07 जनवरी, 2012

जाओ यहाँ से ....



मत करो कोई प्रश्न मुझसे
जवाब बनाते बनाते
खुद को जांबांज दिखाते दिखाते
मैं एक खाली कमरे सी हो गई हूँ !
संजोये हौसले
मंद बयारें
और मासूम मुस्कुराहटें
मैं लुटाती गई
और तुम सब पूछते गए
ये कहाँ से ? ये कहाँ से ?
और मैं झूठे नाम गिनाती गई
हटो यहाँ से -
इन सबों की स्वामिनी मैं खुद हूँ
अगर कभी कोई नाम लिया
तो उसे भी अपनी सोच से धरोहर बनाया
धरोहर कुछ था नहीं !
अपने प्रश्नों के उत्तर एक दिन तुम्हें मिलेंगे ज़रूर
कि सबकुछ जानते हुए
तुम अनजान बने रहे
और मेरे आगे एंवे प्रश्न रख
मुझे उलझाते रहे ...
जानती हूँ फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा
.....
खैर ,
मेरे उत्तरदायित्व अभी पूरे नहीं हुए हैं
अपने कमरे को मुझे खजानों से भरना है
हौसले , मंद बयारें और मासूम मुस्कान !
क्योंकि इसके बगैर
मुझसे निकली शाखाएं पनपेंगी नहीं
और मैं इन शाखाओं पर
विश्वास के फल लगे देखना चाहती हूँ
तो ....
प्रश्नों के पिटारे बन्द करो
और जाओ यहाँ से ....

55 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया अभिव्यक्ति..प्रश्नों को भी जाने का आदेश .

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  2. बहुत सुंदर लिखा है आपने यथार्थ के धरातल पर सुलगते सवाल

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  3. अच्छा किया उसे बाहर कर दिया.उससे प्रश्न पूछने का अधिकार छीन भी छीन लो उससे भी और.......किसी से भी.हमसे प्रश्न बस वो करे जो हमारी साँसे हैं हमारी या .......... भगवान से कम नही.औरत को जीना सिखाती है यह दृढ़ता. यह सोच. अपने युद्ध मे अब किसी सारथि की भी जरूरत नही महसूसती मैं. 'वो' देखता है....मुस्कराता है.कहता है .........'इसी दिन की प्रतीक्षा करता था मैं पार्थ ! '
    और....इसीलिए तुम पर लाड आते हैं और दिल मे एक खास जगह है मिन्नी के लिए.जय हो पार्थ तुम्हारी !

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  4. खुद को जांबांज दिखाते दिखाते
    मैं एक खाली कमरे सी हो गई हूँ !
    wah.....kya baat kah din.....

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  5. बहुत भी बढ़िया रचना...
    मेरे उत्तरदायित्व अभी पूरे नहीं हुए हैं
    अपने कमरे को मुझे खजानों से भरना हैमेरे

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  6. प्रश्नों के पिटारे बन्द करो
    और जाओ यहाँ से ....

    सार्थक अभिव्यक्ति...अच्छे-अच्छा काम भी करें और प्रश्नों के जवाब में उसका क्रेडिट किसी और को दे दें...बहुत सुंदर!!

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  7. जहाँ , किन्तु - परन्तु , मैं , मेरा वक़्त ,
    और , स्पष्टीकरण आया ,
    वहाँ प्यार नहीं , तकरार आया ,
    उससे प्रश्न पूछने का अधिकार छीन ,
    उसे बाहर कर दिया ,अच्छा किया ,
    औरत को जीना सिखाती है यह दृढ़ता.... !
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.... !!

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  8. अगर कभी कोई नाम लिया
    तो उसे भी अपनी सोच से धरोहर बनाया

    amazing thought!

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  9. बेहद सुन्दर और सशक्त अभिव्यक्ति।...

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  10. क्योंकि इसके बगैर
    मुझसे निकली शाखाएं पनपेंगी नहीं
    और मैं इन शाखाओं पर
    विश्वास के फल लगे देखना चाहती हूँ

    सशक्त रचना दी... 'विश्वास के फल' बहुत खूब....
    सादर.

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  11. बहुत खूब...प्रश्न हो या उत्तर ...हमसे ही निकलें और हम पर ही खत्म हों. बहुत प्रभावशाली रचना!

