जन्म के बाद मृत्यु
तो निःसंदेह मृत्यु के बाद जन्म
कब कहाँ जन्म
और कहाँ मृत्यु
सबकुछ अनिश्चित … !
कल्पना का अनंत छोर
जीने का प्रबल संबल देता है
साथ ही
मृत्यु की भी चाह देता है
चाह निश्चित हो सकती है
हो भी जाती है
पर परिणाम सर्वथा अनिश्चित
!!!
प्रयास के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं !!!
……………………
चलो एक प्रयास हम कल्पना से परे करें
मृत्यु के बाद का सत्य जानें
यज्ञ करें
विज्ञान की ऊँगली थाम आविष्कार करें
मृत शरीर की गई साँसों की दिशा लक्ष्य करें
सूक्ष्म ध्वनिभेद पर केन्द्रित कर सर्वांग को
…आत्मा में ध्यान की अग्नि जला
असत्य की आहुति दे
उस सूक्ष्मता को उजागर करें
…।
पाप-पुण्य की रेखा से परे
ईश्वरीय रहस्य को जाग्रत करना होगा
एक युग
एक महाकाव्य
एक महाग्रंथ का निर्माण करना होगा
जन्म-मृत्यु
इन दोनों किनारों को आमने-सामने करना होगा
संगम में मुक्ति है
तो उसी संगम में ढूंढना होगा
प्रेम का तर्पण
त्याग का तर्पण
मोह का तर्पण
प्रतिस्पर्धा का तर्पण
कुछ यूँ करना होगा
मृत्यु के पार सशरीर जाकर
आत्मा से रूबरू होना होगा -
अद्भुत लेखन .... नमन आपकी लेखनी को दी
जवाब देंहटाएंआप को पढ़ कर ,अहसासों की गहराई महसूस कर सकता हूँ ....
जवाब देंहटाएंटिप्पणी की औकात नही मेरी .......
स्वस्थ रहें!
आपका आशीष बहुत है, सादर
हटाएंअद्भुत अहसास..
जवाब देंहटाएंसुंदर, आध्यात्मिक आव्हान .....
जवाब देंहटाएंअद्भुत अभिव्यक्ति , शब्दों में भावों की अथाह गहराई !
जवाब देंहटाएंसादर !
गहन चिंतन ...
जवाब देंहटाएंचलो एक प्रयास हम कल्पना से परे करें
मृत्यु के बाद का सत्य जानें
जन्म, मृत्यु और निर्वाण... हम आदिकाल से जन्मोत्सव करते आए हैं... जन्म का अर्थ जश्न... अगर इसी पैमाने से देखा जाए तो मृत्यु तो इसी जन्म का उच्चतम शिखर है.. तो फिर इसके लिये शोक, अवसाद और मातम क्यों??
जवाब देंहटाएंन जन्म आरम्भ है न मृत्यु अंत... एक चक्र है.. कहाँ से शुरू - कहाँ पर समाप्त, हम केवल अनुमान लगाते हैं. इस चक्र से मुक्ति कम उलझाव अधिक है. एक बार निकल गए तो आत्मा का परमात्मा में विलय.. यही सत्य है!!
दीदी, आपकी कविताएँ, कम से कम मेरी चिंतन -प्रक्रिया को गति प्रदान करती है!!
भाई के चिंतन को प्रवाह, तो मैं अपनी कलम की पूजा कर सकती हूँ
हटाएंहृदय की अथाह गहराई से निकले शब्द !
जवाब देंहटाएंअद्भुत है आपका लेखन
जवाब देंहटाएंपर इसी जगह
पर खुद को रख
कर कुछ कहूँ
बहुत हिम्मत
है आप में
इस जन्म
में देख लिये
हों जिसने
कई जन्म
उसके लिये
उसी तरह बस
जैसे दो के बाद
तीसरा नहीं
या लड़का हो
या लड़की
एक के बाद
बंद कर ही
डालनी चाहिये
घर की खिड़की
जिंदगी एक में
ही जब दे
देती है तृप्ती
दूसरे की सोच
होना ही दिखा
देता है किसी के
मन की शक्ति :)
मृत्यु के पार सशरीर जाकर
जवाब देंहटाएंआत्मा से रूबरू होना होगा -
...बहुत गहन अहसास...अद्भुत प्रस्तुति...
बहुत खूब दीदी ,
जवाब देंहटाएंपढ़कर लगा कि अपने अंतर्मन कि व्यथा को हरने के लिए एक लक्ष्य सुनिशित कर दिया गया ।
आभार -
आईंस्टीन कुँवर
वाह, बहुत गहरी बात कही आपने
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-03-2014) को "पौधे से सीखो" (चर्चा मंच-1539) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मृत्यु का सत्य अन्तिम है क्योंकि उसके बाद कोई सत्य ज्ञात करने की क्षमता खो जाती है, मृत्यु के उस पार कुछ भी हो पर इस पार भय न हो।
जवाब देंहटाएंआध्यात्मिक पुट लिए सार्थक अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रस्तुति ...
आपकी इस प्रस्तुति को शनि अमावस्या और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंमृत्यु के पार सशरीर जाकर
जवाब देंहटाएंआत्मा से रूबरू होना होगा -
बहुत सुंदर...ध्यान का सूत्र...
जीवन के इस क्रम को भोगना ही होता है ... इसकी शुरुआत और अंत का पता नहीं चल पाता ... आत्मा से रूरू होने की चाह रहती है .. अपर इंसान समझ नहीं पाता ... देख नहीं ओपाता उस क्षण को ...
जवाब देंहटाएंचलो एक प्रयास इस कल्पना से परे करें !
जवाब देंहटाएंआपकी कल्पनाशीलता को नमन !
जन्म और मृत्यु के बीच जीवन को तलाशती पोस्ट |
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