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तराजू के पलड़े की तरह
दो पगडंडियाँ हैं मेरे साथ
एक पगडंडी
मेरे जन्मजात संस्कारों की
एक परिस्थितिजन्य !
मैंने तो दुआओं के दीपक जलाये थे
प्यार के बीज डाले थे
पर कुटिल , विषैली हवाओं ने
निर्विकार,संवेदनाहीन
पगडंडी के निर्माण के लिए विवश किया
................
दुआओं और संवेदनाहीन के मध्य की मनःस्थिति
कौन समझता है !
समझकर भी क्या?
अनुकूल और विपरीत पगडंडियाँ तो साथ ही चलती हैं !
पलड़ा कौन सा भारी है
कौन कहेगा ?
वे पदचिन्ह - जो दुआओं की पगडंडी पर हैं
या वे पदचिन्ह
जिन्होंने आँधियों का आह्वान किया
और एक अलग पगडंडी बना डाली !