मुझे कहना तो है - पर क्या ?
मौन - एक विस्तृत धरा
मन सोच के बीज लिए चलता है
धरा उसका साथ देती है
कई खामोश पौधे,वृक्ष
अपनी अनकही भावनाओं के संग लहलहाते हैं
कहीं तो होगा कोई मौन सहयात्री,पथिक
जो इन खलिहानों से एक अबूझ रिश्ता जोड़ेगा !
..........
ले आएगा उस चेहरे को
जिसे माँ ने आशीर्वचनों से सुरक्षित किया था
ले आएगा उन बहनों को
जो अपने वीर को सुरक्षा स्तम्भ मानती हैं
ले आएगा गाँव के उन रिश्तों को
जहाँ पराया कोई नहीं होता ...
....
मुझे कहना तो है - पर क्या ?
माँ,पिता,पत्नी,बहन,बच्चा ......
सब की आँखों से बह रहा है सवाल
कैसे मान लूँ और क्यूँ
कि यह आधा शरीर हमारे घर का है ?
हमने तो दुआओं के धागे बांधे थे
बलैया भी ली थीं ...
ये इतनी सर्दी में क्यूँ मेरे दरवाज़े
इतनी कठोर सज़ा मुझे दे रहे
....... हमने तो ईमानदारी से देश को अपने घर का चिराग दिया था
पूरा तो लाने का धर्म निभाता देश !
.........
मुझे कहना तो है - पर क्या ?
औरतें ईश्वर के आगे बुदबुदा रही हैं -
'बाँझ ही रखना - कबूल है
पर बेटी मत देना
उसकी ऐसी दर्दनाक मृत्यु मैं नहीं देखना चाहती
नहीं सुनना चाहती शर्मनाक बौद्धिक विचार
और ............ मुझे भी उठा लो
क्योंकि सारे रास्ते जंगल हो गए हैं
..............'
मुझे कहना है - पर क्या
मन की आशंकाओं को हे प्रभु
कालिया नाग की तरह क्षीण करो
अपने नाम पर होते अत्याचारों पर
सुदर्शन चक्र चलाओ
धर्म के गलित गुरुओं को जरासंध की तरह मारो
सरकार की कुटिल विवशता का विनाश करो
नहीं .............
तो माँ की मांग स्वीकार करो
प्रभु उपकार करो
उद्धार करो
अवतार धरो .......................
मन की कसक और प्रभु से प्रार्थना ....गहरी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहमने तो ईमानदारी से देश को अपने घर का चिराग दिया था
जवाब देंहटाएंपूरा तो लाने का धर्म निभाता देश !
कहां निभाया देश ने अपना फर्ज....
हमने तो ईमानदारी से देश को अपने घर का चिराग दिया था,,,
जवाब देंहटाएंपूरा तो लाने का धर्म निभाता देश,,,,
सार्थक सटीक पंक्तियाँ,,,
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
इससे ज्यादा कोई जख्मी दिल अपनी भावनाएं कैसे व्यक्त करे .....काश! कोई समझे ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें!
@पर बेटी मत देना
जवाब देंहटाएंकष्टकारक ...
प्रभु भी यह पुकार नहीं सुनते ...
जवाब देंहटाएंआज हर बेटी की माँ के मन में यही सब भाव आ रहे होंगे ।
क्या कहे, दर्द ही दर्द झलक रहा है बस
जवाब देंहटाएंपर प्रभु कहां सो गए पता नहीं
अवतार धरो अवतार धरो
बहुत मार्मिक..
औरतें ईश्वर के आगे बुदबुदा रही हैं -
जवाब देंहटाएं'बाँझ ही रखना - कबूल है
पर बेटी मत देना
उसकी ऐसी दर्दनाक मृत्यु मैं नहीं देखना चाहती
नहीं सुनना चाहती शर्मनाक बौद्धिक विचार
और ............ मुझे भी उठा लो
क्योंकि सारे रास्ते जंगल हो गए हैं
..............'
घोर दुःख की बात है लेकिन सच है. लकिन मैं बदलाव के लिए पूरी तरह आशान्वित हूँ.
सुन्दर अभिव्यक्ति.
