ज़िन्दगी से हार कैसी !
वह तो सारे प्रश्नों के हल
जीने के सारे तरीके
पहले ही बता देती है ... !!!
जन्म के साथ रुदन ना हो
माँ को मृत्यु की चौखट ना दिखे
फिर बच्चे की रुलाई में
संजीवनी का एहसास मुमकिन नहीं
संजीवनी के बिना
जीवन का आरम्भ ही नहीं !
जीने के लिए
मारना,पीटना,
काटना,कटना,
छिलके उतारना,
धोना, पिसना
अंगारों पर चढ़ना
मूल मंत्र है ....
जीवन पेट की भूख है
भूख को शांत करो
तो ही जीवन है
और खाने के लिए
अनाज,फल .... सबको
एक प्रक्रिया से गुजरनी पड़ती है
कहाँ आंच तेज होनी चाहिए
कहाँ कम -
ध्यान रखना पड़ता है ...
खाने का स्वाद हम तय कर लेते हैं
तो हमारे लिए
ईश्वर,माता-पिता,गुरु,समयचक्र
...इसे तय करते हैं
छालों से यदि डर गए
थक गए
खून देखकर सहम गए
तो हम क्या अर्थ पाएंगे !
जीवन का एक सुनियोजित अर्थ है
जिसे पाने के लिए
सम्बन्ध जुड़ते हैं
तो टूटते भी हैं
जन्म लेते हैं तो मरते भी हैं ...
भ्रष्टाचार से पैसे पाना आसान है
पर नाम वही अर्थ पाते हैं
क़दमों के निशाँ वही अनुकरणीय होते हैं
जो खुद को साधते हैं
तपते हैं ....
तर्कसंगत विद्वता की बातें
जितनी भी कर लें हम
पर इस सच से इन्कार कौन करेगा
कि हम अपने बच्चों के नाम में
इन्हीं कर्मों से एहतियात बरतते हैं
राम,सीता,एकलव्य,कर्ण,कल्याणी,. ...
जैसे नाम रखते हैं
रावण ,शूर्पनखा ... जैसे नाम नहीं
आग लगाना,
अंगारों पर चलना
दो उपक्रम हैं
... अंगारों पर चलना प्रभु का आशीष है
ये ही बात आज तक नहीं समझी हूँ की जीवन सिर्फ अंगारों से ही क्यों गुज़रता है ?????
जवाब देंहटाएंसीधा और सरल जीवन एक भी इंसान को नसीब क्यों नहीं है ?
जीने के लिए अंगारों पर चलना ही पड़ता है. सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंजीवन का एक सुनियोजित अर्थ है
जवाब देंहटाएंजिसे पाने के लिए
सम्बन्ध जुड़ते हैं
तो टूटते भी हैं
जन्म लेते हैं तो मरते भी हैं ...
....बहुत उत्कृष्ट पंक्तियाँ...विचारणीय गहन जीवन दर्शन...बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंआग लगाना,
अंगारों पर चलना
दो उपक्रम हैं
... अंगारों पर चलना प्रभु का आशीष है !!
मान लेती हूँ !!
नहीं मानने से हौसले का तेल खत्म हो जायेगा मिटटी के शरीर से ...
जवाब देंहटाएंजीवन का एक सुनियोजित अर्थ है
जवाब देंहटाएंजिसे पाने के लिए
सम्बन्ध जुड़ते हैं
तो टूटते भी हैं
जन्म लेते हैं तो मरते भी हैं ...
बेहद गहन भाव हर शब्द सार्थकता लिए सशक्त अभिव्यक्ति
सादर
जन्म के साथ रुदन ना हो
जवाब देंहटाएंमाँ को मृत्यु की चौखट ना दिखे
फिर बच्चे की रुलाई में
संजीवनी का एहसास मुमकिन नहीं
सटीक .... अंगारे मिलें या ओस सब प्रभु का ही आशीष है
बहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंआग लगानेवालों को दुनिया याद नहीं रखती ..
अंगारो पर चलने वालों को रखती है
जीवन का एक सुनियोजित अर्थ है
जवाब देंहटाएंजिसे पाने के लिए
सम्बन्ध जुड़ते हैं
तो टूटते भी हैं
जन्म लेते हैं तो मरते भी हैं ...
जीवन दर्शन का ज्ञान देती उत्कृष्ट रचना,,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
ये आशीष तो सब पर बरसता है पर कोई-कोई ही अंगारों पर चलता है..
जवाब देंहटाएंजीवन की सही परिभाषा.. ये अंगारे न हों तो हमें फूलों का कोमल एहसास ही न हो!! दार्शनिक कविता!! हमेशा की तरह!!
जवाब देंहटाएंसच है जीवन रुपी सोने को खरा और सुन्दर आभायुक्त बनाना है तो उसे संघर्ष की आग में तपाना ही होगा, जन्म के साथ रुदन ही उसका आरम्भ है... बहुत सुन्दर भाव... आभार
जवाब देंहटाएंअंगारों पर चलना प्रभु का आशीष है
जवाब देंहटाएं..सच कहा आपने ..प्रभु का आशीष हो तो फिर अंगारों की राह भी सरल बन पड़ती हैं ....
