01 नवंबर, 2012

कई बीघे जमीन की स्वामिनी




रात दिन बच्चों के भविष्य को 
स्वेटर के फंदों सी बुननेवाली माँ 
जब बच्चों से कुछ सीखती है 
अपने नाम का कोई फंदा उनकी सलाई पर देखती है 
तो काँपता शरीर गर्मी पा 
स्थिर हो लेता है 
और माँ कई बीघे जमीन की स्वामिनी हो जाती है ...

बच्चे जब घुड़कते हैं  
हिदायतें देते हैं 
तो माँ का बचपन लौट आता है 
सफ़ेद बालों का सौंदर्य अप्रतिम हो उठता है ...
....
एकमात्र संबोधन - 'माँssss' .......
लाल परी की छड़ी सा होता है 
पुकारो ना पुकारो 
माँ सुन ही लेती है ...
उसकी हर धड़कन 
इस पुकार का महाग्रंथ होती है 
जिसके हर पन्नों पर 
दुआओं के बोल होते हैं ...
काला टीका 
रक्षा मंत्र के रूप में 
माँ प्राकृतिक अँधेरों के आँचल से 
हंसकर चुरा लेती है !
ऐसी छोटी छोटी चोरियां 
बच्चे के एक सच के लिए सौ झूठ बोलना 
माँ के अधिकार क्षेत्र में आता है 
बच्चे पर आनेवाले दुःख को 
जादू से आँचल में बांधना 
माँ को बखूबी आता है 
अमरनाथ गुफा सी क्षमता 
माँ के प्यार में होती है ...

उसी माँ के लिए 
बच्चे जब गुफा बन जाते हैं 
तो शरद पूर्णिमा की चांदनी 
माँ का सर सहलाती है 
जागी हुई आँखों में भी 
कोई थकान नहीं होती 
माँ ....
वह उस गुफा में 
नन्हीं सी गिलहरी बन जाती है 
बच्चों का प्यार
मजबूत टहनियों की तरह 
माँ का ख्याल रखते हैं 
ऊन के फंदों की तरह 
माँ का सुख बुनते हैं 
अपनी अपनी सलाइयों पर 
और माँ -
बोरसी सी गर्माहट लिए 
अपने बुने स्वेटरों की सुंगंध में 
निहाल हो खेलती है 
नए ऊन के रंगों के संग 
नए सिरे से ....

29 टिप्‍पणियां:

  1. पुकारो ना पुकारो
    माँ सुन ही लेती है ...
    उसकी हर धड़कन
    इस पुकार का महाग्रंथ होती है
    जिसके हर पन्नों पर
    दुआओं के बोल होते हैं ...
    काला टीका
    रक्षा मंत्र के रूप में
    माँ प्राकृतिक अँधेरों के आँचल से
    हंसकर चुरा लेती है !
    बहुत ही भामवय हर शब्‍द मन की गहराईयों में उतरता हुआ ...
    माँ सुन ही लेती है ...जब कहती है तो सबकी बोलती बंद भी हो जाती है ...
    सादर

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  2. बहुत ही सुन्दर लिखा है ,
    माँ के कितने रूपों का वर्णन किया है |
    इसे पढते हुए मुझे बार-बार कुछ सुना हुआ , धुंधला सा याद आ रहा था -
    एक स्त्री अपने जीवन में कितने किरदार निभाती है , कभी बेटी , कभी बहन , कभी पत्नी , कभी बहू , कभी माँ वगैरह-वगैरह | इतने किरदार कि वो अपनी जिंदगी में कभी सिर्फ एक स्त्री नहीं बन पाती , इन्हीं किरदारों और उनकी जिम्मेदारियों में उलझी रहती है |

    सादर

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  3. बच्चे के एक सच के लिए सौ झूठ बोलना
    माँ के अधिकार क्षेत्र में आता है
    बच्चे पर आनेवाले दुःख को
    जादू से आँचल में बांधना
    माँ को बखूबी आता है sach kaha aapne ....... maa or bachcho ka rishta ek ek faande jaisa buna jata hain har agli salayi par rishte or mazboot hote jaate hain kabhi koi fanda bich main gir bhi jaye to maa jhat se silai laga kar utha leti hain ..........baakhoobi baya kiya aapne maa or bachche ka rishta

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  4. एक स्नेहिल मुस्कान में उसके सारे किरदार सम्मानित हो आधार पा लेते हैं

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  5. माँ तेरे रूप अनेक...सब एक से बढ़ कर एक ...
    नमन !

