लोग पूछते हैं - नकारात्मक सोच क्यों है तुम्हारी ?
प्रश्नों से अनमना हुआ मन सोचता है
- इसका जवाब तो लोग ही अच्छी तरह दे सकते हैं !
लोग,
हर कदम के आगे नकारात्मक स्थिति पैदा करते हैं
तब तक
जब तक खुद पर संदेह न होने लगे !
और संदेह होते ही सबक
- आरम्भ से पहले ही अविश्वास सही नहीं …
ये लोग,
आज तक मेरी समझ से बाहर रहे
जब डरोगे तो धिक्कारेंगे -'इस डर के आगे कौन मदद करेगा!'
और डर पर भविष्य की लगाम डालकर
तिनके सा हौसला
बरगद की जड़ों सा दिखाओगे
तो माथे पर बल डालकर यही सवाल करेंगे -
'यह सही होगा?
ज़िन्दगी बहुत लम्बी होती है …
मुश्किलें कहीं भी किसी भी रूप में आ सकती हैं
जितनी आसानी से हम निर्णय लेते हैं
ज़िन्दगी उतनी ही कठिन
और रहस्यात्मक होती है ' ....
वाकई -
मैंने लोगों से अधिक ज़िन्दगी को कठिन नहीं पाया
और रहस्य जो भी थे
उसके पीछे शुभचिंतक लोगों के घातक चेहरे थे
जिनकी रहस्यात्मक मंशा यही रही
कि जिसके घर पर बिजली गिरी है
वह घर जलकर राख हो जाए
ताकि
शायद राख से कोई मुनाफा हो जाए
न भी हो तो आगे के लिए कोई कहानी तो होगी !
लोग !
समझ जाते हैं
जवाब देंहटाएंकुछ लिखा है
जो नकारात्मक है
पहचान होती है
उन लोगों को
नकारात्मकता की
बहुत ज्यादा
यहाँ और वहाँ
जहाँ सकारात्मक
पहुँच भी नहीं पाता है
ना ही कोशिश करता है
कभी जाने की
क्योंकि उसे कहाँ
जरूरत होती है
कहीं जाने की
पर पूछने से
ही पता चल
जाता है किसी के भी
कि उसका सच में
पता क्या है और
वो ढूँढ क्या रहा है
सकारात्मक के पास
कभी भी प्रश्न नहीं होते
क्योंकि उसके पास ही तो
बस उसके पास ही
सारे उत्तर होते हैं !
लोग की चिंता आज क्यूँ .....
जवाब देंहटाएंवे तो हर हाल में कुछ ना कुछ कहते हैं
हमसे बेहतर कौन जान सका है
जिन्हे कुछ नहीं कहना वे हम जैसे हाल में रहते हैं
..........
सच में ! यह मुएं लोग ही सारे फसाद की जड़ होते हैं, जो न चैन से जीने देते है न मरने देते है, ना आगे बढ़ने देते हैं न पीछे हटने देते हैं। आखिर यह लोग होते ही क्यूँ है :-)
जवाब देंहटाएंऔर रहस्य जो भी थे
जवाब देंहटाएंउसके पीछे शुभचिंतक लोगों के घातक चेहरे थे
जिनकी रहस्यात्मक मंशा यही रही
कि जिसके घर पर बिजली गिरी है
वह घर जलकर राख हो जाए
ताकि
शायद राख से कोई मुनाफा हो जाए......................................
एक दम सही कहा दीदी.....लोग ना जीते है और ना जीने देते हैं
उस ब्राह्मण की कहानी याद आ गई जिसे दान में बछिया मिली थी और लोग उसे कभी कुत्ता तो कभी कुछ और बता रहे थे.. या फिर उस परिवार की जो एक घोड़ा खरीदकर लौट रहे थे तो कभी लोगों ने उन्हें घोड़े पर न बैठने के कारण बेवक़ूफ़ बताया और दुबारा बैठने के कारण अत्याचारी...!!
