार्थक....भावमयी रचना।

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  13. mai jab bhi aapki koi prastuti padhti hu, mere samne ak picture si chalne lagti hai kyuki aapke lekh or kavitaye sachai ko darshati hai

    boht sunder prastuti hai

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  14. माँ गंगा के दर्द को बखूबी उजागर किया है।

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  15. गंगा की पुकार सोचने को बाध्य करती है...अप्रतिम रचना
    नीरज

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  16. अपने अपने दिल पर हाथ रखकर कहो
    मुमकिन है क्या ?
    hriday vidarak rachna......uspar shabdon ka sunder santulan....aur kya kahoon....

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  17. गंगा की पीड़ा अगर हमारे आँखों में अश्रुजल लाने में कामयाब नहीं है तो हम शायद निर्जीव ही है .

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  18. pranam !
    ek aadyatmak vishay ko sunder kaavya me rach aur nikhaar diyaa , sadhuwad
    sadar

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  19. काश गंगा इस बार पाप नहीं पापियों को बहा कर ले जाय ...

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  20. गंगा का दर्द अपने बहुत ही सुंदर ढंग से व्यक्त किया हैं ..बधाई !
    काफी दिनों बाद आना हुआ ? पहले pc खराब फिर नेट खराब ! pcको फार्मेट करने से कई प्राब्लम आ गई ...अब थोडा ठीक हैं ...

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  21. अति की कगार पर मैंने हर देवालय को
    खाली होते देखा है
    अब मैं - गंगा
    फिर से शिव जटा में समाहित हो
    भागीरथ के तप से मुक्त होना चाहती हूँ

    Aabhar....

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  22. गंगा मां के दर्द को वो नहीं समझते जिन्हें समझना चाहिए ।
    अच्छा अहसास दिलाया है ।

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  23. अपने अपने दिल पर हाथ रखकर कहो
    मुमकिन है क्या ?

    शायद नहीं, भागीरथी प्रयास करना किसी के बस में नहीं

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  24. अपने अपने दिल पर हाथ रखकर कहो
    मुमकिन है क्या ?

    शायद नहीं, भागीरथी प्रयास करना किसी के बस में नहीं

    जवाब देंहटाएं
  25. मेरे सूखते ह्रदय ने
    हैवान बने इन्सान को
    घुटे स्वर में कई बार पुकारा ...
    पर बड़ी बेरहमी से वह मेरी गोद में
    लाशें बिछाता गया ......

    आद दी, गंगा की पीड़ा ही प्रवाहित हो रही है आपकी लेखनी से...
    सादर....

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  26. माँ गंगा के दर्द से भरी, सत्य को उजागर करती सारगर्भित एवं विचारनिए रचना... बहुत खूब...कभी मेरी पोस्ट पर आकार भी मुझे अपने महत्वपूर्ण विचारों से अनुग्रहित करें आपकी रचनायें मुझे बहुत पसंद आती हैं ....लिखती रहिये... शुभकामनायें

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  27. बेहद सुंदर प्रस्तुति,


    एक चीज और, मुझे कुछ धर्मिक किताबें यूनीकोड में चाहिये, क्या कोई वेबसाइट आप बता पायेंगें,
    आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  28. उच्च वैचारिक धरातल पर जन्मी आपकी रचना ने न केवल गंगा की पीड़ा को शब्द दिये हैं बल्कि हर पाठक को गम्भीरता और गहराई से सोचने के लिये विवश कर दिया है.असाधारण....

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  29. मेरे सूखते ह्रदय ने
    हैवान बने इन्सान को
    घुटे स्वर में कई बार पुकारा ...
    पर बड़ी बेरहमी से वह मेरी गोद में
    लाशें बिछाता गया ......
    शब्दों ने कैसा भीषण वातावरण रच दिया ,हर एक शब्द जैसे गंगा की सिसकी !

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  30. जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
    दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
    ईद मुबारक

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  31. जब जब भागीरथ चाहे गंगा को आना पड़ता है
    नाहासिल, नामुमकिन है क्या? एक दफा जो ठान लिया

    मुश्किल तो है, पर नामुमकिन नहीं| बस एक और भागीरथ की आवश्यकता है

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  32. बहुत सुन्दर सार्थक रचना....

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  33. अगर गंगा की बात प्रभु ने सुन ली और वो वापस चली गई फिर पाप कहाँ धोएँगे हम अपने। दरअसल उसकी एक धारा हमारे भीतर होनी चाहिए जो हम आज तक भीतर ला न स,के कहीं ऐसा न हो कि देर हो जाए।

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  34. भागीरथ के तप से मुक्त होना चाहती हूँ
    क्योंकि इस दर्द से मुक्त करने में
    भागीरथ भी अवश शिथिल हैं
    उनके तप में मुझे लाने की शक्ति थी
    पर घोर नारकीय तांडव के आगे तपस्या
    sach kaha ab ganga aese hi sochti hogi .
    sunder abhivyakti
    rachana

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  35. अब मैं - गंगा
    फिर से शिव जटा में समाहित हो
    भागीरथ के तप से मुक्त होना चाहती हूँ

    गंगा की पीड़ा को सार्थक शब्द मिले हैं .....

    रश्मि जी आपको भी बधाई
    आपका नाम भी तो शुमार है वहाँ .....

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  36. bahut hi badiya sajeev chitrakan... Ganesh chaturthi kee haardik shubhkamnayen..

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  37. अपने अपने दिल पर हाथ रखकर कहो
    मुमकिन है क्या ?

    प्रश्न सार्थक है .....उत्तर अपेक्षित. अच्छे विम्ब को लेकर लिखी गयी इस वैचारिक रचना को प्रस्तुत करने का आभार !!!

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  38. हमारा जो गंगा मैया के प्रति बर्बरता पूर्ण रवैया है इससे लगता है की कुछ भी मुमकिन है.

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  39. क्योंकि इस दर्द से मुक्त करने में
    भागीरथ भी अवश शिथिल हैं

    गंगा की पीड़ा को किस खूबसूरती से व्यक्त किया है आपने ...सच में अन्याय सहना आसान नहीं है ...

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  40. दूसरों के पाप तारने वाली नदी का दर्द शायद ही भागीरथ की संतानें समझ पाएं...

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  41. सच कहा है ... आज भागीरथ शिथिल है ... तपस्या में कहीं कमी है ..

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