एक अरसा हुआ
आँखों में मॉनसून नहीं उतरा !
कभी कोई टुकड़ा बादल का गुजरा भी
तो बस गुजर ही गया ...
हिचकियाँ
जो बातों बातों में
बंध जाती थीं कभी
जाने वे कहाँ खो गईं !
अब आँखों में
न कोई नदी उतरती है
न समंदर
पाल सी लगी पलकें
स्तब्ध सी उठती गिरती हैं
रहता है इंतज़ार
शयद इस बार
मॉनसून दस्तक दे जाए
मन की सोंधी खुशबू बिखर जाए !
ना आँखों में मानसून उतरता है और ना ही दिल कभी धड़कता है। निर्जीव से जी रहे हैं हम। कविता मन को झिंझोड़ती है।
जवाब देंहटाएंसच कह रही हैं
हटाएंमानसून आता है तो मन को सूना कर जाता है नहीं आता तो उसका इंतजार..मानव मन इन्हीं द्वंद्वों में जीता है
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कवि प्रदीप और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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