काश के सब आसान होता....
जवाब देंहटाएंफूलों पर चलना ही जीवन होता...
सादर
अनु
'जीवन का एक सुनियोजित अर्थ है'
जवाब देंहटाएंऔर शायद इसी अर्थ की तलाश में भटक रहा है जीवन
जीवन की गहन परिभाषा..निशब्द कर दिया रश्मि जी आप ने तो..
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने .....
जवाब देंहटाएंबढिया रचना
जवाब देंहटाएंनमन आपकी सृजनात्मकता को !
जवाब देंहटाएंजीवन का एक सुनियोजित अर्थ है
जवाब देंहटाएंजिसे पाने के लिए
सम्बन्ध जुड़ते हैं
तो टूटते भी हैं
जन्म लेते हैं तो मरते भी हैं ...
सब कुछ समझातीं पंक्तियाँ
तपने के बाद ही सोना और निखार पाता है।
जवाब देंहटाएं"जीवन का एक सुनियोजित अर्थ है
जवाब देंहटाएंजिसे पाने के लिए
सम्बन्ध जुड़ते हैं
तो टूटते भी हैं
जन्म लेते हैं तो मरते भी हैं ..."
इन पंक्तियों ने सीधे दिल को छू लिया ...
शायद जीवन की तलाश कुछ ऐसी ही है ..
सादर
मधुरेश
सब उसका दिया मान लेने से तकलीफ कम हो जाती है !
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी के फलसफा .....जितना समझो ..उतना गहन होता जाता है ...और मन है की जब सोचने पर आता है .....तो उसको साधना मुश्किल हो जाता है .......:))))
जवाब देंहटाएंजन्म के साथ रुदन ना हो
जवाब देंहटाएंमाँ को मृत्यु की चौखट ना दिखे
फिर बच्चे की रुलाई में
संजीवनी का एहसास मुमकिन नहीं
संजीवनी के बिना
जीवन का आरम्भ ही नहीं !
pate ki bat ......
ध्येय जीवन का नियत करना स्वयं..
जवाब देंहटाएंजीवन का एक सुनियोजित अर्थ है
जवाब देंहटाएंजिसे पाने के लिए
सम्बन्ध जुड़ते हैं
तो टूटते भी हैं
जन्म लेते हैं तो मरते भी हैं ...
जीवन को समझना भी आसान नहीं.
आग लगाना,
जवाब देंहटाएंअंगारों पर चलना
दो उपक्रम हैं
... अंगारों पर चलना प्रभु का आशीष है
खूबसूरत विश्लेषण और जीवन दर्शन
. अंगारों पर चलना प्रभु का आशीष है
जवाब देंहटाएंyahisty hain...
सूर्य और अग्नि ऊर्जा के स्रोत माने जाते हैं...जीवन में ये न हों तो चलने की शक्ति कहाँ से आएगी...चाँदनी,ओस, फूल सिर्फ ठंढक दे सकते हैं...सिर्फ यही मिलें तो मनुष्य निष्क्रिय बैठ जाएगा...
जवाब देंहटाएंसही कहा...अंगारों पर चलना प्रभु का आशीष है|
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी...जीवन पूरा द्वैत से भरा है...दुख भी प्रभु का आशीर्वाद है...सुख की आहट है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना. एक गहन अन्वेषण है इसमें. सच में ज़िन्दगी को जीने के लिए अपनी ले, चाल, ढाल सकब कुछ बदलना पद जाता है. ज़िन्दगी को अंगारे देना खूब अच्छे से आता है. फूल दे ना दे. और इन्ही अंगारों पर कभी चलना होता है, कभी बुझाना होता है.
जवाब देंहटाएंकृष्ण बिहारी नूर का एक शेर याद आ गया है कि-
ज़िन्दगी से बड़ी सज़ा ही नहीं
और क्या जुर्म है पता ही नहीं
आदर सहित,
निहार
गहन अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंएक गीत की पंक्ति याद आ गयी..
"वो मंज़िल क्या..जिसे पाने को...पैरों के छाले फूटे ना....."
~सादर !!!
जीवन विपरीतताओं का ही नाम है.....सुन्दर पोस्ट।.....रश्मि जी हो सके तो टिप्पणी का बॉक्स पोस्ट के साथ ही रखें अलग से विंडो खुलने में समय अधिक लगता है ।
जवाब देंहटाएंजीवन या अग्निपथ ...आज तक रहस्य समझ नहीं आया , रश्मि जी, जीवन कि गहन परिभाषा प्रस्तुत करती सुन्दर अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंजीवन में अंगारों के साथ साथ फूल भी मिलते हैं चाहे एक पल के लिये ही क्यूं न हो । अंगारों पर चलना प्रभु का आशीष मानना ही अच्छा है उससे दुख और आंच सहने की क्षमता बनी रहती है ।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना प्रेरक है ।
जवाब देंहटाएंअंगारे ही तो हैं जो हमें फूलों की जरूरत असली एहसास कराते हैं और उनको सहेजना भी सिखाते हैं |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता |
सादर