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  12. बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...

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  13. मंद बयारें
    और मासूम मुस्कुराहटें
    मैं लुटाती गई
    और तुम सब पूछते गए
    ये कहाँ से ? ये कहाँ से ?
    Ati Sundar !

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  14. मेरे उत्तरदायित्व अभी पूरे नहीं हुए हैं
    अपने कमरे को मुझे खजानों से भरना है

    बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ लगीं आंटी।

    सादर

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  15. बेहतरीन प्रस्तुति !
    आभार !

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  16. मेरे उत्तरदायित्व अभी पूरे नहीं हुए हैं
    अपने कमरे को मुझे खजानों से भरना है
    हौसले , मंद बयारें और मासूम मुस्कान !
    क्योंकि इसके बगैर
    मुझसे निकली शाखाएं पनपेंगी नहीं

    अपनी शाखाओं में विश्वास भरने का बेहतरीन प्रयास ...

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  17. सुन्दर प्रस्तुति.....
    इंडिया दर्पण की ओर से नववर्ष की शुभकामनाएँ।
    http://indiadarpan.blogspot.com

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  18. रश्मि जी एक बार फिर आपकी कलम ने अपना लोहा मनवाया है...कमाल की रचना...बधाई...

    नीरज

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  19. रश्मि जी एक बार फिर आपकी कलम ने अपना लोहा मनवाया है...कमाल की रचना...बधाई...

    नीरज

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  20. सुन्दर भाव..... प्रश्न खड़े करती रचना और बखूबी उत्तर भी देती है तन कर प्रतिउत्तर बधाई

    जवाब देंहटाएं
  21. और मैं झूठे नाम गिनाती गई
    हटो यहाँ से -
    इन सबों की स्वामिनी मैं खुद हूँ
    अगर कभी कोई नाम लिया
    तो उसे भी अपनी सोच से धरोहर बनाया

    बहुत सुन्दर रश्मि जी...
    लाजवाब.
    सादर.

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  22. सुन्दर भाव..... प्रश्न खड़े करती रचना और बखूबी उत्तर भी देती है तन कर प्रतिउत्तर बधाई

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  23. सुन्दर भाव..... प्रश्न खड़े करती रचना और बखूबी उत्तर भी देती है तन कर प्रतिउत्तर बधाई

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  24. औरों के बताये चरित्र निभाते निभाते अपना जीवन भी जी लें हम

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  25. रश्मि जी नमस्कार, नारी जीवन के यथार्थ प्रश्नो को अभिव्यक्ति दी हैं नव वर्ष की शुभकामना।

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  26. mere aage prashan rakh
    mujhe uljhate rahe........
    prashno ka pitare band karo aur jao yahan se
    SUNDAR BHAVPURNA RACHNA

    aUR AB KYA KAHOO ES SE AAGE

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  27. और मैं इन शाखाओं पर
    विश्वास के फल लगे देखना चाहती हूँ
    विश्वास हो गया कि विशवास के फल लगेंगे ही ...

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  28. मेरे उत्तरदायित्व अभी पूरे नहीं हुए हैं
    अपने कमरे को मुझे खजानों से भरना है
    हौसले , मंद बयारें और मासूम मुस्कान !
    क्योंकि इसके बगैर
    मुझसे निकली शाखाएं पनपेंगी नहीं
    और मैं इन शाखाओं पर
    विश्वास के फल लगे देखना चाहती हूँ

    सच ही तो कहा है , विश्वास से ही तो सारे काम संभव होते हें और सारी आशाएं और दायित्व पूरे होते हें.

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  29. कभी कभी यह भी जरुरी हो जाता है.

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  30. सशक्त एवं सार्थक अभिव्यक्ति।
    नारी की द्दढ़ इच्छा शक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  31. सशक्त एवं सार्थक अभिव्यक्ति।
    नारी की द्दढ़ इच्छा शक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  32. सशक्त एवं सार्थक अभिव्यक्ति।
    नारी की द्दढ़ इच्छा शक्ति।

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  33. मुझसे निकली शाखाएं पनपेंगी नहीं
    और मैं इन शाखाओं पर
    विश्वास के फल लगे देखना चाहती हूँ
    bahut sundar rachna ......

