02 अगस्त, 2014

अंधविश्वास भय नहीं, प्यार है




कोई कुछ कह दे
आशंका के बीज बो दे
तो उसे अंधविश्वास कहते हुए भी
मन का एक छोटा कोना
उसमें उलझ जाता है !  …

याद आता है,
बचपन में जब हम इमली,तरबूज खाते थे
तो माँ कहती थी - "ध्यान से
अगर बीज चला गया पेट में
तो पेड़ उग आएँगे  … "
ओह !
उस वक़्त तो हम हँसते थे
पर अकेले में
मन का भय तरह तरह की कल्पनायें करता
नाक,आँख,कान
सबसे टहनियाँ निकलेंगी
चेहरा - कितना बुरा हो जायेगा !  … !

याद है,
जब मेरे घर में काम करनेवाली ने मुझे डराया
"मैं भूत हूँ
जिस दिन तुम अकेली होगी
मैं तुम्हें पकड़ लूँगी  … "
नन्हीं से उम्र (करीबन ५ वर्ष की)
मैंने ढीढता से जवाब दिया था
"हुंह, मैं भाग जाऊँगी "
लेकिन  … आज भी
अकेले होते मुझे डर लगता है
कहीं वह सच में  .... !

ग्रहण के समय कितनी हिदायतें देते हैं लोग
- ग्रहण के पूर्व खा लेना है
अन्यथा तुलसी पत्ते डाल देना है
नहाकर खाना है
बाहर नहीं जाना है
वगैरह,वगैरह  …
तर्क के अचूक तीर हैं हमारे पास -
क्या पूरी दुनिया का आवागमन बंद हो जाता है
होनी तय है  … इत्यादि
....
लेकिन ,
एक आशंका मन में चहलकदमी करती है
खासकर जब वह अपने बच्चे से जुड़ी हो !
अंधविश्वासी न होकर भी
हम अंधविश्वासी जैसे हो जाते हैं
सिरहाने चाक़ू रख देते हैं
'बुरे सपने न आएँ''
बेवजह किसी की नज़र पर शक करके
मिर्ची घुमाकर नज़र उतार देते हैं
हाथ,जन्मकुंडली सब दिखा लेते हैं
सभी देवी-देवताओं के आगे खड़े हो जाते हैं
जब समय
लम्बे समय तक प्रतिकूल होता है !

कुछ लोग कहते हैं,
अंधविश्वास सिर्फ भय है
और मैं सोच रही हूँ
यह प्यार है  .... '
अपने आप से
औरों से
और विशेषकर अपने बच्चों से  …



19 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ लोग कहते हैं,
    अंधविश्वास सिर्फ भय है
    और मैं सोच रही हूँ
    यह प्यार है .... '
    अपने आप से
    औरों से
    और विशेषकर अपने बच्चों से …

    निःसंदेह ....
    ये बात कई मेरे मन में भी कई बार आई पर आपकी तरह शब्दों ने मेरा साथ नहीं दिया बहुत सुन्दर लिखा है

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  2. * ये बात कई बार मेरे मन में भी आई पर आपकी तरह शब्दों ने मेरा साथ नहीं दिया, बहुत सुन्दर लिखा है....

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  3. बहुत सुन्दर सोच को समाहित किया है

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  4. अंधविश्वास माता पिता का दिया हुआ है हमारे पूर्वजों का दिया हुआ है पुरखों का दिया हुआ है
    पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता आ रहा है मानती हूँ इस बात को, लेकिन हम चीजों के बारे में जितने आधुनिक हो गए है नए नए चीजों को अपना रहे है नयी सोच को अपना रहे है उतने अंधविश्वास के बाबत आधुनिक होकर क्यों नहीं सोच सकते ? अंधविश्वास के नए संस्करण मार्केट में कभी नहीं आ सकते क्या :) ??

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  5. कुछ लोग कहते हैं,
    अंधविश्वास सिर्फ भय है
    और मैं सोच रही हूँ
    यह प्यार है .... '
    अपने आप से
    औरों से
    और विशेषकर अपने बच्चों से …
    ...बिल्कुल सच...बहुत से अंधविश्वासों को मन मानने के लिए तैयार नहीं होता, फिर केवल बच्चों के प्यार से हम मज़बूर हो जाते हैं उन्हें मानने के लिए....

