आज महिला दिवस है,
दिवस की सार्थकता के लिए
सुनो ऐ लड़की
तुम्हें जीना होगा
और जीने के लिए
नहीं करना कभी हादसों का जिक्र
क्योंकि उसके बाद जो हादसे होते हैं
पारिवारिक,सामाजिक और राष्ट्रीय
उसमें तुम्हारे हादसे
सिर्फ तुम्हें प्रश्नों के कटघरे में डालते हैं !
तुम आज भी
जाने कैसे सोचती हो
कि तुम्हारी चीखों से भीड़ स्तब्ध हो जाएगी
निकल आएगा कोई भाई उस भीड़ से
और तुम्हारी नक्कारा इज्जत के लिए
लड़ जाएगा आततायिओं से
याद रखो,
सच्चाई फिल्मों सी नहीं होती
और अगर कभी हुई
तो उसके परिवार के लोग तुम्हें कोसेंगे
फिर दूर दूर तक कोई गवाह नहीं होगा
और नहीं होगी कोई राहत की नींद तुम्हारी आँखों में …
इन लड़ाइयों से बाहर निकलो
और जानो
इज्जत इतनी छोटी चीज नहीं
कि किसी हादसे से चली जाए !
इज्जत तो उनकी नहीं है
जो तुम्हें भूखे भेड़िये की तरह खा जाने को आतुर होते हैं
खा जाते हैं
उस हादसे के बाद
वे सिर्फ एक निकृष्ट,
हिंसक
हैवान रह जाते हैं !
इस सत्य को जानो
अपने संस्कारों की अहमियत समझो
भीख मत माँगो न्याय की
अपना न्याय स्वयं करो
- अपने रास्तों को पुख्ता करो
अगली चाल में दृढ़ता लाओ
मन में संतुलन बनाओ
फिर देखो किसी की ऊँगली नहीं उठेगी
नहीं खुलेगी जुबान !
तुम अपनी दृष्टि घुमाओ
यह जो दिवस तुम्हें मिला है
उसे वार्षिक बनाओ
एक युग बनाओ ....
यूँ सच भी यही है कि नारी एक युग है
जिसने घर की बुनियाद रखी
आँगन बनाया
बच्चों की पहली पाठशाला बनी
पुरुष की सफलता का सोपान बनी
…
दुहराने मत दो यह कथन
कि - अबला जीवन हाय ....
आँसू उनकी आँखों में लाओ
जो तुम्हारी हँसी छीनने को बढ़ते हैं
स्वत्व तुम्हारा,अस्तित्व तुम्हारा
कोई कीड़ा तुम्हारी पहचान मिटा दे
यह संभव नहीं
उठो,
मुस्कुराओ
मंज़िल तुम्हें बुलाती है
निर्भीक बढ़ो
इतिहास के पन्नों पर
अपनी स्वर्णिम गाथा लिखो
अपनी लडाई स्वयं लड़ने का सामर्थ्य रखना ही होगा !
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रेरक जैसी कि आप हमेशा होती हैं !
आज महिला दिवस पर ऐसी ही प्रेरक रचना की अपेक्षा थी आपसे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक रचना है, ! आज एक सबसे बड़ी क्रांति की जरुरत है,
सेक्सुवल रेवोल्यूशन की, आर्थिक तो वह पहले से ही है !
खास पसंद आयी यह पंक्तियाँ …
दुहराने मत दो यह कथन
कि - अबला जीवन हाय ....
आँसू उनकी आँखों में लाओ
जो तुम्हारी हँसी छीनने को बढ़ते हैं
स्वत्व तुम्हारा,अस्तित्व तुम्हारा
कोई कीड़ा तुम्हारी पहचान मिटा दे
यह संभव नहीं
उठो,
जवाब देंहटाएंमुस्कुराओ
मंज़िल तुम्हें बुलाती है
निर्भीक बढ़ो
इतिहास के पन्नों पर
अपनी स्वर्णिम गाथा लिखो
महिला दिवस पर प्रेरक पंक्तियाँ..
सच है इज्ज़त इतनी छोटी नहीं कि हादसों से चली जाए ... निर्भीक बन खुद के लिए स्वयं ही न्याय करना होगा ... सार्थक रचना .
