अपनी ख़ामोशी
जो मैंने नहीं गढ़ी
फिर भी
वक़्त की माँग पर
जिसे मैंने स्वीकार किया
वहाँ मोह की आकृतियाँ
मेरे कुछ कहने की प्रतीक्षा में बैठी होती हैं
…. !
मैं तो बातों की पिटारी रही हूँ
जब पिटारी में कुछ नहीं होता
तो भी मनगढंत बातें सुनाती हूँ
पता है मुझे -
खालीपन कभी मुस्कुराता नहीं
और मैंने हमेशा चाहा है
कि शून्य में खिलखिलाहट भर जाए
ताकि तुम्हारे एकांत में
यादें मेरी बातों की
तुम्हें गुदगुदा जाए
तुम्हारा चेहरा खिल जाये
और खालीपन भी आश्चर्य में पड़ जाये !!
……
गीत,कहानी,नकल,साहस, ……।
जाने कितनी सारी बातें हैं
फिर भी सन्नाटा !!!
एकटक देखती आँखों का इंतज़ार
मैं समझती हूँ
तभी तो आज ……………
दुलारती हूँ उन चेहरों को
और कहती हूँ -
तुम भी तो कुछ कहो !
खोलो अपनी पिटारी
कुछ नहीं तो वो जादू दिखाओ
जो मैंने तुम्हें दिखाया,सिखाया
गढ़ो कोई कहानी
या कोई छोटी सी बात
और खिलखिलाते जाओ मेरे संग
तब तक
जब तक
झूठमुठ के खींचे गए सन्नाटे शर्मा न जाएँ
डर कर भाग न जाएँ
…………………
पता है न
पलक झपकते सारे दृश्य बदल जाते हैं
इंतज़ार के सारे मौके ख़त्म हो जाते हैं
और तब
सन्नाटा बहुत भयानक होता है
शून्य में कही अपनी बातें
ख़ुद तक लौट आती हैं
और ……… !!!!!!!!
तो कहो कुछ तुम
मैं तो पिटारी लिए खड़ी ही हूँ :)
सही है..वक्त रहते कुछ कह लें कुछ सुन लें..समय का कोई भरोसा नहीं...प्रभावशाली रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सीख देती आपकी अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंसन्नाटा बहुत भयानक होता है
शून्य में कही अपनी बातें
ख़ुद तक लौट आती हैं
बिलकुल सही बात
बोलना बुलाना, मिलना मिलाना ... कुछ यादों को संजोना ... शायद ऐसे समय के लिए बहुत जरूरी होता है ...
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहद प्रभावशाली रचना , सही मैने मे अंतर्द्वंद को उजागर करती खिलखिलाती सी रचना बधाई रश्मि जी
जवाब देंहटाएंपता है न
जवाब देंहटाएंपलक झपकते सारे दृश्य बदल जाते हैं
इंतज़ार के सारे मौके ख़त्म हो जाते हैं
यही सच है |
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डायरेक्ट दिल से ... बहुत प्रभावशाली
जवाब देंहटाएंसन्नाटों की अपनी भाषा होती है ..
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना !!
जवाब देंहटाएंऔर तब
जवाब देंहटाएंसन्नाटा बहुत भयानक होता है
शून्य में कही अपनी बातें
ख़ुद तक लौट आती हैं ………… और उनका शोर कानों को नहीं मन को भेदता है इसलिये वो वक्त आने से पहले कह दो कुछ जो सहेजा जा सके…………बहुत सुन्दर रचना दी
वाह, खूबसूरत,लाजवाब रचना.
जवाब देंहटाएंतो कहो कुछ तुम
जवाब देंहटाएंमैं तो पिटारी लिए खड़ी ही हूँ .
.....
तुम कर्तव्य के घाट पर से
जब भी निकलती हो
साहस की नाव लेकर
लहरें आपस में बात करती हैं
नदिया का जल
तुम्हारी हथेली की अंजुरी में समा
स्वयं का अभिषेक करने को
हो जाता है आतुर
किनारे तुम्हारे आने की बाट जोहने लगते हैं !!
आपके इस ज़ज्बे को सादर नमन ....
मैं तो बातों की पिटारी रही हूँ
जवाब देंहटाएंजब पिटारी में कुछ नहीं होता
तो भी मनगढंत बातें सुनाती हूँ
पता है मुझे -
खालीपन कभी मुस्कुराता नहीं
और मैंने हमेशा चाहा है
कि शून्य में खिलखिलाहट भर जाए
ताकि तुम्हारे एकांत में
यादें मेरी बातों की
तुम्हें गुदगुदा जाए
तुम्हारा चेहरा खिल जाये
और खालीपन भी आश्चर्य में पड़ जाये !!
