15 जनवरी, 2013

मैं 'हाँ' भी मैं 'ना' भी



मैं 'हाँ' भी 
मैं 'ना' भी ...
स्वाभाविक भी है 
समंदर में ही विष भी 
अमृत भी 
मंथन अनवरत -
कभी दिल का 
कभी दिमाग का 
..........परिस्थितियों के अनुसार .........
मैं ही कहती हूँ - गलत तो हर हाल में गलत है !
मेरा ही मानना है - परिस्थितियाँ उस वक़्त सही होती हैं !
कोई मारता है स्वभाववश 
कोई बचाव में ..
तो व्याख्या,न्याय,संस्कार दोनों में एक नहीं होते न !
मैं कहती हूँ जिसे - सही है 
फिर कहती हूँ -  हालात से उत्पन्न है
सही है या गलत 
लगता है मस्तिष्क सुन्न हो गया !
.......
ताली एक हाथ से नहीं बजती अन्याय में 
सही है - 
सहनशीलता बढ़ावा है 
ताली का जरिया है ...
पर नहीं सहा तो ?
माता - पिता के लालन-पालन पर ऊँगली उठेगी !
ऊँगली उठाना आसान है - 
तो क्या करना है - कैसे तय हो !
......
मैं लकीरें खींचती हूँ 
और तत्क्षण मिटा देती हूँ 
क्योंकि समय के साथ लकीरें बेमानी हो जाती हैं 
मुक्ति और विरक्ति में फर्क है 
मोह पर विजय प्राप्त करना 
और मोह के सिंहासन पर मुक्ति का उपदेश देना 
एक ही बात कहाँ होती है 
बिल्कुल नहीं होती है !
सिद्धार्थ से गौतम की यात्रा सबसे सम्भव नहीं ...
तप और तप का ज्ञान 
फर्क है न 
तो मैं कभी हाँ तो कभी ना हो ही जाती हूँ 
एक ही पलड़े पर बुद्ध और ढोंगी को नहीं रख सकती 
बुद्ध को तलाश थी सत्य की 
और बुद्ध के वेश में ....... सत्य की हत्या 
विरोधाभास है !
पूजा मन की श्रद्धा है 
शोर नहीं 
दिखावा नहीं !
मैं ईश्वर से बातें करती हूँ 
पर डरती भी हूँ 
अकुलाती भी हूँ 
अंधविश्वास से क्षणांश को ही सही 
ग्रसित भी होती हूँ 
फिर लगता है - क्या बकवास सोच है मेरी !
आगत दिखता है 
फिर अचानक कुछ नहीं दिखता 
और यहीं मेरी गलतियां 
मुझसे हिसाब किताब करती हैं !
सोच से परे दृश्य उपस्थित होने के कारण तो हैं ही 
ज़िम्मेदार मैं 
सज़ावार मैं 
स्तब्द्ध मैं 
निर्विकार मैं 
अँधेरे में एकाकार मैं 
शायद इस हाँ ना की वजह से ही 
सूरज रोज मेरी आँखों के आगे चमकता है 
और अँधेरे को चीरकर 
मैं खुद को प्रभु के चरणों में समर्पित कर देती हूँ 
मेरी हाँ - मेरी ना की वजह वही है 
अँधेरा कितना भी गहरा हो 
वह मेरे भीतर प्रकाशित रहता है 
..........
शब्द उसके - मैं माध्यम 
हाँ और ना की 
एक ही विषय पर 
एक ही क्षण में ........!!!
... 

34 टिप्‍पणियां:


  1. शब्द उसके - मैं माध्यम
    हाँ और ना की
    एक ही विषय पर
    एक ही क्षण में ........!!!

    ....अद्भुत! शाश्वत सत्य की गहन अभिव्यक्ति...

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  2. मैं 'हाँ' भी
    मैं 'ना' भी ............
    .परिस्थितियों के अनुसार ........
    .मैं लकीरें खींचती हूँ
    और तत्क्षण मिटा देती हूँ
    क्योंकि समय के साथ लकीरें बेमानी हो जाती हैं
    पूजा मन की श्रद्धा है
    शोर नहीं
    दिखावा नहीं !
    मैं ईश्वर से बातें करती हूँ
    पर डरती भी हूँ
    अकुलाती भी हूँ
    शब्द उसके - मैं माध्यम
    हाँ और ना की
    एक ही विषय पर
    एक ही क्षण में ........!!!
    bahut kuch tatolti bahut kuch sochne par majboor karti kavita

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  3. वाह दी......
    ज़िम्मेदार मैं
    सज़ावार मैं
    स्तब्द्ध मैं
    निर्विकार मैं
    अँधेरे में एकाकार मैं
    शायद इस हाँ ना की वजह से ही
    सूरज रोज मेरी आँखों के आगे चमकता है
    और अँधेरे को चीरकर
    मैं खुद को प्रभु के चरणों में समर्पित कर देती हूँ

    ऐसे भाव और ऐसी गहन अभिव्यक्ति आपकी कलम से ही लिखी जा सकती है...
    सादर
    अनु

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  4. बहुत ही उम्दा | जीवंत अध्यन है रोज़मर्रा जीवन का | आभार

    Tamasha-e-zindagi

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  5. मन में उठाते ऐसे ही कितने प्रश्न .... परिस्थिति के हिसाब से ही हर बात का आंकलन होता है .... सुंदर प्रस्तुति

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  6. मंथन अनवरत -
    कभी दिल का
    कभी दिमाग का

    uthal
    puthal

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  7. मैं लकीरें खींचती हूँ
    और तत्क्षण मिटा देती हूँ
    क्योंकि समय के साथ लकीरें बेमानी हो जाती हैं
    मुक्ति और विरक्ति में फर्क है
    मोह पर विजय प्राप्त करना
    और मोह के सिंहासन पर मुक्ति का उपदेश देना
    एक ही बात कहाँ होती है
    बिल्कुल नहीं होती है !

