तमाम घरों में बड़े बड़े ताले लगे होते हैं
एक सख्त लोहे का ग्रिल
दरवाज़े पर एक होल
घंटी बजे तो देख लो
कौन है !
बड़ा खतरा है- जाने कब क्या हो जाये !
बेशकीमती सामानों से घर भरा है
मामूली चीजों की तो कोई औकात नहीं
वही चीजें हों
जिनकी कीमत आसमान छुते हों
और सबसे अलग हों
अब घर के रंग रूप ही बदल गए हैं
सामान -
प्रदर्शनी में रखे अदभुत वस्तु लगते हैं
रहनेवाले लोग कांच के नज़र आते हैं
पॉलिश इतनी ज़बदस्त
कि फिसलन ही फिसलन
बड़े तो बड़े , छोटों की अदा पर
आँखें विस्फारित रहती हैं !
क्या है असली, क्या है नकली
कोई जोड़ घटाव नहीं
अंग्रेजों की गुलामी से अलग
सब अपनी कामनाओं के गुलाम हो गए हैं
तुम.. तुम.. तुम
कोई भी संतुष्ट नहीं
रात बेचैनी में गुज़रती है
दिन मुखौटों में .............
ऐसी दहशत में
मैंने अपने घर के दरवाज़े खोल दिए हैं
मेरे घर में बेशकीमती चीजें नहीं
अनमोल एहसास हैं
एक संदूक - यादों की
एक संदूक - मासूम सपनों की
एक संदूक- मुस्कान की
हर कमरे में मैंने उन दुआओं को मुखरित किया है
जिनसे रिश्तों की गर्माहट बनी रहती है
जब हार जाओ बाज़ी लक्ष्यहीन दौड़ की
तो बेख़ौफ़ यहाँ आना
एहसासों के मध्य लम्बी साँसें लेना
फिर मुड़ना
तुम्हें अपने वे सपने दिखाई देंगे
जिनमें सिर्फ असली रंग भरे थे
एक बार -
मेरे घर आना !...