मैं सच में बुरी हूँ
बुरे लोगों में हिम्मत नहीं होती
धडल्ले से गालियाँ देने की !
अनुमानित सोच पर
किसी की इज्ज़त का जनाजा निकालने की !
अच्छे, संस्कारी लोग
अनुमानित आधार पर
कभी भी,कहीं भी
कुछ भी कहने का अधिकार रखते हैं
कुछ भी खुलासा करते हैं ...
वे पूरे दिन
कभी कभी रात में भी
पुलिस का धर्म
कानून का धर्म निभाते हैं !
कौन क्या है
- इसका पूरा लेखा-जोखा
इन अच्छे लोगों के पास होता है !
बिना राम नाम सत्य बताये
ये सम्मान की अर्थी निकाल देते हैं
हर उस दरवाज़े पर भीड़ लगी होती है
जो जनाजे के इंतज़ार में होते हैं
- एक वक्र मुस्कान
इनकी पुश्तैनी सम्पत्ति है
फिर भी दरियादिली से ये अर्पित करते हैं ...
......
मेरे पास इतनी गैरत कहाँ
न आंसू बहाती हूँ
न जख्मों को दिखाती हूँ
कम्माल की बुरी हूँ न
गलती नहीं हो तो भी क्षमा मांग लेती हूँ
शुभकामनायें देती हूँ
ओखल में सर देकर कहती हूँ मुसल से
.... आशीषों के सिवा कुछ भी नहीं मेरे पास
..........
पर ,,,,,,,,,,,,,
ना मैं बुद्ध हूँ
ना वे अंगुलिमाल
.....
वे तो बस अच्छे हैं
और मैं बुरी !!!
kuchh sach jindagi ke...
जवाब देंहटाएंsundar...
जिंदगी को अपने ही रंगों में ढाल लेने का बेहद खूबसूरत प्रयास ...
जवाब देंहटाएंअच्छे, संस्कारी लोग
जवाब देंहटाएंअनुमानित आधार पर
कभी भी,कहीं भी
कुछ भी कहने का अधिकार रखते हैं
कुछ भी खुलासा करते हैं ...
वे पूरे दिन
कभी कभी रात में भी
पुलिस का धर्म
कानून का धर्म निभाते हैं !
कौन क्या है
- इसका पूरा लेखा-जोखा
इन अच्छे लोगों के पास होता है !.......सही कहा आपने . अपने दामन की किसी को फ़िक्र नही के उसमे कितने पेबंद हैं दूसरे की चादर मैं एक छोटा सा छेद भी उनको हल्ला बोल लगने लगता हैं .सही हैं न किताबे संस्कार नही देती ....संस्कार व्यवहार से आते हैं
जवाब देंहटाएंओखल में सर देकर कहती हूँ मुसल से
.... आशीषों के सिवा कुछ भी नहीं मेरे पास ....
इतनी दरियादिली कहाँ से लाती हैं ...........
गहन सोच.....अक्सर तथाकथित बुरे लोग अच्छे और अच्छे बुरे होते हैं.....यहाँ सब विपरीतता में चलता है ।
जवाब देंहटाएंवाह...सुन्दर कटाक्ष !
जवाब देंहटाएंकम्माल की बुरी हूँ न
जवाब देंहटाएंगलती नहीं हो तो भी क्षमा मांग लेती हूँ
शुभकामनायें देती हूँ
ओखल में सर देकर कहती हूँ मुसल से
.... आशीषों के सिवा कुछ भी नहीं मेरे पास
....काश सभी लोग इतने बुरे होते...बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
॥ बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय॥
जवाब देंहटाएंकी भावना को लेकर चलने वाली आप बिरली ही हैं वर्ना यहां तो सब एक-दूसरे पर उँगली उठाये खुद को श्रेष्ठ बताने वाले ज्ञानी जनों की कमी नहीं ...
