एक गलती
सौ प्यार
प्यार भूलकर
गलती की ताउम्र सज़ा ...
कोई निष्ठुरता से ऐसा न्याय कैसे कर सकता है !
प्यार में तो उस अनुपात से लेन देन नहीं करते
फिर एक गलती में
विशेष शब्द वाणों का
भाव भंगिमाओं का प्रयोग क्यूँ !
राम को कैकेयी ने वनवास भेजा
दशरथ की मृत्यु हो गई
..... पर राम ने कैकेयी की अवहेलना नहीं की
यह सच भी प्रबल है
कि कैकेयी ने राम को बहुत प्यार दिया
बिना किसी भेदभाव के ...
बात सिर्फ क्षणांश की है
क्षणांश के लिए
मति किसकी नहीं मारी जाती
कैकेयी का मन भी असुरक्षित भाव लिए
मंथरा बन बैठा
दशरथ को बचानेवाली कैकेयी
दशरथ का काल बन गई
भरत ने धिक्कारा
पूरी अयोध्या ने धिक्कारा
पर राम ने भरी सभा में उन्हें सम्मान दिया
कौशल्या से पूर्व उनके पांव छुए
......
कौशल्या भी तो हैरान ही थीं
कैकेयी की मांग सुनकर ...
पुत्रवियोग,पतिशोक में होकर भी
उन्होंने कैकेयी के प्रेम को नहीं नकारा
राम ने पहले कैकयी को प्रणाम किया
इसका उन्हें तनिक भी क्लेश नहीं हुआ
....
कान खींचने से
क्षणिक आवेश में माँ के यह कहने से
कि 'मर जा तू'
माँ बुरी नहीं होती
न उसका कहा श्राप होता है
फिर उससे परे स्नेहिल सम्बन्ध
शक के घेरे में कैसे घिर जाते हैं ?!
....
यह प्रश्न विचारणीय है
युवाओं के लिए,
बुजुर्गों के लिए
कि एक क्षण में सारी लकीरों को मटियामेट कर देना
न सही निर्णय है,न उचित संस्कार !
...........
वक़्त का रोना
अकेलेपन का रोना लेकर बैठने से बेहतर है
हम चिंतन करें
आत्मचिंतन में ही रास्ते हैं
और इन्हीं रास्तों में सुकून (कुछ देर के लिए ही सही)