16 मार्च, 2012

महाजाल कहें या मायाजाल



शब्दों का महाजाल कहें या मायाजाल
फैलता जा रहा है
जकड़ता जा रहा है
अनकहे एहसासों का वक़्त नहीं
अपनी डफली अपना राग है
'हम सही ' बाकी शक के दायरे में
तो स्पर्श का माधुर्य कहाँ और कैसा !
शब्द जब बेमानी नहीं थे
तो वे ही एहसास थे
अब स्व के मद में
शब्दों की पैदावार ही अप्राकृतिक हो चली ...
.....
यहाँ अब संबंधों की आजमायिशें हैं
अहम् है , दिखावा है
तो फिर तबक लगे शब्द
रस टपकते शब्दों का ही व्यापार चल पड़ा है ...
जैसे शब्द , वैसा बाह्य निरूपण
सच !
बोलो न बोलो
मन तो जानता ही है
पर बस मन ही जानता है !
कोई और जान ले तो शब्दों के जाल में लेकर
उसे निरस्त कर देना है
वह भी काम न आए
तो चेहरे की वक्र रेखाएं कहती हैं
' मूर्ख से क्या लगना !'

अब खिड़कियों से मीठी हवाएँ नहीं आतीं
मीठी धूप नहीं उतरती
रिश्ते पैसों पर इतने गहरे हैं
कि एहसास और स्पर्श उपेक्षित हैं
जीने के लिए हर दिन
कुछ शब्द चुराए जाते हैं
चंद मिनटों में लुटाये जाते हैं
और ... फिर तुम वहाँ और हम यहाँ !
.....

53 टिप्‍पणियां:

  1. यही है आज की ज़िन्दगी का कोरा सच कोरे कागज़ सा , कागज़ के फ़ूलों सा गंधहीन्।

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  2. रिश्ते पैसों पर इतने गहरे हैं
    कि एहसास और स्पर्श उपेक्षित हैं
    जीने के लिए हर दिन
    कुछ शब्द चुराए जाते हैं
    बिल्‍कुल सही ..

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  3. रिश्ते पैसों पर इतने गहरे हैं
    कि एहसास और स्पर्श उपेक्षित हैं
    जीने के लिए हर दिन
    कुछ शब्द चुराए जाते हैं
    चंद मिनटों में लुटाये जाते हैं
    और ... फिर तुम वहाँ और हम यहाँ !

    .....बहुत गहन और और सार्थक अभिव्यक्ति...सदैव की तरह एक उत्कृष्ट प्रस्तुति जिसके भाव अंतस को गहराई तक छू जाते हैं..आभार

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  4. इसीलिए तो संत जन कहते हैं...सोचा सोच न होई जो सोचे लख बार...शब्दों के इस जंगल से निकल कर मौन के उपवन में ही शांति है...

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  5. बहुत सुंदर रचना


    अब खिड़कियों से मीठी हवाएँ नहीं आतीं
    मीठी धूप नहीं उतरती
    रिश्ते पैसों पर इतने गहरे हैं
    कि एहसास और स्पर्श उपेक्षित हैं

    क्या कहने, सुंदर भाव

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  6. रिश्ते पैसों पर इतने गहरे हैं
    कि एहसास और स्पर्श उपेक्षित हैं...
    इस भीड़ में से कुछ निस्वार्थ रिश्ते ढूंढ लेना हमारे पूरे जीवन की अमूल्य निधि है !
    सार्थक रचना !

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  7. हमेशा की तरह बहुत गहन और सार्थक अभिव्यक्ति....

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  8. सच !
    बोलो न बोलो
    मन तो जानता ही है
    पर बस मन ही जानता है !
    कोई और जान ले तो शब्दों के जाल में लेकर
    उसे निरस्त कर देना है
    वह भी काम न आए
    तो चेहरे की वक्र रेखाएं कहती हैं
    ' मूर्ख से क्या लगना !'
    बस यही सोच कर ....खामोश हो जाना .....शब्दों को चुराना .......बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....

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  9. भावों के संग्राम में जूझते शब्द।

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  10. कुछ शब्द चुराए जाते हैं
    चंद मिनटों में लुटाये जाते हैं
    और ... फिर तुम वहाँ और हम यहाँ !
    .....एकदम सही

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  11. बिलकुल सही बात कही है दीदी!! ये वास्तव में समबन्धों की आजमाइश का दौर है... सच क्या है और शब्द अपने अर्थ खो चुके हैं!! अहम् ही सबसे बड़ा सच बना बैठा है..
    बहुत ही भावपूर्ण कविता!!

