09 फ़रवरी, 2010

कुछ कह दो


कुछ भी पुराना नहीं
कुछ भी अनजाना नहीं
कुछ भी अनकहा नहीं
कुछ भी अनसुना नहीं
फिर भी क्यूँ हैं हम अजनबी से
क्यूँ ओढ़ ली है हमने
ख़ामोशी की चादरें
क्यूँ हमने अपनी-अपनी सरहदें बना ली हैं

प्यार की बातें भी तो
हमने ही की थीं
एहसास की बातें
हमने ही की थीं
तो फिर क्यूँ
-
आज आँखें वीरान हैं
क्यूँ दिलों की धरती
बाँझ हुई जाती है
मौन तोड़ो
कुछ कह भी दो !

36 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर पंक्तियों में पिरोई गई........ एक बहुत ही सुंदर रचना....

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  2. बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  3. "maun todo
    kuch keh bhi do"

    rishton ke beech maun naa apne liye naa samaj ke liye achha hai... vyapak sandarbh ke baat ko kitni sahjta se kehti hain aap !

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  4. मम्मी जी......बहुत ही सुंदर शब्दों में पिरोई गई.....एक बहुत सुंदर रचना.....

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  5. आज के दौर में दिलों में बढती दूरियों से पीड़ित मनःस्थिति को सुन्दर शब्द दिया आपने | सुन्दर कविता |

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  6. मौन भी तो बहुत कुछ कहता है
    सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति की कविता

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  7. maun todo
    kuch kah bhi do

    uff ! ye panktiyan dil cheer gayin ......sab kuch ankah sama gaya hai inhi mein.

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  8. "मौन तोड़ो
    कुछ कह भी दो ....."

    क्या बात है. बेहतरीन है. बहुत बढ़िया.

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  9. कुछ भी अनकहा नहीं...
    कुछ भी अनसुना नहीं ..
    इसलिए ही तो नहीं खिंच गयी कहीं सरहदें ...
    ज्यादा नजदीकियां बन गयी दूरियों का सबक कही ...
    भीतर जितना कोलाहल था बाहर उतना घटा मौन ....
    घुटने दम लगा मेरा जब गहराया मौन ....!!

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  10. क्या कहें आपकी कविता ही बहुत कुछ कह रही है। सुन्दर रचना के लिये बधाई

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  11. क्या कहें आपकी कविता ही बहुत कुछ कह रही है। सुन्दर रचना के लिये बधाई

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  12. आज कविता और पाठक के बीच दूरी बढ़ गई है। संवादहीनता के इस माहौल में आपकी यह कविता इस दूरी को पाटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।

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  13. बुद्धिजीवियों की गणना और प्रकार में बढ़ोत्तरी हो गई है ,इसलिए .....

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  14. us qalam ki tareef karoon ya syahi ki ya un hathon ki jisne ye kavita likhi??? chitra bhi bahut sundar lagaya mammy ji...

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  15. Sambandho ki khamoshi ko
    bahut hi sundar dhang se
    keh diya di aapne
    badhai

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  16. मौन तोडो
    कुछ कह भी दो ...

    रश्मि जी .. नमस्कार
    सच है कभी कभी मौन असहनीय हो जाता है ...... चीख कर सब कुछ कहना और सुनना चाहता है .... बहुत हो गहरे ज़ज्बात लिए रचना ......

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  17. अपनों के बीच संवादहीनता के उपजी टीस को बखूबी आपने शब्द दिए हैं...
    भावुक करती सुन्दर रचना...

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  18. रश्मिजी,
    आपकी कविताओ मे जो संवेदना है,
    जीवन के हर पहलु की अनुभूती की शब्दमाला बनाने क
    सामर्थ्य है, वाकई काबिले तारीफ है. हालांकी मै तो उसमे
    शब्दस्वामी पन्तजी के आशीर्वाद को ही देखता हू.
    मगर आशीर्वाद के साथ् खुद का भी तो कुछ होना चाहिए.
    जो ईश्वरने खुले हाथो से दिया है...
    - पंकज त्रिवेदी

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  19. रश्मिजी,
    आपकी कविताओ मे जो संवेदना है,
    जीवन के हर पहलु की अनुभूती की शब्दमाला बनाने क
    सामर्थ्य है, वाकई काबिले तारीफ है. हालांकी मै तो उसमे
    शब्दस्वामी पन्तजी के आशीर्वाद को ही देखता हू.
    मगर आशीर्वाद के साथ् खुद का भी तो कुछ होना चाहिए.
    जो ईश्वरने खुले हाथो से दिया है...
    - पंकज त्रिवेदी

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  20. संवाद से कई समस्याएं हल हो जाती हैं.
    ...अच्छा सन्देश देती कविता...बधाई.

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  21. महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!

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  22. लफ़्जों का पुल हर रिश्ते को बांधे रखता है... एक हँसते खिलखिलाते रिश्ते के बीच ये मौन कब, कैसे, क्यूँ आ जाता है... पता नहीं... पर वो हम ही थे जिसने वो रिश्ता सजाया था और वो हम ही हैं जो उसे बचा सकते हैं इस मौन को तोड़ के...

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  23. बहुत प्रभावशाली रचना सुंदर दिल को छूते शब्द . सच ही कहा है. कुछ लोग आदतन ही सब कुछ जान कर अनजान बनते हैं या ये सिर्फ एक इत्तिफाक होता है?????????????????

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  24. आदरणीया रश्मि जी, बहुत सुन्दर शब्दों में आपने बेहतरीन रचना लिखी है।---साथ ही चित्र भी आकर्षक लगा है। शुभकामनायें। पूनम

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  25. aap ka mere blog par aakar utsah baradan karana achcha laga aap ke rachana uttam hai muka mila to ise jaroor padunga

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  26. आज के दौर में संवाद हीनता एक बडी समस्या है क्यूं कि हम रिश्ते में अनबन का सामना करने से बचते हैं ।
    इसी भाव को शब्दों में ढालती है आपकी यह कविता

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