21 जुलाई, 2010

जल्दी आओ ...




मन उदास रहता है
कई बार...
हवा की खुशनुमा चपल चाल भी
अच्छी नहीं लगती
ज़मीन पर पाँव रखने का
चलने का दिल नहीं होता
अपने सारे प्रिय खिलौने
सहमे-सहमे नज़र आते हैं
मोबाइल हाथ में लिए
देखती रहती हूँ ...
किसका नंबर घुमाऊं
पर रुक जाती हूँ !
पता नहीं क्या कर रहे होंगे
परेशान होंगे
व्यस्त होंगे !
और मैं कहूँगी भी क्या ?
कि हवा अच्छी नहीं लगती ..
सब हँसेंगे
'ये क्या बात हुई '
पर क्या यह सहज बात है ?
सब हवा को तरस रहे
और मैं हवा से बेज़ार हूँ
यह तो एक बीमारी हो गई !
कारण?
कौन ढूंढेगा ?
और ढूंढ भी लिया तो इलाज !
न हवा को समझाया जा सकता है
न मुझे बहलाया जा सकता है
(बहल जाने की उम्र होती है) !

ऐसे में -
चल मन
एक छोटा सा ब्रेक लेते हैं
जिन नंबरों को घुमाना चाहती हूँ
उन्हें पास बुलाते हैं
बेसिर पैर की बातें करते हैं
और एक कमरे में
बेतुकी बातों पर हँसते-हँसते सो जाते हैं
.............
सुबह की चाय तब बनेगी
जब नींद पूरी होगी
जब सब साथ हों
तो एक चाय भी बिना तू तू मैं मैं के
कहाँ स्वादिष्ट होती है !

तो देर किस बात की ?
हलो ...
(ख़ास नाम ख़ास लोगों को पता है)
कोई सवाल नहीं ,
जल्दी आओ ...

29 टिप्‍पणियां:

  1. जब सब साथ हों
    तो एक चाय भी बिना तू तू मैं मैं के
    कहाँ स्वादिष्ट होती है !
    और शायद यह चाय बिना तू तू मैं मैं के मीठी भी न लगे
    एहसास को पिरोना कोई आपसे सीखे ...

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  2. सच ऐसी उहापोह की स्थिति कितनी अजीब होती है…………………उस स्थिति को शब्दों मे बहुत ही खूबसूरती से बाँधा है।

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  3. जब सब साथ हों
    तो एक चाय भी बिना तू तू मैं मैं के
    कहाँ स्वादिष्ट होती है !
    एक सच्चे, ईमानदार कवि के मनोभावों का वर्णन। बधाई। आपके शब्द आपके विचारों के वाहक हैं ।

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  4. और मैं कहूँगी भी क्या ?
    कि हवा अच्छी नहीं लगती ..
    सब हँसेंगे
    'ये क्या बात हुई '
    मन के भावों को, कितनी ख्ब्सूरती से शब्दों में बाँधा है, हमेशा की तरह...बहुत सुन्दर

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  5. mera number to aapke paas hai nahee ...........:)

    aisaa bhee hota hai jee............

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  6. aap yun kahengi...to kaun na aayega bhala...

    bahut sundar..bahut hi sundar :)
    pranam

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  7. बहुत ही सहजता से बहुत कुछ कह जाती हैं आप.
    शायद जीवन को बहुत ही करीब से देखने और समझने के कारण
    यह आपके लिए एकदम सहज हो गया है.

    लोग छोटी सी बात को भी कितना बढ़ा चढ़ा कर सुनाते हैं,
    और एक आप हैं
    जो बड़ी से बड़ी बात को भी कितने सरलता से कह जाती हैं.

    कई बार तो दूसरी - तीसरी बार में जाकर समझ आता है कि,
    अरे मूल बात पर तो गौर किया ही नहीं था.
    आपके ब्लॉग 'Life teaches everything' से ही स्पष्ट होता है
    कि आपने जीवन के सारे रूप - रंग बहुत पास से देखा है,
    आपकी सोच एकदम xray मशीन कि तरह बाह्य परत को छोड़ भीतर तक देख लेती है.

    आज के दौर में जहाँ सतह पे जीने को ही,
    लोगों ने जीवन का मार्ग बना लिया है,
    वहां जिस उलझन कि बात आप कर रहे,
    वो तो बिलकुल स्वाभाविक ही है.

    सच, किसको फुर्सत है,
    अब किसी भी रिश्ते के लिए.
    साथ चाय पीना,
    आपसी नोक झोंक,
    इनके लिए रिश्ते में अधिकार चाहिए,
    और अधिकार?
    'देने' से बनता है,
    केवल 'लेने' वाला समाज,
    अधिकार और रिश्ता
    कहाँ से महसूस कर पायेगा.

    ये सब अब गए दिनों की बातें ही हैं.
    समझदार लोग इन बातों में समय 'बर्बाद' नहीं करते.
    सब अब इनको भ्रम मानते हैं, जिसे आज नहीं कल टूटना ही है.

    खैर जाने ही दें
    जिन 'खास लोगों' को मालूम है
    वो लौट आयेंगे ही,
    क्यूंकि कहीं न कहीं वो भी लौटने का ही इंतज़ार कर रहे हैं.

