14 दिसंबर, 2017

पुनरावृति




दिए जा रहे हैं बच्चों को सीख  !
"ये देखो
वो देखो
ये सीखो
वो सीखो
देखो दुनिया कहाँ से कहाँ जा रही है
!
गांव घर में खेती थी
अपने घर का अनाज
तेल, घी
... सब छोड़कर दूर आए बड़े शहर में
कि तुमलोगों को
आजकल की ज़िंदगी से जोड़ सकें
और तुमलोगों को अपने बड़ों का ख्याल ही नहीं
!!!."

दिए जा रहे हैं बच्चों को दोष !
"ये इतना बड़ा घर तुम्हारे लिए ही लिया
तुम दूसरे शहर में नौकरी कर रहे
वहीं बसना चाहते हो
कोई सोच ही नहीं है
.... !!!
यहाँ रहो
यहीं कुछ करो
बच्चों को बुज़ुर्गों से जुड़ने दो
भाग रही है दुनिया
उन मासूमों को कितना भगाओगे !,"
.....
चलता रहता है सिलसिला
एक हम थे !!!
हर पिछला कदम कुछ और होता है
हर अगला कदम कुछ और
..

3 टिप्‍पणियां:

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 कितनी आसानी से हम कहते हैं  कि जो गरजते हैं वे बरसते नहीं ..." बिना बरसे ये बादल  अपने मन में उमड़ते घुमड़ते भावों को लेकर  आखिर कहां!...