19 मई, 2014

पहले कोशिश करो



तुमने देखी है दुनिया,
महसूस किया है प्रकृति को,
खुली हवा में ध्यान किया है,
सूक्ष्म से सूक्ष्मतर की तलाश भी की है 
पढ़ा है बहुतों को 
लिखा भी है बहुतों को 
आओ आज एक दिन के लिए हेलेन कीलर बनो 
एक अँधेरे कमरे में बन्द हो जाओ 
कोई सुराख न हो रौशनी की  
बंद कर लो कान 
जिह्वा को कैद कर दो 
और पंछी के परों पर रखो हथेलियाँ 
गर्मी से सूखे होठों पर 
पानी की एक 
बस एक बूंद रखो 
………………फिर  सन्नाटे को बिंधती अपनी धड़कनो के साथ 
उसे सोचो  … सोचते जाओ 
शायद पूरे आकाश का आभास हो 
या पूरी नदी का 
छोड़ दो  खुद को निःशब्द अँधेरे समंदर में  … 
… हेलेन कीलर तो नहीं हो सकोगे 
पर पंछी के परों की अद्भुत व्याख़्या कर सकोगे 
पानी की शीतलता रूह तक जानोगे 
एक अंश हेलेन की दुनिया लिख सकोगे - 
वो भी शायद !
पढ़ना, लिखना, और जीना - 
तीन आयाम हैं - तीनों अलग 
सुनना, और उसे दुहराना - पूरी कहानी बदल जाती है 
हम न एक जैसा देखते हैं 
न एक जैसा पढ़कर, सुनकर लेते हैं 
फिर हेलेन का शाब्दिक चित्र कैसे बना सकते हैं  ?
एक अंश हुबहू के करीब जाने के लिए 
वक़्त,परिवेश  … बहुत कुछ खोना पड़ता है 
पहले यह तो कोशिश करो !

13 टिप्‍पणियां:

  1. शायद हर इंसान अपने बेहद निजी पलों में हेलेन कीलर की तरह एक अँधेरे कमरे में ही बंद होता है और उस वक्त जो उसे झकझोरता है वह भी तो उसका नितांत निजी ही होता है ! फिर सृजन चाहे जैसा भी बन पड़े उसकी क्षमता के अनुरूप ! लेकिन कुछ पलों के लिये वह हेलेन कीलर को तो जी ही लेता है ! बहुत सुंदर रचना !

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  2. हम वाकई एक जैसा
    कहाँ देखते हैं
    कोशिश जरूरी है
    कभी कर लेने की
    एक जैसा
    करना ना भी सही
    सोच ही लेने की सही
    कुछ एक जैसा जैसा :)

    वाह बहुत सुंदर ।

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  3. एक ही जैसा देखते तो प्रकृति के अप्रितम रूप के विभिन्न आयामों का विस्तार कैसे होता .........

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  4. किसी को उसके जैसा होकर ही जाना जा सकता है , मगर कोई किसी के जैसा कैसे हो सकता है सम्पूर्ण , कुछ अंश तक जरुर पहुँचता है .... वह भी कोशिश करने पर ही !!

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  5. अपनी अपनी दृष्टि और फिर उसे कह पाना शब्दों में ... उतार पाना कूची से आसान नहीं होता ... पर अगर एक अंश महसूस भी हो सके तो बहुत है ...
    गहरे भाव लिए है रचना ...

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  6. बहुत सुंदर और गहरे भाव..प्रयास तो करना होगा

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  7. हेलेन कीलर को याद करके हम खुद को सँवारे , बेहतर बनाए , खुश रहे और अपने आपको जीवंत बनाए रखे ..कम तो नही है पर कोशिश तो करनी ही होगी..

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  8. ये कोशिश हर किसी को अपने जीवन में एक बार अवश्य करनी चाहिए...

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  9. एक अंश हुबहू के करीब जाने के लिए
    वक़्त,परिवेश … बहुत कुछ खोना पड़ता है
    सच .......

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  10. सच कहा आपने । बहिर्जगत से मुडकर यदि हम पूरी तरह अन्तर्जगत में तल्लीन होजाएं तो निश्चित ही अपने आपको पूरी तरह पा सकते हैं । हालाँकि ऐसा करना काफी मुश्किल है । पर सच यही है कि अपने अन्दर गहराई से जाने पर ही एक पूरा सच बाहर आता है । मैंने एक स्कूल के बारे में पढा था जहाँ हर बच्चे को एक दिन हेलन केलर की तरह ही रहना पडता था । यह अभ्यास चक्षुहीन लोगों की वेदना को महसूस करने का प्रयास तो था ही , अपने अन्दर झाँकने का अभ्यास भी था ।

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  11. आदरणीय रश्मि जी आपकी पंक्तियाँ पढ़कर मैं अपनी कविता "नीरवता" की कुछ पंक्तियाँ रख रहा हूँ ......आपको पसंद आएंगी

    जब कभी भी घेरता है शून्य
    चीखता है हृदय बेआवाज
    मैं अपनी आखे अंदर को खोल लेता हूँ
    मुझे समाधान को कहीं और भटकना नहीं पड़ता
    मौन मेरा मैं हो जाता है ........

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    उत्तर
    1. निःसंदेह, मौन में ही मैं है
      कोलाहल में कौन ?

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  12. एक अंश हुबहू के करीब जाने के लिए
    वक़्त,परिवेश … बहुत कुछ खोना पड़ता है!!

    कोशिश जारी रहेगी।

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 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...