16 अक्तूबर, 2009

सफाई अभियान और लक्ष्मी का स्नेह,प्रकोप !


(तमाम सुधिजनों को दीपावली की शुभकामनाओं के साथ एक सत्य की सौगात )

साप्ताहिक योजना में
घर की सफाई हो रही है
हर कोने की गन्दगी हटाई जा रही है
छोटी-बड़ी हर दुकानें
सज गई हैं
एक साल की धूल हटाकर
लक्ष्मी की प्रतीक्षा है सबको !
.............................................
पर जो गंदगियाँ पोखर,तालाबों,
नदियों,पहाड़ों, सड़कों के किनारे हैं
उनका क्या होगा?
जो ईर्ष्या,द्वेष,घृणा,उपेक्षा की परतें
हमारे अन्दर हैं
उनका क्या होगा?
इन गंदगियों को पारकर
लक्ष्मी कैसे आएँगी?
क्यूँ आएँगी?
............................
साप्ताहिक सफाई का
सारा नज़ारा लक्ष्मी ने भी देखा है
मंद मुस्कान लिए
मन की परतों को भी जाना है
दीये की लौ
कितनी ईमानदार है
और कितनी भ्रष्ट....
सबकुछ पहचाना है !
.........जहाँ ईमानदारी है
वहां लक्ष्मी वैभव बनकर आएँगी
भ्रष्टाचार की दुनिया में
जहाँ उनको उछाला जाता है
वहां तांडव ही करके जाएँगी !
पटाखों की शोर में
स्व की मद में
शायद तुम्हें अभी पता न चले
पर सारा हिसाब लक्ष्मी करके जाएँगी
चुटकी बजाते
दीवालेपन की घंटी बजाकर जाएँगी !

31 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi bhav pradhaan rachna....lakshmi ji se agrah hai ki wo bilkul waisa hi karen jaisa ki aapne varnit kiya hai....

    deewali ki hardik shubhkamnayen

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  2. आपकी इस कविता में निराधार स्वप्नशीलता और हवाई उत्साह न होकर सामाजिक बेचैनियां और सामाजिक वर्चस्वों के प्रति गुस्सा, क्षोभ और असहमति का इज़हार बड़ी सशक्तता के साथ प्रकट होता है।

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  3. सफाई अभियान यहाँ भी जोरों पर है. :)


    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल ’समीर’

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  4. बिलकुल सही और सत्य कहाँ आपने..आपको और आपके सहपरिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये.

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  5. man ki gandagi vaisi hi rah jati hai sahi likha...
    happy diwali

    man ki safaye ejaruri hai ghar ke sath

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  6. bahut shandar rachanaa hai .......
    rashmi ji DIPAWALI KI HARDIK SHUBHKAMANAYEN....

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  7. दीपो के इस त्यौहार में आप भी दीपक की तरह रोशनी फैलाए इस संसार में
    दीपावली की शुभकामनाये
    पंकज मिश्र

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  8. लक्ष्‍मी के प्रवेश के लिए अंदर को साफ रखना आवश्‍यक है !!
    पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
    जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!

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  9. सही कहा जी
    स स्नेह दीपावली की शुभकामनाएं
    आपके परिवार के सभी के लिए
    - लावण्या

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  10. स्वर्ग न सही धरा को धरा तो बनाये..
    दीप इतने जलाएं की अँधेरा कही न टिक पाए..
    इस दिवाली इन परिन्दों के लिए पटाके न चलायें....

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  11. "आओ मिल कर फूल खिलाएं, रंग सजाएं आँगन में

    दीवाली के पावन में , एक दीप जलाएं आंगन में "

    ......दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ |

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  12. behtreen........satya ko ujagar karti rachna.

    diwali ki hardik shubhkamnayein

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  13. बहुत ही सार्थक लिखा है......


    साधुवाद!!!!!!!!!

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  14. kaash! laxmi ji aisa kar den .....gande logon aur gandki ki safai...deepparv ki shubhkaamnaye

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  15. रश्मि,
    दीपावली के शुभ अवसर पर तुम्हारी यह रचना स्व के धरातल से ऊपर उठ कर रची गयी है.पूर्ण विश्वास है कि इसका प्रभाव पाठकों के माध्यम से और लोगों पर भी पडेगा.
    कोई तो इस दिशा में सोंच रहा है.
    ___ किरण दीदी.

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  16. भीतर की सफाई कुछ लोग साप्ताहिक और मासिक क्या ज़िन्दगी भर नही करते ।

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  17. स्व की मद में
    शायद तुम्हें अभी पता न चले
    पर सारा हिसाब लक्ष्मी कर के जायेगीं
    चुटकी बजाते
    दिवलेपन की घंटी बजाकर जायेगीं.

    सत्य वचन

    बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

    दीपावली और भाई-दूज पर आपको और आपके परिवार को अनंत हार्दिक शुभकामनाएं.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  18. "एक साल की धूल हटाकर
    लक्ष्मी की प्रतीक्षा है सबको"

    "साप्ताहिक सफाई का
    सारा नज़ारा लक्ष्मी ने भी देखा है
    मंद मुस्कान लिए
    मन की परतों को भी जाना.."

    अद्भुत..प्रस्तुति रश्मिजी..अद्भुत..

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  19. बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

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  20. भाई दूज की हार्दिक शुभकामनायें!
    बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने!

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  21. बहुत बड़ी बात कही है आपने बाहर की गंदगी तो सब साफ कर लेते हैं परजो मन की अंदर बसी है उसका क्या

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  22. बिलकुल ठीक है जी लक्ष्मी जी तो हिसाब किताब करके ही जावेगी | लक्ष्मी कि महिमा में कहा भी है -

    पत्राभ्यागवदानमान चरण प्रक्षालनं भोजनम्|
    सत्सेवा पितृदेववार्चन विधि :सत्यमगवां पालनम् ||
    धान्या नामपि संग्रहो न कलहशिचता त्ररुपा प्रिया|
    द्रष्टा प्रहा हरि वसामि कमला तस्मिन् गृहे निश्चला ||
    संस्कृत में कुछ गलती हो सकती है ,इसीलिए अनुवाद कर देती हूँ
    जहाँ मेहमान कि आवभगत करने में आती है ,उनको भोजन कराया जाता है ,जहाँ सज्जनों कि सेवा कि जाती है ,जहाँ निरंतर भावः से भगवान कि पूजा और धर्म कार्य किये जाते है ,जहाँ सत्य का पालन किया जाता है ,जहा गलत कार्य नहीं होते ,जहाँ gaayo कि रक्षा होती है जहाँ दान देने के लिए धान्य का संग्रह किया जाता है जहाँ क्लेश नही होता जहाँ पत्नी संतोषी और विनयी होती है ,ऐसी जगह पर मै सदा निश्चल रहती हूँ \बाकि जगह पर कभी कभार ही द्रष्टि डालती हूँ |

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  23. बहुत खूब...
    आपके शब्दों में किसी भी बात को निचोड़ से कहना का माद्दा है।
    पढ़कर अच्छा लगा।

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...