मैं .... और मैं
वार्तालाप,प्रलाप
प्रश्न,प्रश्नोत्तर,निरुत्तर ....
सत्य-असत्य
पाप-पुण्य
स्वाभिमान,अभिमान
सुकर्म,कुकर्म
.... सबकी दिशाएं मैं के बिंदु से आरम्भ होती हैं !
पेड़,पहाड़,धरती,आकाश,वायु,जल ...
एक विस्तार है
एक विषय है
चयन मैं का ....
मैं से निर्धारण न हो
तो सफलता की गुंजाइश 'ना' के बराबर .
........
गुंजाइश हो भी तो भी
आत्मिक,मानसिक,दिमागी उथल-पुथल
कंक्रीट बिछाते रहते हैं
तोड़-फोड़,निर्माण का क्रम अनवरत
.... जब तक जीवन - तब तक दृश्य प्रश्न
परोक्ष-अपरोक्ष उभरते हैं,मिटते हैं
सही-गलत समय की परिभाषा है
जिसे किसी भी हाल में हम तय नहीं कर सकते
मैं ......... समय के हाथ में है
तुम कह सकते हो
'जहाँ हो - वहीँ रहो'
पर समय मैं के साथ खड़ा
कूद जाने को बाध्य कर सकता है
अन्याय का विरोध मान्य है
सही भी है
पर विरोध करने पर मृत्यु का पुरस्कार मिले
तो मैं
हम को क्या सलाह देगा
यह मैं ही समझ सकता न !
..........................
.............................. .
.............................. ........
यह प्रक्रिया आम है
दिनचर्या है
थकान है
परिणाम - मूक सोच !
सह जाना सही है
चिल्लाना सही है
या कानून की मदद ?
....
50 की उम्र रेखा पार करके
मैं सच में नहीं समझ सकी
फैसला कौन लेगा -
मैं,मैं,मैं या ............हम ?
चुप्पी सही या चीख ?
खुद पर कुछ सह लेना असहज होकर भी
सहज है
पर बच्चे और अपने ?
उस आंधी में तय नहीं होता
कि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी
या खामोश कर देंगी
..........
उसके बाद ?
फैसला कौन लेगा -
जवाब देंहटाएंमैं,मैं,मैं या ............हम ?
चुप्पी सही या चीख ?
खुद पर कुछ सह लेना असहज होकर भी
सहज है
पर बच्चे और अपने ?
उस आंधी में तय नहीं होता
कि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी
या खामोश कर देंगी
..........
उसके बाद ?
पर बच्चे और अपने ?
जवाब देंहटाएंउस आंधी में तय नहीं होता
कि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी
या खामोश कर देंगी
..........
उसके बाद ?
उसके बाद
मैं विराम की अवस्था से
वापस आयेगा
अपने स्वरूप में
जहाँ "मै" अहम का
सूचक नही होगा
समग्रता का सूचक बन
सब अपना ही
निज स्वरूप महसूसेगा
और ये होगी
"मै" की "मैं " विलीनता
मगर यहाँ तक पहुँचने के लिये
"मै" के कंटकाकीर्ण जंगलों से
गुजरना भी जरूरी होता है
इसलिये
बहने दो नियति को
विराम से पहले
उस आंधी में तय नहीं होता
जवाब देंहटाएंकि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी
या खामोश कर देंगी
..........
उसके बाद ?
मैं भी निरुत्तर हूँ ...
प्रतीक्षा कर लें .......
शायद ,समय दे जबाब !!
खुद पर कुछ सह लेना असहज होकर भी
जवाब देंहटाएंसहज है
पर बच्चे और अपने ?
उस आंधी में तय नहीं होता
कि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी
या खामोश कर देंगी
..........
उसके बाद ?
भी 'मैं'
............
.................
..........................
सब कुछ नियति पे छोड़ ससम्मान आगे बढ़ेगा
और विजयी होगा
....
जीवन तो कशमकश है ... जीना जरूरी है ...
जवाब देंहटाएं. जब तक जीवन - तब तक दृश्य प्रश्न
जवाब देंहटाएंपरोक्ष-अपरोक्ष उभरते हैं,मिटते हैं
सही-गलत समय की परिभाषा है
जिसे किसी भी हाल में हम तय नहीं कर सकते
बहुत सुन्दर !