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट ....मन को ऊर्जा देते भाव.....
जवाब देंहटाएंयूँ सच भी यही है कि नारी एक युग है
जवाब देंहटाएंजिसने घर की बुनियाद रखी.…
पर इस युग का क्या माँ। ....... आज तक नहीं समझ आया। ……
समझना क्या है ! युग है और हमेशा रहेगा, खुद पर भरोसा रखना है
हटाएंअपने हको को जान के
जवाब देंहटाएंअपने हदों को पार कर के
जीना बहुत मुश्किल भी नहीं होता
बहुत कुछ सिखलाने में सक्षम होती है आपकी रचना
नमन आपकी लेखनी को
सार्थक पुकार, सामयिक और आवश्यक
जवाब देंहटाएंमहिलाओं को अपनी लड़ाई खुद लड़कर सबला बनना होगा ! सुंदर प्रेरक सृजन...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - पुरानी होली.
उत्कृष्ट भाव लिए प्रेरणा देती रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
आपका यह आह्वान आज के युग का कड़वा सच है!! कामना है कि इस तरह के दिवस बनाने की आवश्यकता न हो!!
जवाब देंहटाएंआँसू उनकी आँखों में लाओ
जवाब देंहटाएंजो तुम्हारी हँसी छीनने को बढ़ते हैं--प्रेरणा देती हुई रचना ,बधाई महिला दिवस की
सार्थक और सामयिक पुकार....
जवाब देंहटाएंओजपूर्ण रचना...सह-अस्तित्व के युग में महिलाओं की भागीदारी को उचित सम्मान मिलना ही चाहिये...महिला दिवस की शुभकामनायें...
जवाब देंहटाएंहाँ लड़ना ही होगा .
जवाब देंहटाएंयूँ सच भी यही है कि नारी एक युग है
जवाब देंहटाएंजिसने घर की बुनियाद रखी
आँगन बनाया
बच्चों की पहली पाठशाला बनी
पुरुष की सफलता का सोपान बनी
...एक शाश्वत सत्य...बहुत सशक्त अभिव्यक्ति...शुभकामनायें!
संघर्ष ही स्त्रीत्व है, अस्तित्व का आधार है ... प्रेरक रचना ...
जवाब देंहटाएंमेरे लिये
जवाब देंहटाएंपहली लड़की
मेरी माँ थी
थी क्योंकि
वो मर गई
मेरे लिये
दूसरी लड़की
मेरी आधा
दर्जन बहने
जिसमें से एक
मर गई
बाकी जिंदा हैं
जो मरी
वही होता है
इसलिये मरी
जो जिंदा हैं
कुछ नहीं
कहती हैं
जरूरी है
कुछ नहीं कहना
सब कुछसब से
मैं चाहता हूँ
सम्मान करना
महिलाओं का
पर मुझे आज
तक मौका नहीं
दिया किसी ने
सर झुकाने का
महिला दिवस
मुबारक हो
महिलाओं को
माफी भी
कुछ भी
कह देने
के लिये ।
बहोत रो लिए ..अब हमें यही करना है.....
जवाब देंहटाएंस्वत्व तुम्हारा,अस्तित्व तुम्हारा
जवाब देंहटाएंकोई कीड़ा तुम्हारी पहचान मिटा दे
यह संभव नहीं
................................. सार्थकता लिये सशक्त अभिव्यक्ति
ओज़स्वी .. ऊर्जा का भाव भारती रचना ... उठना और आगे बढ़ना भी खुद ही से हो सकता है संभव ... सार्थक अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंअब यही अंतिम विकल्प है हमारे पास .
जवाब देंहटाएंनिर्भीक आहवाहन सच मे इसी शक्ति के साथ युग बदलना होगा और बदलेगा जरूर विश्वास रखना भी होगा॥ हमेशा की तरह अच्छी कविता रश्मि जी बधाई
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त
जवाब देंहटाएंदिवस की सार्थकता के लिए
जवाब देंहटाएंसुनो ऐ लड़की
तुम्हें जीना होगा ... बहुत ही कटाक्ष पूर्ण आह्वाहन .. बहुत सुन्दर सृजन के लिए बधाई ..