कुछ गीली मिट्टी ले आई थी मैं बचपन के खेल से
सोचा था -
जब जब हम इकट्ठे होंगे
खेलेंगे उससे
मिटटी सने हाथों को देख
मासूम हँसी हँस लेंगे
पर,
मिट्टी -
जाने किस दिन
जाने किस दिन
जाने कैसे
सूख गई
सूख गई
गीला करने को बहुत पानी मिलाया
आँसू भी मिलाए
पर मिट्टी !
गीली क्या, हल्की भी नहीं हुई
……
शायद इसीलिए हम एक चेहरे पर
दूसरा चेहरा लिए घूमते हैं
हँसने के नाम पर
होठ फैला देते हैं
…! तुम्हें मैं बनावटी दिखती हूँ
मुझे तुम !!!
बहस कैसी ?
साबित क्या करना है अब ?
बस एक बात बताना
तुमने थोड़ी मिट्टी नहीं उठाई थी
???
अगर उठाया हो तो अगली बार ले आना
अपनी अपनी मिट्टी मिला देंगे
शायद .... शायद …
मासूमियत लौट आए हमारे चेहरे में
और हम एक दूसरे का हाथ थाम
बेसाख्ता हँसते जाएँ - बचपन की तरह
shayad phir se bachpan ka aanad aa jaye ...ati sundar ......
जवाब देंहटाएंकोई तो लौटा दे ...मेरा बचपन ....
जवाब देंहटाएंहोंठो की मुस्कान में ढल के
ग़म आया है , भेस बदल के ...
जीवन सफ़र के अनुभव की तेज धूप सूखा कर देती हैं रिश्तों की नमी !
जवाब देंहटाएंतुम्हें मैं बनावटी दिखती हूँ
जवाब देंहटाएंमुझे तुम !!!
बहस कैसी ?
साबित क्या करना है अब ?
Sach Kaha Apne ..... Sara Aadambaer to samjh aa hi raha hai ..... Bhetreen rachna
जीवन की इस अंधी दौड़ में हमारे बचपन की मासूमियत न जाने कहाँ कब ख़त्म
जवाब देंहटाएंहो गयी पता ही न चला ! हर बात में औपचारिकता ने घेर लिया है ! हमारा हंसना, बोलना यहाँ तक की जीने में भी बनावटीपन झलकने लगा है , इसके कारण हजारों हो सकते है बचपन की इस मासूमियत वही बचा पाता है जिसका व्यक्तित्व सरल है जिंदादिल है, शायद बहुत कम ऐसे लोग हो , आपकी रचना मन को छू गयी क्योंकि मै जानती हूँ उस मिटटी को जिसका जिक्र आप कर रही है,!
aaj kahan rishton me nami bachi hai kitna hi koshish kar lo jo mitti sookh chuki hoti hain wo phir nam nahi hua karti
जवाब देंहटाएंअब न वो बचपन न वो मिट्टी..सब कुछ बदल गया....
जवाब देंहटाएंभोले बचपन में लौटने के लिए ... भोला होना जरूरी है ... उस मिटती से प्यार होना जरूरी है ... भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंवो गीली मिट्टी और घरोंदे और बचपन :)
जवाब देंहटाएंकोई लौटा दे !!
गीली मिट्टी
जवाब देंहटाएंअच्छा हुआ
वहीं रह गई
बचपन के साथ
पानी की कमी
वैसे भी होने लगी
पचपन तक
पहुँचने की पता
चल चुकी है
लगता है
उसे ये बात
मिट्टी खुद होने
के लिये जब
बढ़ रहा हो शरीर
तब कहाँ किसी को
महसूस होता है
सुखा लेना है या
कुछ नमी भी
ले जाना जरूरी
होता है यहाँ से
निकलते समय
अपने साथ ।
काश मिट्टी पुनः पहले सी नम हो जाये।
जवाब देंहटाएंबचपन भावनाओं में होता है । बचपन को जीने के लिये बच्चों जैसी भावनाएं होनी चाहिये । अच्छी कविता ।
जवाब देंहटाएंसुखद ऐहसास।
जवाब देंहटाएंमिट्टी है तो मिट्टी होगी।
कागज़ की कश्ती जो आनंद देती थी...वो अब फोक्सवैगन में खोज रहे हैं सब...खिलौनों के दाम अब बच्चों को तो नहीं उनके अभिभावकों को ज्यादा संतोष देते हैं...बच्चे तो उसके गत्ते में ही ख़ुशी खोज लेते हैं...
जवाब देंहटाएंले आई हूँ मिट्टी
जवाब देंहटाएंखुलकर हँसे ज़माना गुजर गया
आइये मिला कर खिलखिलाए
धत्त तेरे की
जवाब देंहटाएंइतना आसान है
खिलखिलाना
________ है न हाइकु
बचपन की मिट्टी और मिट्टी के खिलौने.. वो हामिद का चिमटा, वो सोमारी मेले में मिलने वाला कुल्हिया-चुकिया... अपनी मिट्टी से उखड़कर हम कहीं से कहीं रोप दिए गये हैं... बचपन तो अब अपने बूढे माता-पिता की प्रतीक्षारत आँखों में ही दिखता है.. अपना भी और उनका भी!!
जवाब देंहटाएंदीदी, मन को झकझोर गई यह कविता!!
पूरी जिंदगी न जाने क्या साबित करने में लगा देते हैं हम :(
जवाब देंहटाएंजीवन की भाग दौड़ में कितनी दूर हो गए हैं हम बचपन की मासूमियत से...बहुत भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंमिट्टी से जुड़ा हमारा अस्तित्व बचपन में बहुत करीब होता है उसके |
जवाब देंहटाएंbehad khoobsurat.......
जवाब देंहटाएंसच है ... वो बचपन का भोलापन और चंचलता मिल जायेगी जो अपनी-अपनी मिटटी साँझा कर ली हमने
जवाब देंहटाएंदर्द जाता ही नहीं बचपन से बिछड़ने का
काश वो मासूमियत हमेशा बनी रहती तो ये दिखावटी दुनिया आज अपनी सी लगती
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंन जाने क्यूँ ह्रदय तड़प कर रह जाता है इन भावनाओं में डूबकर..
जवाब देंहटाएंमिट्टी से जुड़े हम और हमारी सोच कई बार कितने गहरे उतरती है
जवाब देंहटाएंजहां सब कुछ होते हुये भी एक भीगा पन होता है जितना भीतर उतरोगे
उतनी ही नमी नज़र आएगी
भाव मय करती यह अभिव्यक्ति
सादर
मिट्टी से जुड़े हम और हमारी सोच कई बार कितने गहरे उतरती है
जवाब देंहटाएंजहां सब कुछ होते हुये भी एक भीगा पन होता है जितना भीतर उतरोगे
उतनी ही नमी नज़र आएगी
भाव मय करती यह अभिव्यक्ति
सादर
I loved the first line! Beautiful poem!:)
जवाब देंहटाएंI was wondering if you like reading Hindi mythological fiction based on Mahabharatha, then I'll be happy to send you a review copy (You just have to write an honest review on this blog within 20 days after receiving the book). If yes, please write to me on my blog. I'll send you the copy. Thank you!:)