18 दिसंबर, 2012

कन्या भ्रूण हत्या मजबूरी है !!!:( - (अपवाद होते हैं)


सिसकियों ने
मेरा जीना दूभर कर दिया है 

माँ रेsssssssssssssss ............

मैं सो नहीं पाती 
आखों के आगे आती है वह लड़की 
जिसके चेहरे पर थी एक दो दिन में माँ बनने की ख़ुशी 
और लगातार होठों पर ये लफ्ज़ -
'कहीं बेटी ना हो ....!'
मैं कहती - क्या होगा बेटा हो या बेटी 
!!!
अंततः उसने बेरुखी से कहा -
आप तो कहेंगी ही 
आपको बेटा जो है ....'
मेरी उसकी उम्र में बहुत फर्क नहीं था 
पर मेरे होठों पर ममता भरी मुस्कान उभरी - बुद्धू ...
!!!

आज अपनी ज़िन्दगी जीकर 
माओं की फूटती सिसकियों में मैंने कन्या भ्रूण हत्या का मर्म जाना 
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
नहीं फर्क पड़ता शिक्षा से 
कमाने से 
लड़कियों के जन्म पर उपेक्षित स्वर सुनने को मिलते ही हैं 
उन्हें वंश मानना किसी को गवारा नहीं 
वे असुरक्षित थीं - हैं ....
ससुराल में किसके क़दमों के नीचे अंगारे होंगे 
किसके क़दमों के नीचे फूल - खुदा भी नहीं जानता 
.... रात का अँधेरा हो 
या भरी दोपहरी 
कब लड़की गुमनामी के घुटने में सर छुपा लेगी 
कोई नहीं जानता 
नहीं छुपाया तो प्रताड़ित शब्द 
रहने सहने के ऊपर तीखे व्यंग्य बाण 
जीते जी मार ही देते हैं 
तो गर्भ में ही कर देती है माँ उसे खत्म !!!
= नहीं देना चाहती उसे खुद सी ज़िन्दगी 
गुड़िया सी बेटी की ज़िन्दगी 
खैरात की साँसें बन जाएँ - माँ नहीं चाहती 
तो बुत बनी मान लेती है घरवालों की बात 
या खुद निर्णय ले लेती है 
.........
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ़ बोलने से क्या होगा 
कन्या रहेगी बेघर ही 
या फिर करने लगेगी संहार 
......
आन्दोलन करने से पहले अपने विचारों में बदलाव लाओ 
जो सम्भव नहीं - 
तो खुद को विराम दो 
और सुनो उन सिसकियों को 
जिन्होंने इस जघन्य अपराध से 
आगे की हर दुह्संभावनाओं के मार्ग बंद कर दिए 
सीता जन्म लेकर धरती में जाये 
उससे पहले बेनाम कर दिया उन्हें गर्भ में ही 
....
आओ आज मन से उन माओं के आगे शीश झुकाएं 
एक पल का मौन उनके आँचल में रख जाएँ 
.................. :(

36 टिप्‍पणियां:

  1. आन्दोलन करने से पहले अपने विचारों में बदलाव लाओ
    जो सम्भव नहीं -
    तो खुद को विराम दो
    और सुनो उन सिसकियों को
    जिन्होंने इस जघन्य अपराध से
    आगे की हर दुह्संभावनाओं के मार्ग बंद कर दिए
    सही है, क्यों ना ऐसा हो जाये कि भ्रूण हत्या की मजबूरी ही ना हो... आंदोलित करते भाव... आभार

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  2. बात तो सही है...इस काम के लिए सबसे पहले वह अपनी ममता का गला घोंटती होगी...इस मर्मान्तक पीड़ा का बोझ लेकर भी संतुष्ट रहती होगी|
    पहले कन्या का मान बढ़ाओ फिर उपदेश भरी कविताएँ या कहानियाँ लिखो|

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  3. ससुराल में किसके क़दमों के नीचे अंगारे होंगे
    किसके क़दमों के नीचे फूल - खुदा भी नहीं जानता

    ...बहुत मार्मिक पर कटु सत्य..बेटी जिसे ज़िंदगी की सभी खुशियाँ और प्यार दिया हो अगर उसे किसी तरह का दुःख मिले तो सहन नहीं हो पाता माता पिता को..हर घर में एक बेटी हो तभी वे समझ पाएंगे बेटी को दुःख पाने का दर्द...बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति..

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  4. सच एकदम सच ..नहीं देना चाहती वो उसे अपनी सी जिंदगी..

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  5. एक बहुत ही कड़वे सच को सामने ला खड़ा कर दिया आप ने रश्मि जी ...आभार..

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  6. मन आत्मा को झकझोरती बहुत ही उत्कृष्ट एवं धारदार रचना ! काश यह रचना उन कानों में ज़रूर पड़े जिनकी अंतरात्मा आज भी सदियों से बंदी है और जो नारी को इस तरह मातृत्व सुख से वंचित कर अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य का डंका बजाने में ही अपना पराक्रम मानते हैं !

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  7. क्या कहूँ दी.....
    धुंधला गया है सब...

    सादर
    अनु

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  8. एक ज्वलंत प्रश्न प्रस्तुत किया है समाज के समक्ष ...बहुत सशक्त रचना!