जवाब देंहटाएंआप एक व्यक्ति को हर समय खुश रख सकते हैं या हर किसी को एक वक़्त खुश कर सकते हैं.. हर किसी को हर समय खुश करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है... लोगों की फ़िक्र छोड़िए और दिल की सुनिये!! सारी नकारात्मकता समाप्त!! दिल तो पागल है - लेकिन इस दुनिया में पागल ही सच्चे हैं, क्योंकि वो ठीक होने का ढ़ोंग नहीं करते!!
उस ब्राह्मण की कहानी याद आ गई जिसे दान में बछिया मिली थी और लोग उसे कभी कुत्ता तो कभी कुछ और बता रहे थे.. या फिर उस परिवार की जो एक घोड़ा खरीदकर लौट रहे थे तो कभी लोगों ने उन्हें घोड़े पर न बैठने के कारण बेवक़ूफ़ बताया और दुबारा बैठने के कारण अत्याचारी...!!
जवाब देंहटाएंआप एक व्यक्ति को हर समय खुश रख सकते हैं या हर किसी को एक वक़्त खुश कर सकते हैं.. हर किसी को हर समय खुश करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है... लोगों की फ़िक्र छोड़िए और दिल की सुनिये!! सारी नकारात्मकता समाप्त!! दिल तो पागल है - लेकिन इस दुनिया में पागल ही सच्चे हैं, क्योंकि वो ठीक होने का ढ़ोंग नहीं करते!!
सच कहा दी...............
जवाब देंहटाएंऐसे लोगों से खाली होती दुनिया तो जीना किस कदर आसां होता....
बेलौस.......सकारात्मक जीवन!!!
सादर
अनु
लोगों की स्वार्थी मानसिकता पर सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंये लोग भी न चलते है न चलने देते है..काँटों के जाल खुद ही बिछाकर खुद ही आ जाते है मरहम के नाम पर नमक लगाने..बहुत ही सार्थक रचना..
जवाब देंहटाएंhttp://mauryareena.blogspot.in/
जानता हूँ समस्या नकारात्मक सोच है और समाधान सकारात्मक सोच है। काश ये सोचना वश में होता! हम सोचना चाहते हैं मगर लोग सोचने नहीं देते।
जवाब देंहटाएंसच ! लोग..ये लोग..
जवाब देंहटाएंमन के अँधियारे से पूँछें, राह कौन सी जायें हम।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति को आज की बुलेटिन हिंदी ब्लॉग्गिंग और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंलोग क्या कहेंगे...लोगों को संतुष्ट करने में हमारी ऐसी तैसी हो जाती है...लोगों का तो काम है कहना...
जवाब देंहटाएंकुछ तो लोग कहते ही रहते हैं ! मन में संदेह पैदा करहोने नकारात्मक होने का ताना भी !
जवाब देंहटाएंलोग हैं तो कुछ न कुछ कहेंगे भी ... पर आराम से वही रहते हैं जो लोगों को भीड़ से ज्यादा नहीं समझते ...
जवाब देंहटाएंसब अपनी सोच का परिणाम ही है ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गम्भीर चिंतन कराती रचना ..
दी को नववर्ष की शुभकामना!
Log to kahte hi rahenge,,, logo ka kam he kahna..!
जवाब देंहटाएंBahut hi badhiya.
नकारात्मकता हर हाल में स्वयं को ही हानि पहुंचाती है...
जवाब देंहटाएंबहुत गहन सही कहा आपने ज़िंदगी से ज्यादा लोगों को समझना कठिन होता है |
जवाब देंहटाएंमैंने लोगों से अधिक ज़िन्दगी को कठिन नहीं पाया
जवाब देंहटाएंऔर रहस्य जो भी थे
उसके पीछे शुभचिंतक लोगों के घातक चेहरे थे
एक सच्चाई है इन पंक्तियों में ....
सशक्त अभिव्यक्ति
सादर