न आंसू बहाती हूँ
न जख्मों को दिखाती हूँ
कम्माल की बुरी हूँ न
गलती नहीं हो तो भी क्षमा मांग लेती हूँ
शुभकामनायें देती हूँ
ओखल में सर देकर कहती हूँ मुसल से
.... आशीषों के सिवा कुछ भी नहीं मेरे पास
आपकी ये पंक्तियां नि:शब्द कर देती हैं
सादर
कम्माल की बुरी हूँ न
जवाब देंहटाएंगलती नहीं हो तो भी क्षमा मांग लेती हूँ
शुभकामनायें देती हूँ
ओखल में सर देकर कहती हूँ मुसल से
.... आशीषों के सिवा कुछ भी नहीं मेरे पास
..........
सच कम्माल की बुरी हैं आप :):) ऐसी बुराई सिर आँखों पर .... विरोधाभास शैली में बहुत सीधी और सच्ची बात कह दी ।
".... आशीषों के सिवा कुछ भी नहीं मेरे पास "
जवाब देंहटाएंअच्छी - बुरी दुनिया की रीत हमारे लिए यही है सच्ची प्रीत... स्नेह सदा बना रहे
मेरे पास इतनी गैरत कहाँ
जवाब देंहटाएंन आंसू बहाती हूँ
न जख्मों को दिखाती हूँ
कम्माल की बुरी हूँ न
गलती नहीं हो तो भी क्षमा मांग लेती हूँ
शुभकामनायें देती हूँ
ओखल में सर देकर कहती हूँ मुसल से
.... आशीषों के सिवा कुछ भी नहीं मेरे पास ..apni banaayi rah par nirantar chalane ke liye
aesa bananaa hi padataa hain ..log kuchh bhi kahe ..
कहने वालों को हाथी चाहिए ही..हाथी न सुने तो अपनी जाति से भी काम चला लें..
जवाब देंहटाएंआशीषों के सिवा कुछ भी नहीं मेरे पास,,,,
जवाब देंहटाएंआपकी ये पंक्तियां ही आपकी महानता और व्यक्तित्व को दर्शाती है,,,
बहुत बुरी हैं आप क्योंकि सच भी बहुत बोलती हैं :).
जवाब देंहटाएंअच्छा बुरा हो जाता है
जवाब देंहटाएंऔर बुरा अच्छा....
यही तो है आज.....
जिंदगी की गहन सच्चाई....
chaliye saare bure milkar achhon ko burai seekha dein ,possible hai kya?!:)
जवाब देंहटाएंआशीषों के सिवा कुछ भी नहीं मेरे पास,,,,
जवाब देंहटाएंफिर भी ...?
अक्सर दूसरों पर ऊँगली उठाने वाले ये भूल जाते हैं िक तीन उँगलियाँ खुद उनकी और इंगित कर रही होती हैं
आप को अपने को बुरा कहने का हक आपको किसने दिया है ? क्योंकि इस दुनियां की रीत ये है कि बुरा कहने में लोग चूकते नहीं है और अपने गिरेबान में झांके नहीं है।
जवाब देंहटाएंआप बुरी ही भली है ... बस ऐसी ही बनी रहिए ... सादर !
जवाब देंहटाएंएक खबर जो शायद खबर न बनी - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबिना राम नाम सत्य बताये
ये सम्मान की अर्थी निकाल देते हैं
हर उस दरवाज़े पर भीड़ लगी होती है
जो जनाजे के इंतज़ार में होते हैं
- एक वक्र मुस्कान
इनकी पुश्तैनी सम्पत्ति है
फिर भी दरियादिली से ये अर्पित करते हैं ...
......
हकीकत से रूबरू और आज की सच्चाई को आइना दिखाती रचना..
बहुत बढिया
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 - 11 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
सच ही तो है .... खूँटे से बंधी आज़ादी ..... नयी - पुरानी हलचल .... .
वे तो अच्छे हैं और मैं बुरी...
जवाब देंहटाएंअद्भुत भाव
हाँ वे अच्छे मैं बुरी.....