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  8. रश्मि जी लगता है मेरे मन की बात कह रही हैं आप ! सर्व भौमिक भाव को बहुत सजहता से कहा है आपने इस कविता में.. कविता इक बार में समझ नहीं आती कि कितनी गहरी बात कह रही हैं आप... बहुत सुंदर !

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  9. वाह, आपका तरीका तो भा गया। बतियाना मोबाल पर बन्द। सबके साथ घर पर बात होगी, चाय की प्याली पर या खाने की थाली पर।

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  10. सुबह की चाय तब बनेगी
    जब नींद पूरी होगी
    वेसे हम तो गुलाम भी नही इस चाय के जी. बहुत सुंदर लगी आप की यह चाय की कविता शर्तो समेत

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  11. बड़ी विकत स्थिति है....
    आपका तो खास नाम भी नहीं पता....हैलो....

    :) :) भावनाओं को सहजता से लिखा है....

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  12. न हवा को समझाया जा सकता है
    न मुझे बहलाया जा सकता है
    (बहल जाने की उम्र होती है) !

    हाँ , बहल जाने की एक उम्र होती है ..

    जिन नंबरों को घुमाना चाहती हूँ
    उन्हें पास बुलाते हैं
    बेसिर पैर की बातें करते हैं
    और एक कमरे में
    बेतुकी बातों पर हँसते-हँसते सो जाते हैं..

    घुमाये जाने वाले नंबर पास आकर कहीं ज्यादा दूर न लगे ...तो ही चाय का स्वाद बना रहता है ...

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  13. तो देर किस बात की ?
    हलो ...
    (ख़ास नाम ख़ास लोगों को पता है)
    कोई सवाल नहीं ,
    जल्दी आओ ...
    रश्मि जी आपने बिलकुल उनके मन की बात कह दी जो इस अजाब से गुजर रहे हैं। मैं भी उनमें से एक हूं। जब भी मोबाइल लेकर किसी नंबर को डायल करने की बात आती है तो यही भाव मन में आते हैं कि पता नहीं क्‍या कर रहे होंगे,किस काम में व्‍यस्‍त होंगे। तब लगता है क्‍यों न पहुंच ही जाएं।
    यह भी संयोग ही है कि ऐसे अहसास से गुजरते हुए मैं इस समय ट्रेन में हूं और भोपाल जा रहा हूं। ऐसे में आपकी कविता पढ़कर ऐसा लगा जैसे महसूस हम कर रहे थे और आपने अपनी कलम उन्‍हें दे दी। बधाई और आभार।

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  14. मम्मी जी...एहसासों को बहुत खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है आपने....

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  15. rashmi di, bahut hi man bhayi aapki yah kavita .man ki baat ko aapne kitani hi sarlta ke saath shabdo mai piro kar kae diya hai. ahsaason se bhari hui behat reen rachna.kabhi kabhi bahuto ke man me aksarhi yah ahasaas uthta rahata hai jise aapne bakhubi prastut kiya hai.
    poonam

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  16. और मैं कहूँगी भी क्या ?
    कि हवा अच्छी नहीं लगती ..
    सब हँसेंगे
    'ये क्या बात हुई '
    खुद के सवाल और खुद के जवाब बहुत खूबसूरत कई बार मन चाहे जवाब पाने के लिये अपने से बातें करना भी बहुत अच्छा लगता है। शुभकामनायें

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  17. और मैं कहूँगी भी क्या ?
    कि हवा अच्छी नहीं लगती ..
    सब हँसेंगे
    'ये क्या बात हुई '

    ये क्या बात हुई ????? अरे वाह मेरे मन की बात आपने कैसे जानी.??? बहुत तेज ब्लॉग है ये !!!!!!अरे मैं जा रही हूँ मेरा बहुप्रतीक्षित फोन जो आने वाला है सच कह रही हूँ और हाँ बहुत अच्छी लगी ये कविता .

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  18. सुन्‍दर शब्‍द रचना, दिल को छूते भाव ।

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  19. कमाल की सहजता है ...
    सच...बहुत अच्छी लगी कविता..

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  20. Achha hua jo aaj aapki yah rachana padhi...kuchh mera manbhi isitarah se uchaat ho raha tha/hai!

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  21. तो एक चाय भी बिना तू तू मैं मैं के
    कहाँ स्वादिष्ट होती है
    वाह जी ,आपने तो मन की बात कह दी
    चलो हम भी स्वादिष्ट चाय पी ही लेते है |
    खूबसूरत कविता |

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  22. बहुत सुन्दर ! ठहरिये ठहरिये ! बुलाएँ चाहे ना बुलाए चाय के लिए हम भी आते हैं ...

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  23. जब सब साथ हों
    तो एक चाय भी बिना तू तू मैं मैं के
    कहाँ स्वादिष्ट होती है !
    .....tu tu main main ki chini gholkar achi chai banai hai......rachna padhkar dil garden garden ho gaya.....!!!!!

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  24. बहुत ही सहजता से बहुत कुछ कह जाती हैं आप.

    जवाब देंहटाएं
  25. चल मन
    एक छोटा सा ब्रेक लेते हैं
    जिन नंबरों को घुमाना चाहती हूँ
    उन्हें पास बुलाते हैं
    बेसिर पैर की बातें करते हैं
    और एक कमरे में
    बेतुकी बातों पर हँसते-हँसते सो जाते

    beir pair ki baaten bhi kaam ki ban jaati hain...kabhi kabhi...

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...