31 मई, 2010

तुम कहाँ हो


एक बादल आकर रुका है
कुछ नम सी हवाओं ने छुआ है
तुम कहाँ हो
बूंदें बरसने को हैं
मन सोंधा हो उठा है
चेहरे के इन्द्रधनुषी रंग
आँखों से टपकने लगे हैं
कोई देख ले
उससे पहले आ जाओ

फिर जमके बारिश हो
हवाएँ चलें
बिजली चमके
बादल गरजे
तुम्हारे साथ
मैं धुली धुली पत्तियों सी हो जाऊँ



38 टिप्‍पणियां:

  1. चेहरे के इन्द्रधनुषी रंग, आँखों से टपकने लगे हैं
    .. bahut khoob.

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  2. जज्बातों को उड़ेल कर रख दिया गया इस कविता में..

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  3. बहुत ही सुंदर लिखा है!

    मन आज कहीं और उड़ चला है!

    इश्वर आपको स्वस्थ रखें और आप ऐसे ही लिखती रहे!

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  4. बहुत भावभीनी रचना है। बहुत सुन्दर!!

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  5. gajab di,

    khoob indradhanushi rang bikhere hain aapne is kavita me ......

    splendid

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  6. मम्मी जी....बहुत सुंदर कविता...एहसासों से परिपूर्ण..... सच में! जज़्बातों को उंडेल दिया है आपने.....

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  7. फिर जमके बारिश हो
    हवाएँ चलें
    बिजली चमके
    बादल गरजे
    तुम्हारे साथ
    मैं धुली धुली पत्तियों सी हो जाऊँ


    bahut khub

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  8. bahut hi sundar poem likhi hai di

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  9. वाह रश्मि जी वाह !!
    क्या खूब स्वागत गीत है..
    लगता है अबके सावन उमड़-घुमड़ के बरसेगा...........!

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  10. फिर जमके बारिश हो
    हवाएँ चलें
    बिजली चमके
    बादल गरजे
    तुम्हारे साथ
    मैं धुली धुली पत्तियों सी हो जाऊँ

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ... मन को छुं गई ...

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  11. बहुत प्यारी सतरंगी रचना, धन्यवाद

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  12. फिर जमके बारिश हो
    हवाएँ चलें
    बिजली चमके
    बादल गरजे
    तुम्हारे साथ
    मैं धुली धुली पत्तियों सी हो जाऊँ
    dhuli dhuli si sondhi rachna.

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  13. मैं धुली धुली पत्तियों सी हो जाऊँ
    उफ़ कितना निखार और यौवन छा जाता है ... कुछ ताजगी भरी बूंदों की ही तो जरूरत है

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  14. मैं धुली धुली पत्तियों सी हो जाऊँ ....ye line badiya hai

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  15. तुम्हारे साथ
    मैं धुली धुली पत्तियों सी हो जाऊँ

    कमाल कि पंक्तियाँ है! बेहतरीन!

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  16. अजीब होता है ये मन भी, ख़ुशी हो या ग़म सबसे पहले उसी के साथ बाटना चाहता है जो दिल के बेहद करीब हो... बूंदे यूँ बरसने मत दीजियेगा... दुनिया के लिये ये मोती पानी से ज़्यादा कुछ नहीं होंगे :)

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  17. 'मैं धुली धुली पत्तियों सी हो जाऊँ'
    बहुत सुन्दर !!!

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  18. तुम्हारे साथ
    मैं धुली धुली पत्तियों सी हो जाऊँ
    बहुत सुन्दर

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  19. चेहरे से झलक जाएँ इन्द्रधनुषी रंग इससे पहले आ जाओ ,
    कि मैं फिर से धुली पत्तियों सी हो जाऊं ...
    किसी के आने का ऐसा इन्तजार ...क्या कहने ...!!

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  20. main dhuli dhuli pattiyon si ho jaun......:)
    kitni pyari aur dil ko chhune wali baat kahi Di....:)

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  21. वाह !
    कितनी मधुर अभिलाषा है
    'मन सोंधा हो उठा है '
    इस पंक्ति के विषय में क्या कहूं
    बधाइयाँ.

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  22. "मैं धुली धुली पत्तियों सी हो जाऊँ "... bahut sunder bhav.. romance se bharpoor.. adbhud...sahaj aur sadahran shabdon se kitni sunder baat keh jaathi hain aap !

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  23. किसी छायावादी कवि कि पंक्तियाँ लग रही हैं और आपकी कलम से निकल रही हैं. बहुत सुंदर कहाँ, प्रकृति के साथ मन को जोड़ कर जो कहा तो छू गया.

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  24. कुछ नर्म .. गीली महक से भीगी हुई रचना ... बेमिसाल ...

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  25. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! बढ़िया प्रस्तुती!

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  26. rashmiji
    aapke shbdo ne bahut hi saoundhi khoshbu bikheri hai is bar .
    bahut sundar thandi hva ka jhoka

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  27. प्रकृति और मानवीय संबंधो की संयुक्त अभिव्यक्ति के सप्तरंग में आपने सबकुछ निचौड़ दिया है जैसे... प्रत्येक रचना बेहतर होती है... इस नाचीज़ के पास अलफ़ाज़ कम है.. आपके लिएँ ... धन्यवाद

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  28. बहुत ही खूबसूरत कविता.खास कर अंतिम पंक्ति.
    [पहले एक बार आई थी कविता पढ़ी लेकिन आप की पसंद पर क्लीक कर दिया और वापस अब लौट पाई हूँ.]

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  29. 'मैं धुली धुली पत्तियों सी हो जाऊँ'
    बहुत सुन्दर !!!

    बहुत अच्छी लगी ये रचना इस गर्मी में प्री मानसून का जैसा सहारा दे गयी

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  30. rashmi ji,
    virah kee peeda aur kaamnaaon ki aasha ki bahut sundar prastuti. bahut badhai sweekaren.

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