08 दिसंबर, 2009

मैं साथ रहूंगी


मैं खुद एक शब्द हूँ
चाहो तो नज़्म बना लो
बना लो अपनी ग़ज़ल
कोई गीत
कोई आह्लादित सोच
कोई दुखद कहानी....
यकीन रखो
मैं साथ रहूंगी

34 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!! .. साथ निभाना ही जरूरी है, बाकी किसी को क्या चहिये... बहुत सुन्दर!!

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  2. कम शब्दों में बहुत कुछ कहा आपने

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  3. आप चंद पंक्तियों में भी लाजवाब बात कह जाती हैं

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  4. सफर में जब शव्‍द साथ हों तो ऩज्‍़म, गजल, गीत और सोंच के बाद कहानी दुखद रह ही नहीं पायेगी.

    सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति.

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  5. रश्मि दी ! बस एक यही सच है ....बहुत सुंदर.

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  6. अनुभूति की सघनता एवं संवेदना का संश्लिष्ट प्रभाव इस कविता में मिलता। इसलिए इसमें अद्भुत ताजगी है ।

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  7. सच कहा,शब्द ही साथ निभाते हैं और कभी साथ नहीं छोड़ते

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  8. boond me sagar samane walee bat kahee hai aapane .
    ati sunder rachana.

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  9. शब्द जब नि:शब्द हो जाये
    शायद भावनाएँ अभिव्यक्त हो जाये
    शब्दो का समर्पण वाह क्या कहने

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  10. itne kam shabd aur itne gahre arth.... bahut khoob... idhar se gujra tha to socha salaam karta chalun... par ab soch raha hun ek aashiyan ya waisa hi kuch ho apna bhi yahan....

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  11. क्षणिकाएँ लिखने में तो आप सिद्धहस्त हैं ही!
    हमेशा की तरह बढ़िया!

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  12. satsaiya ke dohre jyo navak ke teer
    dekhan me chhote lage ghav kare gambhir
    ap par bhi sahi utarata hai .bahut sargarbhit rachna hai

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  13. छोटे छोटे शब्द गढ़ कर बेहद खूबसूरत अर्थ पूर्ण रचना प्रस्तुत की है आपने...बधाई...
    नीरज

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  14. Yahi 'Ek Sach' hai aur hona bhi chaheeye.

    Gahan bhaav samaye hai kavita.

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  15. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।


    संजय कुमार
    हरियाणा
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  16. mein saath rahungi... pyar mein isse jyada kya kaha jaa sakta hai... bahut kuch chhupa in kam shabon mein...

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  17. ये साथ हो तो अद्भुत संबल है..

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...