प्रभु लंबी छुट्टी पर गया लगता है :(
जवाब देंहटाएंसब की आँखों से बह रहा है सवाल
जवाब देंहटाएंकैसे मान लूँ और क्यूँ
कि यह आधा शरीर हमारे घर का है ?
हमने तो दुआओं के धागे बांधे थे
बलैया भी ली थीं ...
:( बेहद दु:खद क्षण
कहते तो हैं कि प्रभु हमारे दिल में रहते हैं , तो प्रभु हैं तो इसी धरती पर , लेकिन शायद सो रहे हैं |
जवाब देंहटाएंया हमने अपने भीतर के प्रभु को मार डाला है ?
सादर
क्योंकि सारे रास्ते जंगल हो गए हैं
जवाब देंहटाएंइन जंगलों को काटकर ही रास्ता बनाना पड़ेगा थोडा कठिन जरुर है पर नामुमकिन नहीं, बने बनाये रास्ते अब नहीं चाहिए ...
अब तो सही में बौद्धिक विचारों से चिढ सी हो गयी है..
जवाब देंहटाएंhe prabhu upkaar karo...!!
जवाब देंहटाएंpar sunte kahan wo...
pattharo shilaon me dab gaye hain:(
कई मौन मचल रहे हैं मन में ...
जवाब देंहटाएंभेद रहे हैं .. भीतर ही भीतर ....
क्या कहें ... :(((
~सादर !!!
सच, कहना तो है पर क्या ...
जवाब देंहटाएंअब तो जैसे शब्द ही नहीं हैं.
प्रभु उपकार करो
जवाब देंहटाएंउद्धार करो
अवतार धरो .......
पता नहीं कब जागेगा वो कुम्भकर्णी नींद से...
मुझे कहना तो है - पर क्या ?
जवाब देंहटाएंमौन - एक विस्तृत धरा
मौन
अद्भुत........हैट्स ऑफ ।
जवाब देंहटाएंआज हर जगह जंगल है अंदर बाहर सब जगह :-(
जवाब देंहटाएंमुझे कहना है - पर क्या
जवाब देंहटाएंमन की आशंकाओं को हे प्रभु
कालिया नाग की तरह क्षीण करो
अपने नाम पर होते अत्याचारों पर
सुदर्शन चक्र चलाओ
धर्म के गलित गुरुओं को जरासंध की तरह मारो
सरकार की कुटिल विवशता का विनाश करो
नहीं .............
..दो-चार होते तो यह सब हो जाता लेकिन आज किस-किस पर प्रभु सुदर्शन चक्र चलाये ..शायद इसलिए वे भी मुँह फेर कर रुठे बैठे हैं ..
kitna prabhawshali likhtin hain aap.....
जवाब देंहटाएंया क्षीणमनाओं में हुंकार भरो..
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज शनिवार (12-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
मन की आशंकाओं को हे प्रभु
कालिया नाग की तरह क्षीण करो
अपने नाम पर होते अत्याचारों पर
सुदर्शन चक्र चलाओ
धर्म के गलित गुरुओं को जरासंध की तरह मारो
सरकार की कुटिल विवशता का विनाश करो
नहीं .............
तो माँ की मांग स्वीकार करो
प्रभु उपकार करो
उद्धार करो
अवतार धरो .......................
प्रभु उपकार करो !
उद्धार करो !
अवतार धरो !
आदरणीया दीदी रश्मि प्रभा जी
सादर प्रणाम !
आपकी गंभीर लेखनी से सृजित हर रचना हृदय पर अपना गहन प्रभाव छोड़ जाती है ...
साधुवाद !
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿
आज के बढते अत्याचारों का नाश करने के लिये तो अब लगता है कि भगवन का अवतरित होना आवश्यक हो गया है.
जवाब देंहटाएंलोहड़ी, मकर संक्रांति और माघ बिहू की शुभकामनायें.
अद्भुत मार्मिक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंउस प्रभु से बस एक ही बात कहनी है ...हे!प्रभु मुझे अगले जन्म बिटिया ही देना ...उम्मीद है तब तक ये समाज भी सुधार जाएगा
जवाब देंहटाएं