03 सितंबर, 2021

बरसाने की राधिका


 


साठ की कुछ सीढ़ियां चढ़ तो गई है वह स्त्री,

लेकिन वह उम्र और कर्तव्यों का
एक ढांचा भर है !
प्रेम उसका सपना था
प्रेम उसकी ख्वाहिश थी
अपनी पुरवा सी आंखों में
उसने प्रेम के बीज लगाए थे
 प्रेम की सावनी घटा बनकर
धरती के कोने कोने में 
थिरक थिरक कर बरसी थी।
इंद्रधनुष के सातों रंग
उसके साथ चलते थे,
गति की तो पूछो मत
हिरणी भी हतप्रभ हो दांतों तले उंगली दबाती थी  ।
ख्यालों में उसके कोई देवदार सा होता
और वह अल्हड़ लता सी
उससे लिपट जाती थी,
प्रेम का अद्भुत नशा था
अद्भुत उड़ान थी
कब वह कैक्टस से उलझी
कब उसके पंख टूटे
जब तक वह समझे
संभले 
वह दो उम्र में विभक्त हो चुकी थी,
एक प्रेम
एक मौन कर्तव्य !
मौन कर्तव्यों की यात्रा में
उसके चेहरे पर 
कब थकान की पगडंडियां उगीं
कब बालों का रंग मटमैला हुआ
कब पैरों के घुटने समाधिस्थ हुए
उसे खुद भी पता नहीं चला ।
तस्वीरों में
आईने में कई बार
खुद को ही नहीं पहचान पाई है
क्योंकि ख्वाबों में आज भी वह 
विद्युत गति से नृत्य करती है
अनिंद्य सुंदरी बन
अपनी पलकों को झपकाते हुए
प्रेम के शोखी भरे गीत गाती है 
सुनती है -
रावी और चनाब के किनारे
उसके नाम की तरंगें उछालते हैं 
एक उसे हीर कहता है 
एक अपनी सोहणी बताता है 
और दोनों किनारों के 
दरमियान खड़ा 
एक जवां अधीर साया 
उसके कानों में गुनगुनाता है 
"जलते हैं जिसके लिए
तेरी आँखों के दीये .."
इसे सुनकर, रोमांचित होकर 
वह ज़िंदगी के दरवाज़े पे लगे 
खामोशी के ताले खोलती है 
मुस्कुराते  हुए 
पड़ोसी दिल से बोलती है  ... 
"वह गोकुल का छोरा 
नटखट ग्वाला 
नंदलाला  ... 
युग बदले 
पर वह 
कण भर भी नहीं बदला  ... 
तो मैं आज भी 
बरसाने की 
राधिका ही हूं ना !


8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 04 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. प्रेमपगी आत्मगाथा अजस्र रूपों में निखर रही है । इस बरसाने वाली राधा रानी से अद्भुत मिलन हुआ । अत्यन्त आह्लादित हुआ हृदय ।

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  3. वह दो उम्र में विभक्त हो चुकी थी,
    एक प्रेम
    एक मौन कर्तव्य !---वाह कितनी खूबसूरत कविता है...। मन की गहराईयों को छूती हुई। खूब बधाई स्वीकार कीजिएगा।

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  4. भले ही दो उम्र में विभक्त हो गयी हो ,लेकिन आज भी जब अधीर साया कहता है कि जलते हैं जिसके लिए तो बरसाने की राधिका समान ही खुद को समझती है । भावप्रवण अभिव्यक्ति ।

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  5. प्रेम की अजस्र धारा जब तक भीतर बहती है, कर्त्तव्य निभाने का गौरव जब तक मन में है, जीवन सुंदर है, देह एक न एक दिन सूखे पत्तों की तरह झर ही जाती है

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  6. प्रेम के रंग में सराबोर ये राधिका अपने कर्तव्यों को भी उतनी ही शिद्दत से निभा रही है ... अद्भुत हैं ये दोनों ही रूप ...

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...