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  9. सुनो उन सिसकियों को
    जिन्होंने इस जघन्य अपराध से
    आगे की हर दुह्संभावनाओं के मार्ग बंद कर दिए
    सीता जन्म लेकर धरती में जाये
    उससे पहले बेनाम कर दिया उन्हें गर्भ में ही ..


    शायद आपकी बात उन तक पहुंचे..
    समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर हम जा किस ओर रहे हैं, हमारा रास्ता क्या है..
    बड़ा सवाल ये कि हम सुधरेंगे कब ?

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  10. असह्य पीड़ा.. उसकी भी और पढ़ने के बाद हमारी भी!!

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  11. शायद यही एक वजह होती होगी जो ऐसे निर्णय लेते वक्त पत्थर की हो जाती है एक माँ और यूं देखा जाये तो शायद सही भी है क्यूंकि आज इस दुनिया में इंसान नहीं मुर्दे बसा करते हैं जिसका साक्षात उदहारण है दिल्ली में हुआ सामूहिक बलात्कार ऐसी संवेदन हीं दुनिया में भला एक मासूम बच्ची को जन्म देखर उसका गुड़िया सा पालन पोषण कर कोई माँ कैसे उसे दे यह वीभत्स और ग्राणित लोगों से भरी इस दुनिया में छोड़ दे जहां न सिर्फ जिस्म से बल्कि आँखों से भी हर रोज़ बलात्कार हुआ करते हैं इस सबसे अच्छा तो यही है ....

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  12. दुखद और शर्मनाक हादसे को देख कर लगता है कि लड़कियों को ऐसी प्रताड़णा से बचना है तो उन्हे गर्भ में ही मार देना चाहिए ..... पर यह कोई उपाय तो नहीं .... बहुत गंभीर भाव लिए यह रचना ।

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  13. दुखद सत्य लेखिन नयी पीढ़ी में कुछ बदलाव आने की संभावना है. वक़्त लगेगा लेकिन बदलाव जरूर आएगी ऐसी आशा है.

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  14. पीड़ा तो सच है पर .... अस्तित्व ही खत्म हो जाये ? नहीं.... महिला को महिला का खुद अपने आप का सम्मान करना होगा जब दूसरों से सम्मान न मिले तब भी आत्मसम्मान को दृढ रखना होगा

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  15. आपने कटाक्ष के रूप में ही यह लिखा है नहीं तो इस कृत्य का समर्थन हरगिज़ नहीं किया जा सकता है........दुर्घटना शर्मनाक है.....और दोषियों को बख्शा नहीं जा सकता परन्तु भ्रूण हत्या कोई समाधान नहीं है इसका ।

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  16. .........
    कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ़ बोलने से क्या होगा
    कन्या रहेगी बेघर ही
    या फिर करने लगेगी संहार
    ......
    आन्दोलन करने से पहले अपने विचारों में बदलाव लाओ
    जो सम्भव नहीं -
    तो खुद को विराम दो
    और सुनो उन सिसकियों को
    जिन्होंने इस जघन्य अपराध से
    आगे की हर दुह्संभावनाओं के मार्ग बंद कर दिए
    बेहद गहन भाव लिए, उत्‍कृष्‍ट लेखन
    सादर

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  17. मुझे उत्कृष्ट लेखन का तगमा नहीं चाहिए .... नहीं सुनना कि यह उपाय नहीं .... जिस दिन अपना घर चपेट में आता है किसी दुर्घटना के तब सारी असलियत आगे चीखती है

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  18. बिलकुल सच कहा आपने जब अपना घर चपेट में आता है तो सच बहुत करीब लगता है और नहीं तो ऐसे भी हैं जो औरों को इस विवशता में देख कर कह देते हैं जरूर कहीं अपने में ही कमी होती या गलती होगी . सच्चाई की तिक्त अनुभव हो रही है किससे उत्तर मांगे ?

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  19. बिल्कुल सच कहा आपने ..और सच का कड़वा घूँट पहले हमे ख़ुद को ही पी कर परीक्षा देनी होगी ???

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  20. बेटी के दुख की कल्पना ही माँ को विचलित कर देती है -लाचार भले हो, दोषी माँ नहीं !

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  21. आज के हालात के बाद तो यही कहा जायेगा

    अपने इस दर्द के साथ यहाँ आकर उसे न्याय दिलाने मे सहायता कीजिये या कहिये हम खुद की सहायता करेंगे यदि ऐसा करेंगे इस लिंक पर जाकर

    इस अभियान मे शामिल होने के लिये सबको प्रेरित कीजिए
    http://www.change.org/petitions/union-home-ministry-delhi-government-set-up-fast-track-courts-to-hear-rape-gangrape-cases#

    कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं

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  22. mujhe ye rachna bahut pasand aayi jo samaj ki brantiyon ko ujagar karti hai

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  23. बेटी होकर जीना कठिन है...पर बेटा भी तो कोई बेटी ही जन्मती है..

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  24. आन्दोलन करने से पहले अपने विचारों में बदलाव लाओ

    रुढ़िवादी परंपराएँ चलती आ रही है ...विचारों में बदलाव आ रहे है पर बहुत धीमे धीमे ....

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  25. हर माँ ये दर्द समझ सकती है जो आपने महसूस किया विडंबना ये दर्द से मुक्ति का मार्ग सूझता नहीं

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...