26 जनवरी, 2014

यह दिन इतिहास में विशेष रहे




फ्रॉक के घेरे को गोल गोल घुमाती
खुद घेरे के संग गोल गोल घूमती
मैंने सुना था तुम्हारा नाम
और नन्हें मन ने सोचा था - कौन है ये इमरोज़ !
थोड़ी बड़ी हुई तो जाना -
    अमृता का इमरोज़ !
उस उम्र ने माना - कोई किसी एक का होकर रह सकता है
वरना बकवास थी सलीम की बातें
अनारकली - बेचारी !
सोलहवें पड़ाव पर शिवानी की 'कृष्णकली' ने मन की ऊँगली थामी
यूँ ही उसका नायक प्रवीर दिखने लगा
और कली की बलखाती बातों में 'मैं' नज़र आई  …
उतार-चढ़ाव-उतार के ऊँचे-नीचे रास्तों का अनुभव मिला
तो एक बार फिर इमरोज़ याद आया
……।
'कोई नम्बर देगा क्या ?
फोन करुँगी तो वे बात करेंगे भी क्या ?'
सवालों में उलझने को हुई
तो कृष्णकली की तरह सारी गिरहें काट डालीं
और लगा दिया नम्बर  …
अरे बाप रे !
ये तो बज उठा है
क्या करूँ,क्या करूँ !!! … रिसीवर उठ गया
'हलो'
'इमरोज़' ?
हाँ मैं इमरोज़ बोल रहा हूँ '
कुछ देर के लिए मेरी आवाज फँस गई
फिर साहस किया -
बोली -
और फिर दिल्ली के हौज-ख़ास पहुँच गई !
बेटी को हिदायत थी - 'सहज तस्वीरें लेना'
खुली छत पर इमरोज़ का साथ
कबूतरों की बातें
वर्त्तमान में अमृता का आना-जाना
सबकुछ - अद्भुत था !
बरगद सा इमरोज़
और मैं -
पौधा कहूँ खुद को
या सूर्य किरणें !
कभी मैंने ऊँची निगाहें कीं
कभी वाष्पित किया इमरोज़ के अमृतमय ख्यालों को
…… इमरोज़ तठस्थ रहे !
कोई विशेष चाह नहीं
सिवाए अमृता के
और मैं विस्मित  … यह सत्य !
समर्पण की यह परिभाषा
इतिहास के स्वर्णिम पन्ने दोहराते रहेंगे
…हर 26 जनवरी को मेरे भीतर गोल गोल घूमती अबोध लड़की यही कहेगी
"यह विशेष जन्म हर युग में हो
और यह दिन विशेष रहे"
सोचती हूँ,
जब एक बच्चे की रुदन 26 जनवरी  .... को धरती पर उभरी
तो क्या उसमें 'माँ' की बजाय 'अमृता' थी !

23 टिप्‍पणियां:

  1. मोहब्बत की एक नई परिभाषा... मोहब्बत का एक नया अंदाज़... मोहब्बत की एक नई परवाज़... ऐसा शख्स आज के ही रोज़ पैदा हो सकता था.. कोई बड़ा-छोटा नहीं, कोई ज़ात-मजहब नहीं, कोई ज़ुबान का फ़र्क़ नहीं... मोहब्बत की ज़ुबान.. एक ख़ूबसूरत नज़्म इमरोज़ के लिए!!
    आज यही कमेण्ट हरकीरत जी की एक नज़्म पर किया है और फिर आपके लिए भी यही!!

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  2. अरे बिना मॉडरेशन के कमेण्ट छप गया!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
    अच्छा लगा आज के दिन!!

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  3. बहुत खूब ..मोहब्बत का नया रुप..सुन्दर..

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (27-01-2014) को "गणतन्त्र दिवस विशेष" (चर्चा मंच-1504) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    ६५वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. हाँ मुझे भी लगा पहले कहीं किसी और ब्लाग पर तो नहीं कर दी टिप्पणी सलिल जी :D

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  6. समर्पण की यह परिभाषा
    इतिहास के स्वर्णिम पन्ने दोहराते रहेंगे / waah

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  7. अत्यंत भावात्मक ,सुन्दर सार्थक रचना ,अनेकों बार पढ़ सकती हूँ इसे ,बहुत बहुत बधाई

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  8. भावों की बेहतरीन प्रस्तुति ....आपको बधाई और इमरोज़ जी को जन्मदिन की शुभकामनाएँ!!

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  9. समर्पण की परिभाषा इमरोज !
    बहुत अच्छा लगा इसे पढ़ना !!

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  10. बेहतरीन प्रस्तुति .... इमरोज़ जी को जन्मदिन की शुभकामनाएँ!!

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  11. अमृता इमरोज
    एक ऐसा रूहानी पाक रिश्ता, जिसे हमारे इतिहास के स्वर्णिम पन्ने दोहराते रहेंगे सदियों तक, हमारा साहित्य गर्व करेगा भविष्य जान पायेगा कि, यह उस गाथा का नाम है जहाँ हाड मास की काया जब मंदिर-सी हो जाती है तो, पूजा की धूप सी अंतर से उठने लगती एक ऐसी सुगंध जिसका नाम है मुहब्बत !
    बहुत सुन्दर रचना !

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  12. इमरोज़ को मैं आम इंसानों की तरह एक सामान्य इंसान नहीं मानती ! रूहानी मोहोब्बत को जब मानव रूप धरने का मन हुआ तो उसने इमरोज़ की रूप में आकार लिया ! इमरोज़ जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें !

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  13. अत्यंत भावनात्मक और प्रेम से भरे शब्द .... बहुत ही सुंदर

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  14. प्रेम से सरोबर ... नई परिभाषाएँ गढते भाव ... लाजवाब ...

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  15. समर्पण की यह परिभाषा
    इतिहास के स्वर्णिम पन्ने दोहराते रहेंगे
    …हर 26 जनवरी को मेरे भीतर गोल गोल घूमती अबोध लड़की यही कहेगी
    "यह विशेष जन्म हर युग में हो
    भावनाओं का अनुपम संगम ....
    आमीन .....

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  16. बहुत गहरी पंक्तियाँ, प्रेम की अपनी ही दुनिया।

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  17. सच्चा प्रेम और समर्पण का एहसास लिए
    सुन्दर भावपूर्ण रचना
    सादर !

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  18. अमृता का इमरोज-  एक पाक रिश्ता
    और इन दोनों को समपित आपका ये खूबसूरत काव्य.... अंकित हो गया मेरे दिल में।

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एहसास

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