    सुन्दर पंक्तियाँ ..इतने सच्चे विचार आत्मा-मंथन से ही आ पाते हैं. सार्थक रचना.

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  8. ज़िम्मेदार मैं
    सज़ावार मैं
    स्तब्द्ध मैं
    निर्विकार मैं
    अँधेरे में एकाकार मैं

    सुन्दर पंक्तियाँ, प्रभावी

    जवाब देंहटाएं
  9. अँधेरा कितना भी गहरा हो
    वह मेरे भीतर प्रकाशित रहता है
    ... जो हौसला देता है और बनता भी

    शब्‍द उसके - मैं माध्‍यम
    सच

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  10. शाश्वत सत्य की गहन,अद्भुत,बहुत सुंदर उम्दा अभिव्यक्ति के लिए बधाई,,,,रश्मि जी,,,

    recent post: मातृभूमि,

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  11. द्वन्द्व घिरा है,
    एक सम्हाला,
    दूजा संग में,
    चल कर आया,
    साथ पिरा है,
    द्वन्द्व घिरा है।

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  12. इस हाँ और ना के बीच फंसे है हम सब ..कई बार लगता है जो गलत है , हमेशा गलत ही नहीं होगा , तस्वीर की दूसरी तरफ जाने क्या हो !
    यह विरोधाभास बहुत अपना सा लगा !

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  13. सोच से परे दृश्य उपस्थित होने के कारण तो हैं ही
    ज़िम्मेदार मैं
    सज़ावार मैं
    स्तब्द्ध मैं
    निर्विकार मैं
    अँधेरे में एकाकार मैं
    स्तब्द्ध मैं !!

    जवाब देंहटाएं
  14. हाँ और न, सही और गलत.........विपरीत में झूलता मन ।

    वक़्त मिले तो जज़्बात पर आएं|

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  15. शब्द उसके - मैं माध्यम
    हाँ और ना की
    एक ही विषय पर
    एक ही क्षण में ........!!!

    इसके बाद कहने को कुछ नही बचा

    जवाब देंहटाएं
  16. हाँ और ना...दोनों के बीच की उलझन...समय के साथ कभी यह सही कभी वह !!
    अन्तर्द्वन्द्व उभर कर सामने आया है...सटीक अभिव्यक्ति !!

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  17. कभी हाँ कभी ना
    इस द्वन्द में घिरा मन
    घडी की पेंडुलम की तरह
    कभी इधर तो कभी उधर
    लेकिन मध्य में ही ठहराव है ...
    ना इधर ना उधर !

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  18. तू जो कहे आँखें बंद कर मानूँ..

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  19. बहुत ही प्रभावशाली अभिव्यक्ति.. जो कहना है उसको कहने का इतना सशक्त ज़रिया आप ही खोज सकती हैं दीदी!!

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  20. मैं खुद को प्रभु के चरणों में समर्पित कर देती हूँ
    मेरी हाँ - मेरी ना की वजह वही है
    अँधेरा कितना भी गहरा हो
    वह मेरे भीतर प्रकाशित रहता है

    ..बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति ..आभार

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  21. बहुत कुछ सोंचने पर विवश करती सामयिक अभिव्यक्ति...

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  22. bahut achchha lekh hai ...bhale jhut ya andhera ho saamne ..par saty aur ujaala to rahataa hi hai ..

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  23. गहन भाव ... अपने को उस एकमात्र शिव के आगे समर्पित होना ही तो जीवन का सार है ...

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  24. शब्द-शब्द निराकार
    जिसे कभी नहीं बांधा जा सकता

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  25. मेरी हाँ - मेरी ना की वजह वही है ...

    सच है ..बहुत सुंदर रचना !

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  26. शब्द उसके - मैं माध्यम
    हाँ और ना की
    एक ही विषय पर
    एक ही क्षण में ........!!!

    गहन अभिव्यक्ति. सुंदर रचना.

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  27. बहुत दमदार अभिव्यक्ति

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  28. हर एक इंसान के मन की बात कहती रचना...गहन भाव अभिव्यक्ति हमेशा की तरह :)

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  29. बेहद शानदार , सशक्त प्रस्तुति |

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  30. सभी स्त्रियों की मानसिक दशा और सोचने की सहज प्रक्रिया...

    सहनशीलता बढ़ावा है
    ताली का जरिया है ...
    पर नहीं सहा तो ?
    माता - पिता के लालन-पालन पर ऊँगली उठेगी !
    ऊँगली उठाना आसान है -
    तो क्या करना है - कैसे तय हो !

    बहुत उम्दा अभिव्यक्ति.

    जवाब देंहटाएं

एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...