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  12. सच शब्दों का भी व्यापार हो गया है.. संवेदनाएं बेमानी हो गयी है.. बहुत सुन्दर रचना

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  13. रिश्ते पैसों पर इतने गहरे हैं

    काश यही सच हो

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  14. जीने के लिए हर दिन
    कुछ शब्द चुराए जाते हैं
    चंद मिनटों में लुटाये जाते हैं
    और ... फिर तुम वहाँ और हम यहाँ !
    gahen evam saarthak abhivyakti ....

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  15. .vaid@gmail.cबहुत दिल को छू लेने वाली और यथार्थ को शब्द दिए हें अपने , इससे बढ़कर और क्या कहा जा सकता है?

    2012/3/16 sadhana vaid

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  16. अनकहे एहसासों का वक़्त नहीं
    अपनी डफली अपना राग है
    'हम सही ' बाकी शक के दायरे में
    तो स्पर्श का माधुर्य कहाँ और कैसा !

    आज के रिश्तों का सच...सटीक और सार्थक अभिव्यक्ति!

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  17. कितना सच सच लिख देती हैं आप.

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  18. दी हमारी टिप्पणी कहाँ चली गयी???

    हम खुश हुए और स्पाम को जलन हुई.....ये क्या बात है..

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  19. रिश्तों की अहमियत तो अब भी उतनी ही है ।
    बस सोच बदलती जा रही है ।
    सच कहा , पैसा रिश्तों पर हावी हो रहा है ।

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  20. जीने के लिए हर दिन
    कुछ शब्द चुराए जाते हैं
    चंद मिनटों में लुटाये जाते हैं
    और ... फिर तुम वहाँ और हम यहाँ !
    सत्य कहा!

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  21. अब खिड़कियों से मीठी हवाएँ नहीं आतीं
    मीठी धूप नहीं उतरती
    रिश्ते पैसों पर इतने गहरे हैं
    कि एहसास और स्पर्श उपेक्षित हैं
    ..... सच ....आज पैसे के आगे सबकुछ बेमानी सा लगता है..
    सार्थक प्रस्तुति ..

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  22. यहाँ अब संबंधों की आजमायिशें हैं
    अहम् है , दिखावा है
    तो फिर तबक लगे शब्द
    रस टपकते शब्दों का ही व्यापार चल पड़ा है ...
    जैसे शब्द , वैसा बाह्य निरूपण
    bahut hi sundar rachana yathrth chitran ...badhai Rashmi ji.

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  23. बोलो न बोलो
    मन तो जानता ही है
    पर बस मन ही जानता है !
    कोई और जान ले तो शब्दों के जाल में लेकर
    उसे निरस्त कर देना है

    Sach , Bilkul Sach...

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  24. जीने के लिए हर दिन
    कुछ शब्द चुराए जाते हैं
    चंद मिनटों में लुटाये जाते हैं
    और ... फिर तुम वहाँ और हम यहाँ !

    आज पैसा रिश्तों पर हावी हो रहा है.आपने बिलकुल सच कहा,...

    MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...

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  25. शब्द जब बेमानी नहीं थे
    तो वे ही एहसास थे
    अब स्व के मद में
    शब्दों की पैदावार ही अप्राकृतिक हो चली ...

    अब शब्द भी अप्राकृतिक अहसास लिए होते हैं, व्यापार बन गए हैं... गहन भाव ... आभार

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  26. बहुत sharp लिखती हैं आप - बिलकुल सच - सटीक शब्दों में लिखा है |

    agree - a 100 percent |

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  27. सब कुछ कह दिया आपने ....
    शुभकामनायें !

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  28. अब स्व के मद में
    शब्दों की पैदावार ही अप्राकृतिक हो चली
    रिश्ते पैसों पर इतने गहरे हैं
    कि एहसास और स्पर्श उपेक्षित हैं

    गंभीर बात.
    सच, कृत्रिम होती जीवनशैली में अंतर की भावनायें उपेक्षित होती जा रही हैं...

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  29. 'हम सही ' बाकी शक के दायरे में
    "मैं" हम हो गए ...
    "आप" तुम हो गए ...
    बस यहीं सारी गडबड हो गयी?

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  30. जिंदगी की कडवी सच्‍चाई।
    गहरे भाव‍ लिए सुंदर रचना।

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  31. जीने के लिए हर दिन
    कुछ शब्द चुराए जाते हैं
    चंद मिनटों में लुटाये जाते हैं
    और ... फिर तुम वहाँ और हम यहाँ !

