चाँद झील में उतर
नर्म दूबों पर चलने को आतुर है....
सितारे गलीचों की शक्ल ले
मचल रहे हैं....
ख़्वाबों के मेले ने
गुल खिलाये हैं
कोई गुनगुना रहा है.....................
सुना था,
अम्बर पे अनहोनी
नज़र आती है
आज देखा और
महसूस किया है...........
फूलों की बारिश में
अमृत भी छलका है,
ढोलक की थाप पर
मन ये धड़का है....
धरती का रोम-रोम
गोकुल बन बैठा है !
नर्म दूबों पर चलने को आतुर है....
सितारे गलीचों की शक्ल ले
मचल रहे हैं....
ख़्वाबों के मेले ने
गुल खिलाये हैं
कोई गुनगुना रहा है.....................
सुना था,
अम्बर पे अनहोनी
नज़र आती है
आज देखा और
महसूस किया है...........
फूलों की बारिश में
अमृत भी छलका है,
ढोलक की थाप पर
मन ये धड़का है....
धरती का रोम-रोम
गोकुल बन बैठा है !