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  34. अपने कमरे को मुझे खजानों से भरना है
    हौसले , मंद बयारें और मासूम मुस्कान !

    सच है प्रश्न उलझाते हैं और विश्वास के फल नहीं खिलने देते !
    सुंदर अभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं
  35. "अपने कमरे को मुझे खजानों से भरना है
    हौसले , मंद बयारें और मासूम मुस्कान !
    क्योंकि इसके बगैर
    मुझसे निकली शाखाएं पनपेंगी नहीं
    और मैं इन शाखाओं पर
    विश्वास के फल लगे देखना चाहती हूँ
    तो ....
    प्रश्नों के पिटारे बन्द करो
    और जाओ यहाँ से ...."

    अत्यंत सुंदर भाव और प्रवाहमयी प्रस्तुति कुछ और पढने की चाह ही रचना की सफ़लता है।
    बधाई !

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  36. जानते हुए भी प्रश्न पूछना आदमी के स्वभाव में है।
    हम अपने अंतस् के धरोहर को अच्छी तरह पहचानते हैं।
    अच्छी कविता।

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  37. प्रश्नों के पिटारे बंद करो और जाओ यहां से .सब जानते हुए भी हम प्रश्न पूछते हैं कि हमें वही उत्तर मिले जो हम चाहते हैं ।

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  38. खुद को जांबांज दिखाते दिखाते
    मैं एक खाली कमरे सी हो गई हूँ ! sab kuch kahti ye chand panktiya hai.....

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  39. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.....

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  40. बेहद सशक्त रचना. सवालों की पिटारी सारा जीवन हमें उलझाए रखती है, अच्छा है दूर कर हम जीवन पथ पर अडिग रहें, जो किया मैंने...

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  41. अपने कमरे को मुझे खजानों से भरना है
    हौसले , मंद बयारें और मासूम मुस्कान !

    kya fark padta hai koi prashn poochhta hai to poochhta rahe...kya khud me aatm-vishwas kam hai...sab ko patkani de denge....he na ? fir dar kyu ?

    kyuki....
    जानती हूँ फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा

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  42. खुद को जांबांज दिखाते दिखाते
    मैं एक खाली कमरे सी हो गई हूँ !
    मेरे उत्तरदायित्व अभी पूरे नहीं हुए हैं
    अपने कमरे को मुझे खजानों से भरना है
    हौसले , मंद बयारें और मासूम मुस्कान !
    क्योंकि इसके बगैर
    मुझसे निकली शाखाएं पनपेंगी नहीं
    और मैं इन शाखाओं पर
    विश्वास के फल लगे देखना चाहती हूँ ...

    ज़माने की सख्तियों को जवाब देने में अपनी ऊर्जा क्यों लगाये ...जो शाखाएं लगाई हैं , उनमे विश्वास के फल उगने हैं , हमारी यही प्राथमिकता है !

    जबरदस्त ..

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  43. मेरे उत्तरदायित्व अभी पूरे नहीं हुए हैं
    अपने कमरे को मुझे खजानों से भरना है
    हौसले , मंद बयारें और मासूम मुस्कान !
    क्योंकि इसके बगैर
    मुझसे निकली शाखाएं पनपेंगी नहीं
    और मैं इन शाखाओं पर
    विश्वास के फल लगे देखना चाहती हूँ
    आपकी दृढ़ता मन के साथ-साथ कलम का साथ भी बखूबी निभाती है .. तभी तो ये पंक्तियां जीवंत हो उठी ह‍ैं ...आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिए ।

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  44. सुंदर भावों से सजी सशक्त रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  45. अपने कमरे को मुझे खजानों से भरना है
    हौसले , मंद बयारें और मासूम मुस्कान !
    क्योंकि इसके बगैर
    मुझसे निकली शाखाएं पनपेंगी नहीं
    और मैं इन शाखाओं पर
    विश्वास के फल लगे देखना चाहती हूँ
    तो ....
    प्रश्नों के पिटारे बन्द करो
    और जाओ यहाँ से ....
    ...
    वाह दीदी
    हौसले से भर दिया आपने एकदम से
    सादर नमन आपको !!

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