    मिठास खो गयी है ... स्व के आगे कुछ नहीं सोचता इंसान ... अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  32. जीवन का सच लिखा है ..
    बहुत संवेदनशील रचना !!

    जवाब देंहटाएं
  33. यहाँ अब संबंधों की आजमाइशें हैं
    अहम् है , दिखावा है
    तो फिर तबक लगे शब्द
    रस टपकते शब्दों का ही व्यापार चल पड़ा है ...
    जैसे शब्द , वैसा बाह्य निरूपण

    यथार्थ..............

    जवाब देंहटाएं
  34. रिश्ते पैसों पर इतने गहरे हैं
    कि एहसास और स्पर्श उपेक्षित हैं
    yahi sachchyee ban gayee.....kitne dukh ki baat hai.

    जवाब देंहटाएं
  35. एक और सच..


    यहाँ अब संबंधों की आजमायिशें हैं
    अहम् है , दिखावा है
    तो फिर तबक लगे शब्द
    रस टपकते शब्दों का ही व्यापार चल पड़ा है..

    आपकी रचनात्मकता सीख देती है..

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  36. सुन्दर पंक्तियों में सुन्दर/कटु सच -- रस टपकते शब्दों का ही व्यापार..

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  37. जीने के लिए हर रोज ... कुछ शब्द चुराए जाते हैं ... सही कहा है झूठ का फैलाव भी इन शब्दों के मायाजाल से ही फैला रहा है ...

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  38. Rashmi ji..

    Man ke kone, main chhipe hain...
    Aaj bhi, ahsaas kuchh..
    Jindgi ras-heen chahe....
    Man main hai, mithas kuchh..

    Duniya beshak, pad, pratishtha..
    Paise ko bas poojti..
    Man ke andar jhanikiye...
    Ho pyaar ka, abhaas kuchh..

    'Swa' main bandhar rah gayi..
    Jo jindgi, us se nikal..
    Door jo bhi, hai gaya...
    Shayad lage wo, paas kuchh..

    Mante beshak, kathin hai...
    Par asambhav, kuchh nahi...
    Pathron main, ug hai sakti..
    Makhmali si, ghas kuchh..

    Aapki kavita sada hi...
    Shabd, rishte, taulti....
    Man ke bhavon ko hamare..
    Karti hai udaas kuchh...

    Hamesha ki tarah...yatharth ka sateek chitran..shabd dar shabd...kavita da kavita...aapki lekhni pathkon ke manomastiksh par chha si jaati hain..

    Aaj kafi din baad punah lauta hun..aur yah meri pahli tippani hai nav-varsh ke baad...

    Shubhkamnaon sahit..

    Deepak Shukla..

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  39. आपकी रचनाये, रचनाये ना होकर सच्चाई है
    गहन अर्थ लिए बहुत ही सुकोमल रचना:-)

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  40. यहाँ अब संबंधों की आजमायिशें हैं....

    एहसास उपेक्षित हैं और इस खालीपन को सब ढो रहे हैं

    जवाब देंहटाएं
  41. भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति.....

    जवाब देंहटाएं
  42. सच !
    बोलो न बोलो
    मन तो जानता ही है
    पर बस मन ही जानता है !
    कोई और जान ले तो शब्दों के जाल में लेकर
    उसे निरस्त कर देना है
    वह भी काम न आए
    तो चेहरे की वक्र रेखाएं कहती हैं
    ' मूर्ख से क्या लगना !' WAH!!!

    जवाब देंहटाएं
  43. यहाँ अब संबंधों की आजमायिशें हैं
    अहम् है , दिखावा है...

    सच तो यही है ...
    शुभकामनायें आपको !

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  44. अब खिड़कियों से मीठी हवाएँ नहीं आतीं
    मीठी धूप नहीं उतरती
    रिश्ते पैसों पर इतने गहरे हैं
    कि एहसास और स्पर्श उपेक्षित हैं

    सचमुच....! बड़ी खूबसूरती और सहजता से सच्चाई को रेखांकित करती रचना दी...
    सादर बधाई.

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  45. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

    हमेशा की तरह उत्कृष्ट रचना...बधाई स्वीकारें...



    नीरज

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  46. 'हम सही ' बाकी शक के दायरे में..

    दो टूक सच कह दिया आपने.... हर कोई बस यही तो सोचता है और इसे ही सच मानता है..

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...