18 नवंबर, 2017

सबके सब डरे हुए हैं आगत से




हम बच्चों को सिखा रहे उच्च स्तरीय रहन सहन
हर बात की सुविधा दे रहे
उसके साथ मत खेलो
ये मत खेलो
ये खेलो
कोई गाली दे तो गाली दो
मारे तो मारके आओ ...
हर विषय को खुलेआम रख दिया है
फिर ?!
कौन सी संवेदना
उनके भीतर पनपेगी !
एक कोमल लता को
डोरी से बाँधकर
हम जिस दिशा में करेंगे
वह उसी तरफ जाएगी
जन्मगत संस्कार
काफ़ी उधेड़बुन से गुजरते
और पनपते हैं !
बच्चे - बच्चे कम,
सर से पाँव तक शो पीस लगते हैं
हम कितने माहिर अभिभावक हैं
इसकी होड़ में
वे रोबोट लगते हैं !
समझ में नहीं आता
दया किस पर दिखाई जाए
हमने परिवार,
समाज,
मीडिया,
सबकुछ मटियामेट कर दिया
स्वाभाविक बचपना
नाममात्र रह गया है
वो भी कहीं कहीं
सबके सब डरे हुए हैं आगत से
लेकिन आधुनिक रेस में शामिल हैं

9 टिप्‍पणियां:

  1. डर के आगे जीत है जैसा भी कहा गया है कहीं सुना था।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार २० नवंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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  3. आदरणीय रश्मि जी बहुत ही सार्थक रचना और सच का आईना है |यही कुछ हो रहा है आजके समाज में -----

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  4. सार्थक भाव ... सही है की आज का सुविधाजनक माहोल बचपन की यादें संजोने नहीं दे रहा ...

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  5. आधुनिकता की अंधी दौड़ में भौतिकता की बसंती जा रही बांहें हमारे जीवन को यंत्रवत बनाती जा रही हैं। जीवन में स्वाभाविकता धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है इसीलिए तो हम सड़क पर घायल पड़े हुए व्यक्ति का खड़े-खड़े वीडियो बना रहे होते हैं और उसकी सहायता करने का विचार हमारे मन-मस्तिष्क में नहीं आ पाता आता भी है तो बहुत देर बाद। सुंदर रचना। बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  6. कृपया बसंती जा रही को पसरती जा रही पढ़ें। धन्यवाद।

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  7. बहुत सुन्दर... सटीक....
    जन्मगत संस्कार
    काफी उधेड़बुन से गुजरते
    और पनपते हैं......

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  8. facebook ne blog se duriyan badhaadin!

    warshon baad aapke blog pr aaya............wahi jeevat-ta hai aapki rachnaon me!

    स्वाभाविक बचपना
    नाममात्र रह गया है

    bahut hi sateek rachna................ekdum sahi kaha.....hum social media ke fake influence me aakhar hum apni maulikta toh kho hi rahe hain......ek tarah ka kritrim yuddh chal raha hai social media....kabhi jati dharm fashion region language aur bi kai tarah ke!

    aapki aisi hi sakaratmak aur hosh me laati rachnao ki sakht aawashyakta hai!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दूरियों को हम ही कर सकते हैं, कोई पढ़े ना पढ़े ... अपने ब्लॉग को ज़िंदा रख सकते हैं !
      आज नहीं तो कल कलम कोई कमाल कर ही दे

      हटाएं

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