12 अप्रैल, 2009

राज्याभिषेक !


पावन नदियों का जल,
महर्षियों का समूह,
माँ कौशल्या का
रात भर का विष्णु जाप,
राम का राज्याभिषेक
और होनी का खेल !....................
सुबह का उजाला,
राम वनवास
और
दशरथ की मृत्यु का संदेशा लाएगी,
किसने जाना था !...............
अनहोनी के कुचक्र ने
निर्धारित सोच की दिशा बदल दी ,
कैकेयी की जिह्वा पर
हठ का बादल छा गया ,
हर्ष-गान
रुदन में परिवर्तित हुआ,
होनी मंथरा के मुख से निकली
कैकेई पर हावी हुई
और सारे पासे पलट गई !
............. पर,
विष्णु-जाप व्यर्थ नहीं गया....
चौदह वर्षों तक
राम की चरण पादुका ने
भरत का साथ दिया
बाद चौदह वर्षों के,
राम का ही राज्याभिषेक हुआ !...................

21 टिप्‍पणियां:

  1. हमेशा बुराई पर अच्छाई की और अधर्म पर धर्मं की ही जीत होती है .... अच्छे कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाते .....
    बहूत खूबसूरती से संजोया इसे ....

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  2. सही है, होनी विपरीत हों तो कर्मो और निति- सिद्धांतो के प्रति ईमानदार व्यक्ति को भी कष्ट झेलना पड़ता है, लेकिन हर रात की एक सुबह होती है और अच्छे कर्म अंततः फलित होते ही है, इसमें कोई संदेह नहीं | पौराणिक संदर्भो के माध्यम से व्यक्त किये गए आपके विचार सशक्त है और कविता तो as usual अच्छी है हीं |

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  3. लेकिन ये चौदह वर्ष कम यातनापूर्ण न थे.इन्हीं चौदह वर्षों के कारण सीता को न केवल अग्नि परिक्षा देनी पड़ी, अपितु गर्भावस्था में निष्कासन झेलना पड़ा.

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  4. कैकेयी की जिह्वा पर
    हठ का बादल छा गया ,
    हर्ष-गान
    रुदन में परिवर्तित हुआ,
    होनी मंथरा के मुख से निकली
    कैकेई पर हावी हुई
    और सारे पास पलट गई !
    kitne khubsurat dhang se aapne aanewali vippati ko darshaya hai,ishwar ka hi racha khel tha yah bhi,sahi satya ki vijay huyi aakhir mein aur ramji ka rajyabhishek ho gaya.chand shabdon mein ramayan hi sama gyi hai,sunder.

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  5. इस बार और भी विशेष लगी आप की रचना बहुत अलग बहुत महत्वपूर्ण

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  6. आपकी यह अभिव्‍‍यक्ति बहुत सुन्‍दर है बुराई की उम्र भले ही लम्‍बी हो किन्‍तु उसे हारना ही होता है अच्‍छाई हमेशा ही सराही जाती है....

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  7. rajyabhishek ki abhivyakti khoobsurat shabdon men piroyi hai...burai par achchhai ki vijay...isko aaj ke chunavon se bhi joda ja sakta hai..dekhna hai ki kiska rajyabhishek hota hai :)

    bahut badhiya.

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  8. rashmi di .. bahut sundar aasha hi to jeevan ka aadhar hai .. kabhi nirash nahin hona chaiye, jo hota hai achche ke liye hota hai karm ka phal avashya milta hai chahae kuch samay baad sahi achche karm ka bhi bure karm ka bhi .. sundar abhivyakti hai .. badhai

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  9. रामायण की एक घटना के माध्यम से कविता में जो कहना चाहा है वह पाठक तक पहुँच रहा है..यही कविता मे की गयी भावाभिव्यक्ति की सफलता है..आप ने एक सकारात्मक अंत के साथ इस कविता की समाप्ति कर यह सन्देश दिया है की कष्ट चाहे कितने भी हों.अँधेरे चाहे कैसे भी हों .हर रात की सुबह जरुर होती है.

