25 अगस्त, 2017

प्रश्नों के घने बादल कभी उत्तर बनकर नहीं बरसते




मन - मस्तिष्क - व्यवहार
जब सामान्य अवस्था से अलग हो
तो असामान्य करार कर देने से पूर्व
यह सोचना ज़रूरी है
कि यह असामान्य स्थिति आई
तो कहाँ से आई !
क्यों आई !
क्या यह अचानक एक दिन में हो गया ?
या यह नज़र आ रहा था
और हम नीम हकीम जान बनकर
पेट दर्द की दवा दे रहे थे
घरेलु इलाज के नुस्खे ढूँढ रहे थे  ....
....
या फिर छोटे बड़े ज्ञानी बन गए थे !!!

कोई भी बात
जो हम कह लेते हैं
... वह हूबहू वही बात कभी नहीं होती
जो हमारे भीतर उठापटक करती है !
क्षमताएं भी हर किसी की
अलग अलग होती हैं
और उसके साथ व्यवहार
अलग अलग होता है !
इस अलग व्यवहार के परिणाम भी
अलग अलग आते हैं
और इन सबके बीच
........ ........ ........
प्रश्नों का सिलसिला नहीं रुकता
लेकिन,
प्रश्नों से होगा क्या ?

हम जानते हैं
....
 हम जानते हैं
कि सामनेवाला जवाब जानता है,
लेकिन जवाब देगा नहीं ...
बल्कि उसकी दिशा बदल देगा .
तो इसका उपाय क्या है !
सोचना होगा,
क्या सहज दिखनेवाला
सचमुच सहज है ? ...

..... जिन जिन विषयों पर
हम ज्ञानियों की तरह
धाराप्रवाह बोलते जाते हैं,
वह सब महज एक ज्ञान है,
जी जानेवाली आंतरिक स्थिति नहीं !

झूठ बोलना गलत है ...
निःसंदेह गलत है क्या ?
क्या इसे दुहरानेवाला
कभी किसी झूठ का सहारा नहीं लेता ?
या एक दो बार बोला गया झूठ
झूठ नहीं होता ?
और यदि उसके झूठ का औचित्य है,
तो परिस्थितिजन्य हर झूठ का एक औचित्य है !

सच ... एक कठिन मार्ग है,
कोई उस पर न चला है, न चलेगा
जिसने कुछ पा लिया, वह सत्य हो जाता है
जो हार गया, वह असत्य ...

जब हम एक बीमार के आगे
ज्ञानी बन जाते हैं,
जोशीले शब्द बोलते हैं
तो ऐन उसी वक़्त
वे सारे जोशीले शब्द ज़हर भी उगलते हैं ...
मंथन कोई भी हो,
अमृत विष दोनों निकलते हैं !
फूँक फूँककर रखे गए कदमों के भी
घातक परिणाम आते हैं !


आत्महत्या कायरता है, यह एक बोझिल वाक्य है ...
 तब तो महाभिनिष्क्रमण भी एक कायरता है !
एक कायर जब अपने मरने की योजना बनाता है,
उस वक़्त उसकी मनःस्थिति
उग्र हो या शांत,
वह अपनेआप में होता ही नहीं !
एक फ़िक़रा बोलकर
हाथ झाड़कर
आप बुद्धिजीवी हो सकते हैं
किसी को बचा नहीं सकते  ...

खामोश होकर देखिये
अधिक मत बोलिये
देखभाल करनेवाले की स्थिति को वही समझ सकता है,
जो प्यार और रिश्तों को समझ सकता है
वैसे समझकर भी क्या,
सब अपनी समझ से सही ही होते हैं  ...

कभी इत्मीनान से सोचियेगा
कि हर आदमी
कोई न कोई व्यवहार
भय से करता है
ओह ! फिर सवाल -
भय कैसा ?
नहीं दे सकते इसका जवाब,
नहीं देना चाहते इसका जवाब
नहीं दिया जा सकता इसका जवाब
आप अगर अपने प्रश्नों की गुत्थियाँ सुलझा सकते हैं
तो आप महान हैं
अन्यथा सत्य यही है
कि प्रश्नों के घने बादल
कभी उत्तर बनकर नहीं बरसते
कुछ बूंदें जो शरीर पर पड़ती हैं
उन्हें पोछकर
कतराकर
हर कोई आगे बढ़ जाना चाहता है
एक मौत के बाद
बड़ी बड़ी आँखों के साथ
कहानी सुनने के लिए  ...

7 टिप्‍पणियां:

  1. कड़ुआ सच....
    तब तो महाभिनिष्क्रमण भी एक कायरता है !
    एक कायर जब अपने मरने की योजना बनाता है,
    उस वक़्त उसकी मनःस्थिति
    उग्र हो या शांत,
    वह अपनेआप में होता ही नहीं !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-08-2017) को "क्रोध को दुश्मन मत बनाओ" (चर्चा अंक 2708) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    गणेश चतुर्थी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. उम्दा ! शुभकामनाओं सहित ,आभार ''एकलव्य"

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  4. सही कहा है आपने, सबके भीतर अपने भय के कारण होते हैं, वे भय उसके लिए उतने ही सच होते हैं जितना सीख देने वाले के लिए उसके शब्द. किसी के भी भय को पहचान कर जो उसे अभय करने का सामर्थ्य रखता हो वही सच्चा मित्र कहलाने के लायक है..कभी-कभी अपने निकट के लोग भी मनस्थिति को समझ नहीं पाते या जानबूझ कर भी अनजान बने रहते हैं. कोई भी घटना एक दिन का परिणाम नहीं होती..धीरे-धीरे ही मन कमजोर होता है..ऐसे में कोई स्नेह भरा स्पर्श ही उसे उस गर्त से निकाल सकता है

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  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन महिला असामनता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  6. दरअसल प्रश्नों के उत्तर तभी उत्तर लगते हैं जब वो अपने मन द्वारा खोजित उत्तर से मिलते जुलते हों ... अन्यथा उनके उत्तर कभी नहीं मिलते ...

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...