09 नवंबर, 2017

सुबह .... हमेशा एक सी नहीं होती




सुबह .... हमेशा एक सी नहीं होती
नहीं होता कहीं एक सा घर
घर के कोने बदल जाते हैं
बदल जाती हैं खिड़कियाँ
पेड़ों के झुरमुट
फूलों की खुशबू
फेरीवाले की पुकार
.....
एक सुबह हुआ करती थी
हम भाई बहनों की
अम्मा पापा के साथ
जिसमें जलेबी की मिठास थी
प्रभात फेरी का नशा था
जूते को चमकाते हुए
पॉलिश क्या
जीभ छूकर जूते को गीला कर लेते थे
या अपने ही कपड़े के कोने से
आँख बचाकर जूते को पोछ लेते थे !
मीठी हवा , भीनी धूप, झीनी चाँदनी
और वो गोलम्बर
.... मन्दिर की घण्टियाँ भी बजती थीं
अजान के स्वर भी झंकृत थे
सर्व धर्म एक सा सूर्योदय
चेहरे को छू जाता था ....
घर वही था कुछ वर्षों तक
पर सुबह में वह बात नहीं रही
बिना उदासी का अर्थ जाने
आंखें उदास रहने लगीं !!!
वह सुबह फिर कभी आई ही नहीं ....

बरसों बाद एक आज़ाद सूरज
खिड़की से ,
बालकनी के दरवाजे से छनकर आया
गौरैया चहकी
घर के कोने बदल गए थे
पेड़ों का झुरमुट नहीं था
लेकिन कमाल का बना वह छोटा सा घर
!!!
सुबह नन्हें पैरों को गुदगुदाती
माँ की पुकार
चूल्हें से उठती सोंधी खुशबू लगती !
गाहे बगाहे
अंग्रेजों के बूट बजते थे
मचलते पैर कई बार स्थिर हो जाते थे
लेकिन सरफरोशी की तमन्ना ने
हमारी सुबह को मरने नहीं दिया
समय की सीख कहें
या खुद का हौसला
हम अपने भींचे जबड़ों की मुस्कान में
सुबह का स्वागत करने लगे
और सुबह
एक मीठी गुनगुनाती हवा के संग
हम सबके सपनों में हम होंगे कामयाब की
धुन बन गया ....
सपने हकीकत हुए
समय की माँग पर
फिर घर बदले
बदल गई खिड़कियाँ
....
अब यादों की सुबह होती है
इस विश्वास के साथ
फिर गुदगुदाएगा सूरज
और दो बाँसुरी बोलेगी
माँ ...पापा ...
तवे पर सोंधी सोंधी रोटियाँ पकेंगी
दो दो सबके नाम से  ...

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-11-2017) को
    "धड़कनों को धड़कने का ये बहाना हो गया" (चर्चा अंक 2784)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जोकर “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. हमेशा की तरह निःशब्द करती रचना ..... सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर प्रस्तुति....बहुत व्यस्त बहुत दिनों बाद आना हुआ ब्लॉग पर प्रणाम स्वीकार करें :)

    जवाब देंहटाएं

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