नज्मों की दोस्ती लम्हा-दर-लम्हा बढ़ी
कुछ तुमने कहा
कुछ हमने कहा
पलों की गतिविधियाँ बढीं ...................इन्हीं गतिविधियों के अंतर्गत इमरोज़ की कलम से इमरोज़
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खेतों में खेलने के बाद
रंगों से खेलने के लिए
मैं लाहौर के आर्ट स्कूल में पहुँच गया
कुछ बनने
कुछ ना बनने से बेफ़िकर
तीन साल आर्ट स्कूल में
मैं रंगों से खूब खेला
जो कुछ हो चुका है
उसे दुहराने में
मुझे कोई दिलचस्पी नहीं
कुछ नए की तलाश में रहता हूँ-
इंतज़ार भी करता हूँ ...
मेरे लिए ज़िन्दगी एक खेल है
अपने बैट से
ज़िन्दगी को ख़ूबसूरती से खेलता रहता हूँ...
आर्ट्स स्कूल के बाद ज़िन्दगी के स्कूल में भी
रंगों से खेलना जारी रहा --
कभी सिनेमा के बैनरों के रंगों से
कभी फिल्मों के पोस्टरों के रंगों से
खेल चलता रहा...
एक दौर कैलीग्राफी का भी आया
उर्दू के 'शमा' मैगजीन में कोई छः साल
मैं अपनी तरह की कैलीग्राफी करता रहा
रंगों में भी खेल जारी रहा
ज्यादातर पेंटिंग बनी-ख़ास तरह के टेक्सटाइल के
डिजाईन भी बने
और घड़ियों के नए-नए डायल भी --
और ज़िन्दगी कमाने के लिए बुक कवरस
रंगों से खेलते-खेलते
ज़िन्दगी चलती रही है
एक उम्र शायरा अमृता के साथ
मुहब्बत और आजादी का सत्संग
सारी ज़िन्दगी ने देखा
और जब अमृता पेड़ से बीज बन गई
तो एक नया मौसम आ गया
अनलिखी नज्मों को लिखने का मौसम--
जो मैं अब लिख रहा हूँ ....
और आखिर में मुझसे यूँ कहते हुए--------------
रश्मि
कई सवाल होंगे
जो तुमने अभी पूछे नहीं
पर वो ज़िन्दगी में हैं
कई शक्लों में
मेरी नज्में अक्सर
सवाल भी उठाती हैं
और जवाब भी ढूंढती हैं
इमरोज़