जब कभी' मंदिर गई हूं
और अगर भीड़ न हुई
तो ईश्वर को अपलक देखकर
मन ही मन बहुत कुछ कहकर
लौटी हूं ।
सिद्धि विनायक में
गणपति के मूषक के कान में
अपनी चाह बोलते हुए
ऐसा लगा है
कि गणपति तक बात चली गई
और जब बात चली गई
तो देर कितनी भी हो जाए
अंधेर की गुंजाइश नहीं रह जाती !
शिरडी की भीड़ में
जब अचानक साईं दिखे थे
तो आंखों से आंसू बह निकले थे
...
यूँ मैं मंदिर कम ही जाती हूं
विश्वास है
कि ईश्वर मेरे पास,मेरे साथ हैं
और ऐसे में जाना
लगता है कि उनकी ही इच्छा होगी ...
दरगाह में धागा बांधते हुए
मैं धागा बन जाती हूं
धागे में दुआ मतलब
मुझमें दुआ ...
तो धागे संग दुआ बांधती हूं
और दुआओं के साथ
खुद बंधती चली जाती हूं ।
स्वर्ण मंदिर गई
तो उसके निकट
अपने आप में एक अरदास बन गई हूं
कड़ा लेकर ऐसा लगा
जैसे मेरा मन ही स्वर्णिम हो गया हो ।
महालया के दिन
पूरी प्रकृति माँ दुर्गा बन जाती है
कलश स्थापना करते हुए
मिट्टी में जौ मिलाते हुए
यूँ महसूस होता है कि
मैं मिट्टी से एकाकार हो रही हूं
और चतुर्थी से हरीतिमा लिए
नौ रूप का शुद्ध मंत्र बन जाती हूं ।
अखंड दीये का घृत बन
स्वयं में एक शक्ति बन जाती हूं ।
सुनकर आप विश्वास करें
ना करें
मुझे कवच,कील,अर्गला, तेरह अध्याय
और क्षमा प्रार्थना में
जीवन का सार मिल जाता है
और हवन के साथ
मैं मंदिर मंदिर गूंज जाती हूं
यज्ञ की अग्नि में
रुद्राभिषेक के जल में
मैं खुद कहाँ नहीं होती हूं !
मैं मंदिर
मैं गिरजा
मैं गुरुद्वारा ...
कैलाश से गुजरती हवाओं में मैं हूं
जहां जहां से मुझे पुकारा है
वहां वहां मैं रही हूं
और रहूंगी ...
उसकी ही तरह
उसकी शक्ति - सी
अदृश्य पर सर्वदा !!!
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 23 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंउसकी शक्ति - सी
जवाब देंहटाएंअदृश्य पर सर्वदा !!!
अनमोल शब्द भाव !!!
मैं मंदिर
जवाब देंहटाएंमैं गिरजा
मैं गुरुद्वारा .
ये भाव आत्मसात हो जाए फिर क्या बचा ? सुन्दर
सृष्टि के साथ एकत्व की इस अनुपम साधना को आप नित्य कर रही हैं, शब्दों के माध्यम से उस अनाम संग ही अंतर से झर रही हैं
जवाब देंहटाएंजहाँ श्रद्धा से शीष झुक जाये, बस वहीं हूँ मैं 💐
जवाब देंहटाएंवाह!
बहुत खूब, सराहनीय सृजन
जवाब देंहटाएंमहालया के दिन
जवाब देंहटाएंपूरी प्रकृति माँ दुर्गा बन जाती है
कलश स्थापना करते हुए
मिट्टी में जौ मिलाते हुए
यूँ महसूस होता है कि
मैं मिट्टी से एकाकार हो रही हूं
मन कर्म और वचन से उस अदृश्य शक्ति में एकाकार की भावना जब जागृत होती है तब कण-कण में वहीं विद्यमान होता है अपने में वो और उसमें आप को पाकर मन उसी में समाहित हो जाता है।
महालया के दिन
जवाब देंहटाएंपूरी प्रकृति माँ दुर्गा बन जाती है
कलश स्थापना करते हुए
मिट्टी में जौ मिलाते हुए
यूँ महसूस होता है कि
मैं मिट्टी से एकाकार हो रही हूं
और चतुर्थी से हरीतिमा लिए
नौ रूप का शुद्ध मंत्र बन जाती हूं ।
अखंड दीये का घृत बन
स्वयं में एक शक्ति बन जाती हूं ।
बहुत सुन्दर गहन भाव
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंनिःशब्द हूँ ... शब्द - शब्द अंतर को तरंगित कर रहे हैं ...
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