13 सितंबर, 2021

जर्जर परंपरा तोड़ दो


 



स्त्रियां निर्जला व्रत प्यार का प्रतीक मानती हैं
पति,बच्चों के लिए ...
ऐसा करके वे खुद को मान लेती हैं सावित्री
और दृढ़ माँ !
अनादि काल से ऐसा देखते देखते 
पुरुषों ने,बच्चों ने मान लिया
कि उनकी पत्नी
उनकी माँ - सबसे जुदा हैं ।
गर्व से कहते हैं सब,
"बिल्कुल कुछ नहीं लगा ...!"

न लगने की यूँ कोई उम्र नहीं होती,
पर वह उम्र -
जब दवा के सहारे जीने लगता है आदमी,
तब खुद को सबसे जुदा रखने के लिए
खुद के लिए सोचना चाहिए,
सोचना चाहिए पति और बच्चों को
कि पानी बगैर रहना
सारी व्यवस्था करके पूजा पर बैठना
सर्कस का सबसे बड़ा खतरनाक खेल है
उंगली थमाते थमाते अचानक
ईश्वर भी हतप्रभ हो उठते हैं 
और कहने को रह जाता है एक ही वाक्य,
"नहीं करती तो कुछ हो जाता, "
...... 
ईश्वर कहें या आप,
पर रो रोकर 
दबी आवाज़ में 
बार बार यह कहने से अच्छा है
इन प्रश्नों और
व्यर्थ टिप्पणियों के चक्रव्यूह से 
बाहर निकलें
मन को गंगाजल कर लें
और मानसहित कहें -
"बहुत हुआ, अब रहने दो
हमारे लिए है ना 
तो हम कहते हैं, 
आज हमें कहने दो -
तुम स्वयं दुआओं का कलश हो 
जिसके जल से हम रोज़ नहाते हैं
तुम्हारी आंखों के गोमुख से 
जिस जाह्नवी की धारा बहती है
उसमें प्रतिपल भीग जाते हैं 
तुम्हारे अंतर का पूजागृह 
जिसके कपाट
कभी बंद ही नहीं होते हैं
तुम्हारी बातें हैं हर की पौड़ी 
जहां सुबह शाम उतर कर 
हम अपने सारे कष्ट धोते हैं 
तुममें सांस लेता है हर व्रत,
हर मंदिर, हर तीर्थस्थल 
तुमसे पावन नहीं हो सकता 
कोई पुरी या रामेश्वरम
या गंगासागर,
कोई कैलाश मानसरोवर
या मुक्तिदायिनी
भागीरथी का जल... 
तुम्हारा है हमारे भीतर वास
जर्जर हो रही इस परंपरा को
तोड़ दो
अब छोड़ भी दो 
ये निर्जला व्रत
यह उपवास।"

10 टिप्‍पणियां:

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  2. कितनी सच्चाई बात । एक पत्नी या माँ के रूप में स्त्री बांध जाती है इन व्रतों से लेकिन उसका मन तो स्वयं मंदिर है कितना प्यारा लिखा आपने । प्यारा और पवित्र । शायद बच्चे ऐसा कहें तो और मानें तो सब उपवास एक साथ हो जायें । पढ़ कर मन तृप्त हुआ ।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 14 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. सुंदर शब्दों में आपने बिलकुल सही बात कही है, किसी भी व्रत-उपवास को स्वयं को कष्ट देकर किए जाना ज़रा भी समझदारी नहीं है, यदि खुद का स्वास्थ्य ठीक रहेगा तो बच्चों और पति का ज़्यादा ध्यान रख सकती हैं।

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  5. ये पारंपरिक पेटवास है या उपवास । जो ढो रही हैं उन्हें ही बेहतर समझना होगा कि आखिर वे कर क्या रहीं हैं और खुद ही तोड़ना भी होगा ।

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