जब एक लड़की
समय के चक्रव्यूह से निकल
बदहवासी में
सूखे आँसुओं
शुष्क फटे होठों से अपनी व्यथा सुना जाती है
तब … एक महिला -
आलोचक दृष्टि लिए
उसे सर से पाँव तक देखती है
सौंदर्य, पहनावा,अंदाज ....
सबको एक परीक्षक की तरह
फिर तब्दील हो जाती है एक उपदेशक में
और उसके जाते ही
उसकी ज़िन्दगी
उसके रहन-सहन का अनुमान लिए
उसकी धज्जियाँ उड़ा देती है !!!
....
एक पुरुष -
बड़े गमगीन भाव से सब सुनता है
सूखे आँसुओं को भी बहता देखता है
अथाह वेदना से भरकर
उसकी ख़ूबसूरती को आँखों में भरकर
वह उसके सर पर हाथ रखता है
चेहरे पर आँसुओं को पोछने की मुद्रा अपनाता है
लड़की के काँपते शरीर से आकलन करता है
किस हद तक बढ़ा जाए
और फिर इस कटी पतंग को
कब और कहाँ लूटा जाए.. !
....
शायद ही कोई उसमें अपनी बेटी देखता है
शायद ही किसी का दिल दहलता है
शायद ही कोई उसके हक़ में सोचता है
शायद ही कोई उसकी व्यथा मन में रखता है
हादसे पर हादसा ऐसा होता है !
…
फिर लड़की की उच्छश्रृंखलता
उसका बिंदासपन क्यूँ नहीं गवारा
जब वह तथाकथित ममतामई स्त्रियों को
हिकारत से देखती है
पुरुषों को सर से पाँव तक तौलती हैं
तो नहीं लगता तुम्हें
कि यह अक्स समाज ने उसे दिया है
समाज ने स्वयं ही अपनी जड़ें हिलाई हैं
और ....
अब इसे परिवर्तन कहो या तबाही
तुम पर है
कहते हैं न -
"तेते पाँव पसारिये जेती लंबी सौर"
चादर के अंदर पाँव है तो परिवर्तन
बाहर निकला तो तबाही !
क्यूँ? है न ?
समाज ने खुद अपनी जडे हिलाई है...,बिल्कुल सही बात कही आपने दीदी..।.हॉ
जवाब देंहटाएंकविता की अंतिम पंक्तियो मे मुझे मेरी मो की कही बातो की झलक आ रही है..
सटीक प्रश्न .... सोचने वाली बात है
जवाब देंहटाएंसमय के साथ
जवाब देंहटाएंनहीं बदले है
कुछ प्रश्न
इसी तरह
जिनका उत्तर
देना सच में हैं
बहुत ही कठिन
क्यूँ ? है ना ?
औरत के प्रति औरत का दृष्टिकोण सही नहीं है और न पुरुष का दृष्टिकोण औरत के प्रति |दोनों के दृष्टि कोण में परिवर्तन होना चाहिए |क्यों ?सच है ना ?
जवाब देंहटाएंमैं
Happy Birth Day "Taaru "
हादसे पर हादसा ऐसा होता है !!
जवाब देंहटाएंकितनी बार अनजाने में हम ऐसा व्यवहार करते हैं !
कितनी बार लिखना चाहा कि पुरुषों के सामने स्त्रियों की व्यथा कम से कम रखी जाए क्योंकि उन आँखों में भी छिपे पशु को देखना तकलीफ को और बढा देता है .
सोचने पर विवश करती है आपकी कविता !
विचारणीय प्रश्न क्यों है न?
जवाब देंहटाएंसुंदर व सटीक लेखन , रश्मि जी धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
~ I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ ~ ( ब्लॉग पोस्ट्स चर्चाकार )
बिलकुल सटीक लिखा है आपने ...सब कुछ हम इंसानों ने ही बनाया है.. सारी हदें ..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत कविता!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंआपकी रचना प्रश्नों के साथ-साथ उत्तर भी दे गई.
जवाब देंहटाएंअनुभूतियों की धज्जियां ही की जाती रहीं हैं वह भी अपनों की कैंची से.
नंगी तस्वीर समाज की .... कब हालात बदलेंगे
जवाब देंहटाएंवाह बेहद संवेदनशील रचना । पुरुष की पैचासिक मानसिकता का अल्ट्रा साउंड कर दिया आपने ।
जवाब देंहटाएंवाह बेहद संवेदनशील रचना । पुरुष की पैचासिक मानसिकता का अल्ट्रा साउंड कर दिया आपने ।
जवाब देंहटाएंमैंने स्त्री रूप को भी उजागर किया है
हटाएं
जवाब देंहटाएंवास्तव में अच्छी सोच और करने वाले विरले ही होते हैं ..कोरी सहानुभूति और दिखावा का जमाना आज जोरों पर है ..
मन को उद्वेलित करने वाली और लोगों की दुमुहीं सोच का सही आंकलन ....
एक कड़वा सच और इतनी ईमानदार अभिव्यक्ति. सीधा दिल में उतर जाती है और अवाक कर जाती है आपकी सभी रचनाओं की तरह!!
जवाब देंहटाएंकड़वा सच ...सब अपने ही चश्में से देखते है ...सादर नमस्ते दी
जवाब देंहटाएंसमाज ने स्वयं ही अपनी जड़ें हिलाई हैं
जवाब देंहटाएंऔर ....
अब इसे परिवर्तन कहो या तबाही
तुम पर है
कहते हैं न -
"तेते पाँव पसारिये जेती लंबी सौर"
चादर के अंदर पाँव है तो परिवर्तन
बाहर निकला तो तबाही !
क्यूँ? है न ? काश ये बात समाज की समझ मे आती ....बहुत ही संतुलित लेखन आभार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंशायद ही कोई उसके हक़ में सोचता है
जवाब देंहटाएंशायद ही कोई उसकी व्यथा मन में रखता है
हादसे पर हादसा ऐसा होता है !
......... इस कड़वी सच्चाई को इन पंक्तियों ने जिस तरह उज़ागर किया है, और प्रश्न किया है उसकी चोट अंतस में पड़ती है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. रश्मि जी
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंशायद ही कोई उसमें अपनी बेटी देखता है
जवाब देंहटाएंशायद ही किसी का दिल दहलता है
शायद ही कोई उसके हक़ में सोचता है
शायद ही कोई उसकी व्यथा मन में रखता है
हादसे पर हादसा ऐसा होता है !
...बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
"तेते पाँव पसारिये जेती लंबी सौर"
जवाब देंहटाएंयहाँ तो लगता है जैसे ज़माने ने चादर ही खींच ली है .......कहाँ तक पैर समेटे ......घुटने पेट हो गए हैं.....पर अभी भी लोगों के हाथ...उनकी निगाहें हैं ......की नोचने खसोटने पर तुलिं हैं.......अब कहाँ जाये वह लड़की ...जहाँ औरत ...औरत ही की दुश्मन है ...हमदर्द नहीं ...और जो हमदर्द बनने का दिखावा करते हैं ...वह वास्तव में मौका परास्त हैं.....किसपर विश्वास करे .....कौनसा खंधा ढूंढें ....
सही कहा आपने दीदी
जवाब देंहटाएंबदलते वक़्त के साथ लोगों की सोच को छोटा होते देखा है
कितना कडुवा सच है ... कठोर ... पर ध्यान से देखो तो अपना ही है ... हम सब ही जिम्मेवार हैं इसके लिए ...
जवाब देंहटाएं