सुन्दर भाव अभिवयक्ति
जवाब देंहटाएंकुछ प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए जा सकते..भीतर से ही आते हैं..हरेक के..प्रभावशाली रचना !
जवाब देंहटाएंइस मैं और हम में निहित हैं सारे प्रश्न और उत्तर भी. कभी हम मैं..... होते है, कभी हम..... इस मैं और हम में भी एक बारीक सी रेखा ही होती है जिसे कौन कब लांघ जाये पता ही नहीं होता.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रश्न और उसका बेहतरीन उत्तर भी बधाई रश्मि जी .
उसके बाद ...... सोच शून्य में विलीन हो जाएगी और जीवन बढ़ता रहेगा निर्बाध गति से ....
जवाब देंहटाएंउसके बाद ?
जवाब देंहटाएंफैसला लेगा वक़्त...
बढिया भाव,
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
फैसला कौन लेगा -
जवाब देंहटाएंमैं,मैं,मैं या ............हम ?
चुप्पी सही या चीख ?
खुद पर कुछ सह लेना असहज होकर भी
सहज है
पर बच्चे और अपने ?
उस आंधी में तय नहीं होता
कि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी
या खामोश कर देंगी
..........
उसके बाद ?
समय की खमोशी
New post कुछ पता नहीं !!! ( तृतीय और अंतिम भाग )
New post : शहीद की मज़ार से
वाद विवाद स्वयं से. फैसला पता नहीं कौन देगा.
जवाब देंहटाएंहृदय के अंतर्द्वंद्व को उकेरती प्रभावपूर्ण रचना ....
जवाब देंहटाएंइस मैं और हम में मस्तिष्क सही में सुन्न हो गया ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना...हमेशा की तरह।।।
जवाब देंहटाएंमन के अंदर उठे अंतर्द्वंद्व क बहुत सुन्दर चितरण..आभार
जवाब देंहटाएंगहरी बात ....... ये प्रश्न तो बनते हैं
जवाब देंहटाएंहाहाकार , मन के बाहर भीतर एक सा !
जवाब देंहटाएंसारे 'मैं' मिलके जो 'हम' बनाते हैं, उन्ही को जागना है, फैसला करना है।
जवाब देंहटाएंसादर
अक्सर ऐसी उहापोह की स्तिथि से ही घबराकर हम सब उपरवाले पर छोड़ देते हैं...यह सोचकर कि जो होगा अच्छा ही होगा ...क्योंकि उसकी मर्ज़ी से होगा ....बस इसी से संतोष कर लेते हैं...और करना भी चाहिए
जवाब देंहटाएंउसके बाद......
जवाब देंहटाएंन तो पहले ही 'मैं' था और न बाद रहेगा
सिर्फ 'मिथक' था मेरा या तेरा 'मैं'
टूटेगा ये तभी 'हम' से जुड़ेगा..........
उसके बाद ?
जवाब देंहटाएंये ही प्रश्न तो मन में हजारों सवाल पैदा करता है
संसार का होना मैं पर प्रारम्भ अवश्य होता है पर मैं पर समाप्त नहीं होता, जाते जाते न जाने कितने लोग जुड़ जाते हैं।
जवाब देंहटाएंis 'main 'ka koi samadhan nahin dikhta.....
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा 24- 01- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें ।
जवाब देंहटाएंजीवन की कशमस ही जिन्दगी है,,,
recent post: गुलामी का असर,,,
खुद पर कुछ सह लेना असहज होकर भी
जवाब देंहटाएंसहज है
पर बच्चे और अपने ?
उस आंधी में तय नहीं होता
कि तेज हवाएं खामोश हो जाएँगी
या खामोश कर देंगी
..........
उसके बाद ?
....आज इसी कशमकस में निकल रही है ज़िंदगी..
येही हैं ,,,जिन्दगी के टेड़े-मेढे रस्ते ...???
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें!
सार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंसशक्त प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएं६४ वें गणतंत्र दिवस पर बधाइयाँ और शुभकामनायें.
उम्दा प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत बधाई...६४वें गणतंत्र दिवस पर शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंमैं से शुरू , हम पर खत्म
जवाब देंहटाएंसादर
''उसके बाद?'' यह प्रश्न मन में उथलपुथल मचाने वाला है... कौन तय करेगा... मैं या हम... सार्थक रचना, शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएं