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मैं एक माँ हूँ
जिसके भीतर सुबह का सूरज
सारे सिद्ध मंत्र पढता है
मैं प्रत्यक्ष
अति साधारण
परोक्ष में सुनती हूँ वे सारे मंत्र ...
ॐ मेरी नसों में
रक्त बन प्रवाहित होता है
आकाश के विस्तार को
नापती मापती मैं
पहाड़ में तब्दील हो जाती हूँ
संजीवनी बूटियों से भरा पहाड़ !
मेरी ममता शांत झील सी
कब सागर की लहरें बन जाती हैं
पता ही नहीं चलता ...
शिव जटा से गिरती मैं
मोक्ष का कारण बनती हूँ
ब्रह्माण्ड बनी मैं
परिवर्तन के धागे बुनती हूँ !
रक्षा के षट्कोण बनाती हूँ
दीप प्रज्ज्वलित करती हूँ
शुभ की कामना लिए
दसों दिशाओं में
मौली बाँधती हूँ
आँचल के पोर पोर में
आशीर्वचन लिखती हूँ
... घुमड़ते हैं बादल भी कभी कभी
होती है बारिश
इंद्रधनुष थिरकता है
ख्वाब पनपते हैं
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 01 दिसम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमाँ होना ही अपने आप में सब कुछ है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआइये माँ को नज़र भर देखिये
जवाब देंहटाएंकौन कहता है,खुदा होते नहीं !
अत्यंत सुन्दर भावनायें ! बधाई
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमाँ के आगे सभी सभी शब्द गौण हो जाते हैं ... कुछ पवित्र है तो बस माँ ...सादर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
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