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  10. Bahut hi sundar...khatm kyun hogaya padhte padhte?? Mann kar raha tha ki bas padhtaa jaun..

    Man bhaavan.

    --Gaurav

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  11. ... बेहद प्रसंशनीय व प्रभावशाली अभिव्यक्ति है।

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  12. Very beautiful creation. Sach mein bhgawaan Ram ko bhi yeh sab jhelna pada tha & chaudah varsho ke baad hi unka rajyaabhishek hua tha...I think I have started loving all your poems now :-)

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  13. सुखद उम्मीद की सुन्दर अनुभूति होती है इस रचना से गुजरते हुए ...
    पर राम के वनवास और लंका-विजय के बाद राज्याभिषेक में राजनीति ज्यादा हावी थी ...बस राजशाही-युग के राजदरबारी कवियों के द्वारा महिमा-मंडन के अतिरेक से सत्य कई परतों तले दब गया है.

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  14. एक अनूठे मिथक की लाजवाब व्याख्या मैम...

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  15. रश्मि जी.

    आपकी कविता पढ़ कर बहुत सुकून मिला कि विचार कब, कहां, क्यों और कैसे मिल जाये कोई नहीं जानता.

    ऐसे ही मत कभी मैंने अपनी किताब "टाइम इज लक इज टाइम" के प्रथम अध्याय में ही लिखा था.......... जो आपकी जानकारी के लिए प्रस्तुत है :


    Lesson-1

    If things are happening exactly as wished & tried, We used to take its credit by saying done by me

    If things are getting linger on, We used to say, we are trying our best

    If things are happening against as wished & tried best, We used to say, our luck is bad

    If you believe success is related with work only , then why luck is used to be blamed for every failure in spite of pouring all sorts of efforts & good or ugly resources.

    Basically, any work can get its appropriate result i.e.
     happening ,
     not happening or
     half way happening with in the scheduled time frame

    Have you done root cause analysis of obtaining any of the above three results. No, then please have the patience to read the following :

    As in science work done is defined only if there is at least some displacement inspite of applying a lot of force, similarly in human life any work is said to be carried out successfully or not depending on fulfilling or not fulfilling following four conditions :

    1. Aim
    2. Doer
    3. Resources &
    4. Time

    It can be further elaborated here to match the frequency of understanding as under :

    Anyone can Aim anything.
    He can do his best efforts to get the Aim
    No one can restrict him , if capable, to use all available resources with him to get the Aim
    But..
    But…..
    But……….
    How can he control the time .

    Until & unless time will match with the first 3 conditions (which may or may not be in human hands), required result of the Aim will never appear.

    If time is not favouring , his all resources will vanish as Lanka is demolished. After getting ruined like Ravan’s Lanka, these so called people start blaming their luck only.

    Here we used to forget once again the story of our Holy Book Ramayana, in which Ram’s rajgaddi ceremony was

     dreamed & decided ,
     efforts applied &
     all type of resources used for fulfilling this dream
     but…
     but……
     but……..
     Ultimately what happened & resulted,
     Ram went to Vanvas,
     Pleasant atmosphere turned into crying & bad blessings
     Dasarath sudden demise etc.

    Why such unwanted, undreamed, undecided results are generated?
    Because…
    Because…….
    Because TIME element was not matching with other three human created elements i.e. Aim, Doer & Resources.


    अच्छी रचना प्रस्तुति पर बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  16. अगर विशुनुजी के जप से ही सब अच्छा होता तो मै कुछ भी काम ना करती बस पूरा दिन विष्णुजी का जप..मेरमन्ना है की जो कर्म हमने किये है वो हमें भुगतने ही है...कुछ भी कर लो...वो राम हो दशरथ हो या नीता हो...कुछ नहीं हो सकता ...बस उसमे शांति से, धैर्य से कैसे काम लेना है वो हमें देखना है...मंथरा . एक प्यादा थी...कर्म के फलको अनुचित समय पर देने के लिए...कर्म के आगे किसिका कुछ नहीं चलता..

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...