यह तो होना था ...
मैं नहीं रही !
मेरी आँखों , मेरे स्वर
मेरे स्पर्श की गर्माहट से सुरक्षित मेरे बच्चे
शून्य में हैं !
यूँ समझा दिया था सब -
'जब भी यह दिन आए
अपना हौसला मत खोना
जैसे अब तक मेरे पास
अपनी बात रखते आए हो
तब भी रखना - जब मैं ना रहूँ
यकीन रखना
मैं सब सुनूंगी अपनी दुआओं के साथ
सारी ख्वाहिशों को रूप देती रहूंगी ...'
अभी अचानक मेरा सो जाना
उन्हें हतप्रभ, हताश कर गया है !
जल्द ही
वे मेरे शब्दों के विश्वास की रास थाम लेंगे
बचपन से
इसी रास पर तो ऐतबार किया है !
कोई है?
इनके नाम जो मैंने शुभकामनाओं
और रक्षामंत्रों की असली थाती जमा की है
वह इनके हाथ, इनके मस्तिष्क
इनके मन में रख दो
और बस....
फिर इनका स्वाभिमान , इनका आत्मविश्वास
इनके साथ होगा
आंसू पोछकर
एक दूसरे की हथेली मजबूती से पकड़ना
इन्हें आता है
राहों को मोड़ना
इन्हें आता है
सबकुछ सहकर चलना
इन्हें आता है ...