28 अक्तूबर, 2009

भावनाओं के राग !



शब्द-
एक देश से दूसरे देश
एक शहर से दूसरे शहर
एक दिल से दूसरे दिल तक जाते-जाते
या तो अपने अर्थ
अपनी गरिमा खो देते हैं
या फिर निखर जाते हैं .........
भावनाओं को देखना-समझना
आसान नहीं होता !
जिस पात्र को
हम धरोहर समझते हैं
कई जगहों पर
उसका कोई मूल्य नहीं होता !
पर कवि-
जो भावनाओं के गलीचों से गुजरता है
वह
भावशून्य कैसे हो सकता है !
खूबसूरत भावनाओं की बारिश में
वह अन्भीगा कैसे रह सकता है
शुष्क,सपाट,सतही कैसे हो सकता है !
माना-
समुद्र की लहरें आम तौर पर
शोर करती हैं
अति वर्षा विभीषिका लाती है
........
पर जब नन्हीं बूंदें
गर्म धरती पर
टप से गिरती हैं
तो किसान का घर
सोंधे राग सुनाता है .........



43 टिप्‍पणियां:

  1. इस कविता को भाषा की सर्जनात्मकता, अभिव्यक्ति, शैली-शिल्प और संप्रेषण अक अलग धरातल पर ला खड़ा करते हैं। यहां यथार्थ विस्तृत विवरणों में नहीं, व्यंजनाओं, थ्वनि-संकेतों की तहों में है। एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई।

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  2. कविता नहीं यथार्थ है
    मन का है सच्‍चा अर्थ
    मन को मोहती है
    रचना बहुत सशक्‍त।

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  3. aapki ye bhavnayen har kavi hriday ki bhavnayen hain...srijan men sukh hai....bahut sundar abhivyakti....behatareen rachna....badhai

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  4. वाह ये नज़रिया हमें बहुत भाता है
    तभी तो आपकी हर रचना ख़ास होती है

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  5. शब्द और कवि-कर्म में साम्य ए़क
    कविमना द्वारा ही बतलाया जा सकता है |

    कविता अच्छी लगी .

    बधाई ...

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  6. बहुत ही खुबसूरत बात कही है दी आपने.....बेहद सुंदर अभिव्यक्ति.

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  7. bhawanao mein bhigoti ek sunder rachana,kohinoor se kavita kehe phir bhi kum hai.sunder.

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  8. सुंदर भावनाओं से सजी एक बेहतरीन रचना..बहुत अच्छा लगा..धन्यवाद

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  9. बहुत सुंदर कविता कही आप ने
    धन्यवाद

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  10. SACH KAHA ........ JAB KAVI KE SHABD SYAAHI BAN KAR KAAGAZ PAR UTARTE HAIN TO MEETHI RACHNA KA UDAY HOTA HAI ....
    BAHOOT HI ACHHEE TACHNA HAI ....

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  11. शब्द हैं इसी से हम हैं । हमारी भावनाओं को आकार देने वाले इन शब्दों को आपने कितने गहरे पैठ कर जाना है । अप्रतिम रचना ।

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  12. जिस पात्र को
    हम धरोहर समझते है
    कई जगहों पर
    उसका कोई मूल्य नहीं होता !
    यथार्थ है. संवेदनाएँ, भावनाएँ, अनुभूतियाँ आदि निरपेक्ष नहीं हैं.

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  13. शब्द और भावनाओं को लेकर लिखी गयी बेहद खूबसूरत कविता----।
    पूनम

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  14. भावनाओ को देखना-समझना,
    धरोहर की तरह सहजकर रखना,
    भावनाओ की बारिश को जीना,
    और
    ऐसी कई अनगिनित बाते,
    उसे शब्दों से निखारना....
    तुम ही कर सकती हो....ILu..!

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  15. सही है,कविमन भावनाशून्य कैसे हो सकता है?...शुष्क,सपाट,सतही कैसे हो सकता है?...वह तो कभी उद्वेलित होता है और कभी ठंढी फुहार की तरह शीतलता देता है.

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  16. बहुत ही खुबसूरत बात कही है दी आपने
    खूबसूरत कविता----।

    SANJAY KUMAR
    HARYANA
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  17. RASHMI JI
    AAPKI KAVITAON KO PADH KAR AISA LAGTA HAI KI HUM 60-70 KE DASHAK KI BEHTREEN BHAWPORN, MAANVIYA SAMVEDNAON WAKI KAVITA PADH RAHA HOON....
    BAHUT SAHI KAHA AAPNE KI SHABDON KE ARTH YA TO NIKHAR JATE HAIN YA APNE ARTH KHO DETE HAIN... EAK MANAV MAN HI ISSE SAMAJH SAKTA HAI...