बेमिसाल..
पता है न
जवाब देंहटाएंपलक झपकते सारे दृश्य बदल जाते हैं
इंतज़ार के सारे मौके ख़त्म हो जाते हैं
और तब
सन्नाटा बहुत भयानक होता है
शून्य में कही अपनी बातें
ख़ुद तक लौट आती हैं
बहुत सुन्दर .
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आपकी लिखी रचना मुझे बहुत अच्छी लगी .........
जवाब देंहटाएंशनिवार 19/10/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
में आपकी प्रतीक्षा करूँगी.... आइएगा न....
धन्यवाद!
सच दी !!
जवाब देंहटाएंखिला चेहरा देख खालीपन भी हैरान हो जाय कि आखिर क्या गुदगुदा गया इसे !!
बहुत बहुत सुन्दर रचना...
सादर
अनु
सन्नाटा एक संकेत है, कुछ बड़ा होने को है, पलक झपकने के बाद।
जवाब देंहटाएंसशक्त भाव..... अपने आप से साक्षात्कार करवाते से .....
जवाब देंहटाएंवाकई जब खामोशी के पलों में सन्नाटों की दीवारों पर कुछ मनभावन बातों और यादों के खुशनुमां चित्र मन बहलाने को मिल जाते हैं तो सब कुछ बहुत सुहाना सा लगने लगता है ! इसलिए इन चित्रों को उकेरने और सहेजने से कतराना नहीं चाहिये ! बहुत सुंदर रचना रश्मिप्रभा जी ! बधाई !
जवाब देंहटाएं.....कुछ तुम बोलो, कुछ मैं बोलूं और बढ़ता ही रहे पिटारे का दायरा.
जवाब देंहटाएंउम्मीद है पिटारा से जितना निकलेगा उतना ही भरता जाएगा. अति सुन्दर.
पिटारी बड़े काम की होती है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
मैंने लिखा था कि बन्द पिटारी खोली तो----। अच्छी रचना है, सभी की पिटारी में कुछ न कुछ है।
जवाब देंहटाएंयूँ ही बैठे बिठाये बन गई कुछ बातें …पिटारी तो आपकी गज़ब है ही !
जवाब देंहटाएंखालीपन कभी मुस्कुराता नहीं .....gahan bhaw rashmi jee .......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना,तन मन कुछ दिनों से अस्वस्थ था पर इस रचना ने प्रेरणा दी !चित्र तो देखकर ही मुस्कराहट खिल गई चेहरे पर, आभार :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा...... शब्द तो आपके हाथ में आते है संवर जाते हैं |
जवाब देंहटाएंबेहद प्रभावशाली रचना , आभार..
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली सशक्त रचना |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"
दीदी,
जवाब देंहटाएंआपकी कविताओं पर चट से रेडीमेड कमेन्ट करना बहुत मुश्किल होता है.. कविता को पढने और फिर उसे गुनने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है.. बहुत ही दार्शनिक अन्दाज़ में लिखी कविता!!
सबके मन की सोच को लिखने में आप माहिर है दीदी ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली रचना..
जवाब देंहटाएंपता है न
जवाब देंहटाएंपलक झपकते सारे दृश्य बदल जाते हैं
इंतज़ार के सारे मौके ख़त्म हो जाते हैं
और तब
सन्नाटा बहुत भयानक होता है
शून्य में कही अपनी बातें
ख़ुद तक लौट आती हैं
और -------
जीवन का सच है,जब तक कोई रहता है बातें नहीं हो पाती
पर जब मौन सन्नाटा छाने लगता है तो लगता है ढेर सारी
बातें हों,लेकिन सन्नाटा जब स्थिर हो जाता है तो हम शून्य में
समा जाते हैं------
रह जाता है बातों का अधूरापन
मार्मिक और भावुकता से लिखी गहन अनुभूति
सादर
आज कल तो मेरी पिटारी ही खो गयी है ...कैसे खोलूँ मुंह उसका :):) भावों से ओत - प्रोत रचना
जवाब देंहटाएंसही है आपकी लेखनी को प्रणाम कितनी आसानी से और सरल शब्दों में आप दिल को छू लेती हैं हमेशा माँ की तरह :) सही है यह ज़िंदगी जितनी बड़ी और लंबी नज़र आती है, उतनी है नहीं। इसलिए ख़ामोशी से बेहतर है कुछ कहते सुनते रहना क्या पता यह बाते यह मुलाकातें कल हो ना...और रह जाये केवल शून्य और एक कभी न ख़त्म होने वाला मौन...
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