जवाब देंहटाएंऔर मैं बुरी ही भली......
सादर
अनु
सचमुच ऐसे लोगों को बुरा ही कहा जाता है , सिर्फ एक पंक्ति कहना चाहूँगा -
जवाब देंहटाएंशरीफों के मुहल्ले से ,
मुंह ढँक के निकलता हूँ ,
गलती से कहीं मुझमें ,
शराफत न आ जाये कहीं |
सादर
अच्छे, संस्कारी लोग
जवाब देंहटाएंअनुमानित आधार पर
कभी भी,कहीं भी
कुछ भी कहने का अधिकार रखते हैं
कुछ भी खुलासा करते हैं ...
bahut khoob rashmi jee chand shabdon men bahut kuch kh diya ....
naye prayog acchhe lage.
जवाब देंहटाएंहमें तो ऐसी बु्री के साथ ही रहना है :)
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति
सभी बुरे लोगों को गर्व होगा ये पढ़कर..... :-)
जवाब देंहटाएं~सादर !
दिया तले तम रह ही जाता
जवाब देंहटाएंकाश आपके जैसी "बुराइयाँ" मुझमे भी हो. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंसादर,
निहार
ऐसे बुरे लोग हमें तो बड़े अच्छे लगते है :)
जवाब देंहटाएंदीदी, जहाँ हमारी सोच खत्म होती है आपकी सोच वहाँ से शुरू होती है.. और जब तक हम उस सोच की ऊंचाई तक पहुंचते हैं तब तक कुछ कहने के काबिल नहीं रहते!!
जवाब देंहटाएंबहुत गहरी सचाई!!
मेरे पास इतनी गैरत कहाँ
जवाब देंहटाएंन आंसू बहाती हूँ
न जख्मों को दिखाती हूँ
कम्माल की बुरी हूँ न
गलती नहीं हो तो भी क्षमा मांग लेती हूँ
वाह, बहुत खूब.बुद्ध और अंगुलीमार के प्रतीकों में गूढ़ बातें कह दीं.
अच्छाई मलिन होती नहीं दी ....चंद की स्निग्धता रात मे खिलकर भी .....स्निग्ध ,श्वेत ,उज्ज्वल ही रहती है ...
जवाब देंहटाएं"कम्माल की बुरी हूँ न
जवाब देंहटाएंगलती नहीं हो तो भी क्षमा मांग लेती हूँ"
वरिष्ठ और सज्जनों को अच्छा बुरा से कहाँ फर्क पड़ता है ... वो तो जगत के सत्य को पहचानते भी हैं, और स्वीकारते भी नहीं, क्यूंकि उन्हें पता है कि मन के भीतर का विश्व इस बाह्य सृष्टि से कहीं बड़ा है, विस्तृत है .. जहाँ सिर्फ सत्य है .. सिर्फ अच्छाई है, बुराई कुछ भी नहीं वहां .. :)
सादर
मधुरेश
achha bura sab apni-apni soch hai..
जवाब देंहटाएंbahut badiya jindagi ke falsafe se bhari sudnar prastuti ... aabhar!
हम चाहेंगे कि आप जेसे बुरे बने हम भी ।
जवाब देंहटाएंसुंदरभावों की अलग सी कविता ।
ना हम बुद्ध हैं ...ना वे अंगुलिमाल ..इसलिये संवेदनायें तो होती हैं ...पर बिना किसी अंगुलिमाल को प्रभावित किये।निर्मोही समय भागा चला जा रहा है और उसके पदचाप से एक इतिहास रचता जा रहा है। हम फिर भी आशा करते हैं कि अच्छे लोग अंगुलिमाल से कुछ तो सबक लें ....हमारे पास आशा के सिवाय और है ही क्या।
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहिल शुभकामनायें सादर स्वीकार्य
जवाब देंहटाएंयह रौशनी का पर्व आपके घर को भी सुख समृद्धि से भर दे !
यही कामना ....आभार सहित !