    BEHTREEN RACHNA KE LIYE BADHAI !

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  18. IS KAWITA KI SUGHANDH BAHUT DUR TAK JAYEGI KYOKI YAH JAMIN SE JUDI KAWITA HAI ...............BAHUT BAHUT BAHUT BAHUT HI SUNDAR RACHANA!

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  19. parivesh badal sakte hai par bhav , ahsas ye to
    universal hai .bahut sunder rachana ke srujan kee
    bahut bahut badhai .

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  20. जैसे नन्हीं बूदों के गिरने से किसान का घर सोंधे राग सुनाता है वैसे ही कवि का ह्रदय शब्द से आलोकित होता है
    वाह! क्या बात है बहुत अच्छे भाव हैं इस कविता के

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  21. रश्मी जी,
    आपकी हर रचना के भाव बेहद सुन्दर होते हैं| बहुत कोमलता से गहरी बातें कह जाती हैं आप| सच है शब्द का सफ़र मुकाम तक पहुँचते पहुँचते अर्थ बदल जाता, चाहे भाव कुछ भी हों| बहुत बधाई आपको सुन्दर रचना केलिए|

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  22. सुन्दर उपमानों से सजी कविता जब भावनाओं के राग छेड़ती है, कलम स्वयं नर्तन करने लगती है..........और मन से निकल कर कागज़ पर आ जाती है.........

    प्रणाम के साथ हार्दिक शुभकामनायें............

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  23. आपकी कविता में माटी की गंध वैसे ही उठ रही है, जैसे पहले बारिश के बाद धरती से उठती हुई सोंधी सोंधी महक।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  24. बहुत ही सुंदर और गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना प्रशंग्सनीय है! इस शानदार रचना के लिए बधाई !

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  25. sabhi ne itna kuchh kah diya aur har kisi ne sahi kaha bahut shaandar likhati hai aap jawab nahi ,bahut gahari baate aapki rachana me jhalak uthi hai .

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  26. Aapke sundar rachna me abhivyakt bhaav itne sashakt hain ki sahaj hi paathak man tak pahunchne ka saamarthy rakhte hain..

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  27. जिस पात्र को
    हम धरोहर समझते हैं
    कई जगहों पर
    उसका कोई मूल्य नहीं होता...

    वाह...अद्भुत रचना...जितनी प्रशंशा की जाये कम है...आप की लेखनी को नमन रश्मि जी...
    नीरज

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  28. जिस पात्र को हम धरोहर समझते हैं
    कई जगहों पर
    उसका कोई मूल्य नहीं होता

    कितनी सही बात कही आपने। नाज़ुक भाव को सरल शब्दों में ढाल दिया।

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  29. मुक्तछन्द की इस कविता मे ग्यारह जगह " है " आया है जो प्रवाह बाधित करता है । एक बार इन्हे हटाकर देखिये ।

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  30. aapakee rachanae itanee utkrusht hotee hai ki sahee shavdo ka abhav sa ho jata hai . :)

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  31. आपकी कविता पढ़ के मन जैसे सावन की हलकी हलकी फुहारों से भीग गया...मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है........

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  32. रश्मिजी
    कभी कभी आमने सामने बैठे हुए भी शब्दों के अर्थ बदल जाते है |हाँ शब्दों कि यात्रा में तो ये सहज ही है| कविता कि भूमिका बहुत ही अच्छी लगी \मैंने किसी के ब्लाग पर पढ़ा था जब हम बहुत अच्छी रचना लिखते है तो धुन्धने पर भी टिप्पणी नही मिलती और जब यु ही रचना ठेल देते है तो टिप्पणियों का अम्बार लग जाता है हम अपनी रचना धर्मिता को लेकर सोच में पड़ जाते है |

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  33. Rashmi ji aapki kavita padh kar bhav-vobhor ho gayi. aap mere blog par aayi aur prtosahan ke liye dhanyawad.

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  34. achchhi kavita to hai hi sath hi
    pathak kavita padhane ke bad sochne par bhi badhy ho jata hai

    1-kavita shrota ya pathak ki man:sthiti ke anusar apne naye rup me aa jati hai

    bahut sundar rachna hai

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