28 सितंबर, 2009

एक खेल !




आओ खेलें....
तुम एहसास,
वह दर्द,
वह कागज़,
मैं कलम.............
- दर्द का एहसास
लिख तो दिया है
पर सुनाऊं किसे?.....
दर्द को सुनाना आसान नहीं
कौन समझेगा
और क्यूँ समझेगा?
हर किसी के पन्ने पर
दर्द के धुले अक्षर हैं
उसको पढने,समझने की
नाकाम कोशिश ही बड़ी जटिल है
तो अपने दर्द की क्या बिसात !
............................................
चलो खेलते हैं,
पानी का खेल .............
तुम नाव बनना
मैं पतवार बन जाउंगी
वह पानी,वह भंवर.........
पानी की कलकल सतह पर
पतवार के सिरे से
एक गीत लिखूंगी........
हाँ- तब होगी शाम
और एक धुन लेकर
हम अपने-अपने घोंसले में
लौट जायेंगे
अपने-अपने हिस्से की नींद की खातिर
अपने मासूम सपनों की खातिर
तुम लोरी बन जाना
मैं भी बन जाउंगी लोरी
वह भी,वह भी
...........
तब होगी एक नयी सुबह
नयी चेतना,
नया विश्वास,
नयी उम्मीदें
नए संकल्प.........................


--

40 टिप्‍पणियां:

  1. जी हाँ तक होगी एक नई सुबह
    बहुत खूब सुन्दर रचना

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  2. bhoot hi sunder likha he mam bahoot hi sundar ......
    "dard ko sunana asan nahi
    kyun samjega
    aur kyu samjega ?
    bahoot hi achi lines he ..!

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  3. बहुत सुन्दर रचना आभार रश्मि जी

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  4. बहुत ही खूबसूरत रचना है रश्मि जी... अदभुत खेल है ज़िन्दगी का...

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  5. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आभार्

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  6. बहुत सुंदर रचना, वो सुबह कभी तो आयेगी...
    आप को ओर आप के परिवार को विजयदशमी की शुभकामनाएँ!

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  7. jindgi ki dastan yeh hi hein
    bahut khoobh likha hein!!

    humney bhi likha thaa
    dekhey....एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा..........
    " तुम हार कर भी मुस्कुराते हो ! क्या तुम्हें दुख नहीं होता
    मेने सितारों से कहा ..
    की जिन्दगी आगे चलती है ..
    और उसे पकड़ने की दौड़ में ..
    मै भी तो चलती रहेती हु ना..
    ये कम है क्या जिन्दगी के लिए..
    की मै भी रहेती हु चलती मेरी जिन्दगी के साथ..!!
    !!DAISY AGGARWAL!!

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  8. बेहतरीन रचना!!


    विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  9. dil ko choo asar chodane walee rachana hai aapakee.
    bahut -bahut badhai !

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  10. रश्मि जी चरण स्पर्श

    क्या कहनें आपके रचना के, लाजवाब व अत्यन्त खूबसूरत। विजयदशमी की हार्दिक बधाई

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  11. खेल खेल में जाने क्या कितना कह डाला आपने...हमेशा की तरह.....

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  12. वाह क्या खूब लिखा है आपने...एकदम से पढ़कर के आनंद की प्राप्ति हुई

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  13. dard aur ehsaas ka khel.....pani aur nav ka khel....sach hi to hai zindagi men ye sab ek khel hi hai...khoobsurat rachna....badhai

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  14. दर्द का अहसास
    लिख तो दिया है
    पर सुनाऊ किसे ?..
    दर्द को सुनना आसन नहीं
    कौन समझेगा
    और क्यूँ समझेगा ..

    एक बेहद खुबसूरत रचना.........

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  15. वाह बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! दिल को छू गई आपकी ये भावपूर्ण रचना! विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!

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  16. bahut hi komal si bhavnayen hain----dard aur ahsaas--kalam aur kagaz--ka saath....bahut khoob!

    sundar kavita Rashmi ji..

    [aur haan badhaayee --aap ka zikr hua akhbaar mein us ke liye--]

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  17. सच कहा किसी के दर्द को समझना बहुत मुश्किल होता है ........

    पतवार और पानी के खेल में प्रेम की गहराई, जीवन की भावनाओं को समेत लिया है आपने .......

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  18. ummeed ka ehsaas karati ek bahut achchi kavita........ zindagi kya hai yeh bhi bata gayi.....yeh kavita....


    bahut hi achchi kavita....

    MOM is great.....

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  19. वाह ! वाह ! वाह ! इसके आगे और क्या कहूँ,कुछ सूझ नहीं रहा....

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  20. इतने आसाने लफजों में इतनी गहरी बात कैसे कह लेती हैं आप?
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  21. सीधे सीधे इतने सरल शब्दों मै आप ने अति सुंदर रचना का सर्जन किया ,
    खेल खेल मै आप ने शब्दों से खेलते हुए अति सुंदर कविता लिख दी ......
    बधाई ....

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  22. आदरणीया रश्मि जी,
    बहुत ही खूबसूरत और आशावादी रचना--।
    पूनम

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  23. रश्मि जी,
    फ़िर एक सुन्दर और लीक से अलग हट्कर लिखी गयी रचना पढ़वाने के लिये हार्दिक बधाई।
    हेमन्त कुमार

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  24. खेल-खेल में अपनों के लिए क्या नहीं बनना पड़ता.

    गहन भावों से भरी हमेशा की तरह एक और सुन्दर रचना.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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