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  6. बहुत सुन्दर लिखा है, ..... माँ तो माँ हैं !!!

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  7. किस प्रेम की स्याही से लिखूं माँ
    किस अमृत के अर्क से कहूँ माँ
    माँ ...माँ अप्रतिम ...सुन्दर रचना !

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  8. मां की बातें निराली ..
    सुंदर शब्‍दों में पिरोया है ..
    बहुत ही अच्‍छी अभिव्‍यक्ति

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  9. वाह वाह ..........बहुत ही शानदार लिखा है आपने तस्वीर भी बहुत प्यारी है।

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  10. माँ की ममता को सलाम..सुंदर कृति !

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  11. वाकई सुकून देता है बच्चों की गुफा में छिपना सच ..

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  12. अपने बुने स्वेटरों की सुंगंध में
    निहाल हो खेलती है
    नए ऊन के रंगों के संग
    नए सिरे से ....
    अपने अनुभूति में उलझी एक माँ को
    इन अभिव्यक्ति से सुकून मिला ......
    आभार !!

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  13. तब तो माँ जैसी कोई नहीं..सुंदर रचना.

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  14. वाह रश्मि जी बहुत सुंदर ..माँ के अहसास माँ की जुबानी

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  15. बहुत सुन्दर, यह प्यार की जमीन हो जाती है..

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  16. वाह !! क्या कहूँ...कुछ एहसासों को शब्द देना कठिन है...पर आपने इतने खूबसूरत शब्द दिए हैं कि माँ-बच्चों के रिश्ते की सुगंध पूरी कायनात में फैल रही है|
    फोटो...बिल्कुल रचना को परिभाषित करती हुई|

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  17. वाह: रश्मि जी आप ने तो माँ और बच्चों के संबंधो के अहसासों को सुन्दर शब्द चित्रों से और भी खुबसूरत बना दिया है ..आभार..

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  18. बेहद भाव पूर्ण प्रेम का स्वरुप मा का रूप अनूप.....ममता की शीतल छाया ..
    एक कोमल अहसास माँ ...
    ब्रह्माण्ड में प्रभु की सर्वोच्च रचना...
    सचमुच माँ माँ ही होती है ....
    उत्कृष्ट रचना के लिए आभार एवं हार्दिक अभिनन्दन ...

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  19. अमरनाथ गुफा सी क्षमता
    माँ के प्यार में होती है ...
    माँ और संतान के सम्बन्ध का बाखूबी चित्रण किया है,आपने .

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  20. आप सदैव ही सुन्दर लिखती हैं। आपको पढना बहुत सुखद होता है।

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  21. और माँ -
    बोरसी सी गर्माहट लिए
    अपने बुने स्वेटरों की सुंगंध में
    निहाल हो खेलती है
    नए ऊन के रंगों के संग
    नए सिरे से ....bemisaal.....adwitiye.....

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  22. माँ के प्यार-दुलार का मर्म समझती बहुत प्यारी रचना ...आभार

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  23. बच्चे जब घुड़कते हैं
    हिदायतें देते हैं
    तो माँ का बचपन लौट आता है
    सफ़ेद बालों का सौंदर्य अप्रतिम हो उठता है ...

    बहुत सुंदर, मां की सपूर्ण सोच को रख दिया आपने..

    मां की बात होती है तो मुझे मुनव्वर राना की बातें याद आ जाती हैं..

    मां मेरे गुनाहों को कुछ इस तरह से धो देती है
    जब वो बहुत गुस्से मे होती है तो रो देती है।।

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  24. ये 'स्वेटर के फंदों' वाली बात से मुझे भी अपनी माँ याद आ गयी .. काश हम सब बच्चे अपनी माँ का सुख यूँही बुनते रहें .. इससे ज्यादा
    ख़ुशी और कहीं नहीं है
    सादर
    मधुरेश

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  25. आँखें नाम हो गयी इस कविता को पढ़कर. माँ तो आखिर माँ है. खुद समस्त विश्व से फैले ह्रदय कि स्वामिनी.

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