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  6. दीदी! अब ज़रा जल्दी से काला टीका लगा दीजिये इस कविता को, या नींबू-मिर्चाई लटका दीजिये... बच्चों के लिये बहुत माना अन्धविश्वास.. कभी इस छोटे भाई के लिये भी मानकर देखिये, बड़ा आनन्द आएगा!
    जय अन्धविश्वास!!

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  7. सचमुच ये प्यार ही है, असीम स्नेह ....

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  8. हारे आसपास बहुत सारे अन्धविश्वास बिखरे पड़े हैं जीवन का एक अभिन्न परिवेश बनकर । उनमें अपनेपन के अलावा एक आसान जीवन शैली भी है । हम परम्पराओं मान्यताओं और नियति को भार सौंपकर मुक्त होजाते हैं । अगर देखा जाए तो ईश्वर पर विश्वास भी तो एक अन्धविश्वास ही है पर अस्तित्त्व के लिये कितना अनिवार्य ! कितना अभिन्न ! खून में लालिमा की तरह । बहुत अच्छा विचार रश्मि जी ।

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  9. कुछ तो खास है इस अंधविश्वास नामक चीज़ में कि ‘हस्ती मिटती नहीं हमारी’ की तर्ज़ पर यह सदियों से डंटा हुआ है।

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  10. सच कहा है इस रचना में ... और मुझे तो लगता है हर किसी के मन में डर आ जाता होगा अगर कोई कुछ शंका पैदा कर दे किसी भी बात की ...

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  11. मैं सोच रही हूँ
    यह प्यार है .... '
    अपने आप से
    औरों से
    और विशेषकर अपने बच्चों से …
    सहमत हूँ आपकी बात से ...
    ये बात हर किसी के साथ कभी न कभी अवश्‍य घटित होती है .... उस बात को
    यूँ संयोजित कर प्रस्‍तुत करना ... सराहनीय है

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  12. ये सब विधि-विधान इसी लिए बनाये गए हैं ताकि लोग अज्ञात से डरें...और अकेले में भी गलत करने से बचें...सीसी टी वी के ज़माने में अब भगवान से कौन डरता है...

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  13. पहले माता पिता पर गुस्सा आता था की कैसे अन्धविश्वासी है..बड़े होने पर समझ आया की वो प्यार था..

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  14. टोन टोटके नहीं मानने वाले भी हारी बीमारी में घबराये आग में मिर्च झोंक नजर उतार ही लेते हैं ! यह विश्वास है , श्रद्धा है , प्रेम ही तो !

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  15. एक आशंका मन में चहलकदमी करती है
    खासकर जब वह अपने बच्चे से जुड़ी हो !
    अंधविश्वासी न होकर भी
    हम अंधविश्वासी जैसे हो जाते हैं
    सिरहाने चाक़ू रख देते हैं
    'बुरे सपने न आएँ''
    बेवजह किसी की नज़र पर शक करके
    मिर्ची घुमाकर नज़र उतार देते हैं
    हाथ,जन्मकुंडली सब दिखा लेते हैं
    सभी देवी-देवताओं के आगे खड़े हो जाते हैं
    जब समय
    लम्बे समय तक प्रतिकूल होता है

    एकदम सही…. जब समयलम्बे समय तक प्रतिकूल होता है, तब हम वो सब करने लगते हैं जो साधारणत: हमे ढकोसला या अन्धविश्वास लगता है

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  16. कुछ लोग कहते हैं,
    अंधविश्वास सिर्फ भय है
    और मैं सोच रही हूँ
    यह प्यार है .... '
    अपने आप से
    औरों से
    और विशेषकर अपने बच्चों से …
    … बिलकुल सही ………… अपनों के प्यार के आगे उनके लिए कुछ भी कर गुजरना प्यार ही है। .

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  17. बहुत सुंदर :)
    बाहर था देर से पहुँच पाया यहाँ पर बस । आशा है बाकी सब मंगल कार्य कुशलता से निपट चुके होंगे ।

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