03 जुलाई, 2010

मंजिल के लिए




कहीं कोई अंतर ही नहीं,
सारे रास्ते दर्द के
तुमने भी सहे
हमने भी सहे
तुमको एक तलाश रही
मेरे साथ विश्वास रहा

'कौन है ये?' तुम चौंकते रहे
तुम साथ हो तो सही ...
सोचकर मैं शक्ति का पर्याय बनी
दर्द ने तुम्हारे अस्तित्व को डगमगा दिया
दर्द ने मुझे मेरे अस्तित्व की पहचान दी
दर्द ने तुम्हें सजग बनाया
दर्द ने मुझे गंगा यमुना के मध्य
सरस्वती बनाया (जो हो ,पर दिखे नहीं)....

तुम्हारे मन का कोई संशय
मुझे विचलित नहीं करता
गहरे घाव एक बार में नहीं भरते ...!
मेरे घाव गहरे तो हैं
पर मरहम इतने असली रहे
कि आंसू भी खिलखिलाकर बहे....

दर्द का पलड़ा मेरा भारी रहा
शरीर और मन दोनों की हत्या हुई
तुम्हारे अस्तित्व का अनादर हुआ
और तुमने स्वयं शरीर और मन को मार दिया
शुक्र है ,
मैं मरी नहीं
मेरी साँसों ने मुझे गीता का उपदेश दिया
तुम्हारी रूकती साँसों तक पहुँचने का मार्ग दिया
अब ना तुम अकेले हो ,
ना अस्तित्वहीन ....

सत्य ये है----
कि तुम शक्ति का स्रोत हो
शिव का त्रिनेत्र
जिसके लिए वक़्त मुक़र्रर था

'तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है
बिना किसी शस्त्र के
बिना चक्रव्यूह के
बिना किसी छल के
.............................
रख लो अपनी मजबूत हथेली में मेरी हथेली
काफी है मंजिल के लिए

44 टिप्‍पणियां:

  1. 'तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है

    वाह..वा...बेमिसाल...अप्रतिम पंक्तियाँ हैं ये आपकी इस विलक्षण रचना की...वाह...इसकी जितनी प्रशंशा करूँ कम ही होगी...वाह...
    नीरज

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  2. "दर्द का पलड़ा मेरा भारी रहा
    शरीर और मन दोनों की हत्या हुई"
    --
    रख लो अपनी मजबूत हथेली में मेरी हथेली
    काफी है मंजिल के लिए

    baap re itni gehri abhivyakti ...kitnaa kuchh kah gai aap aaj

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  3. तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है
    बिना किसी शस्त्र के
    बिना चक्रव्यूह के
    बिना किसी छल के

    सटीक बात..नारी मन की शक्ति को दर्शाती सुन्दर रचना.

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  4. गज़ब का भाव संयोजन……………मंज़िल तक पहुँचने की चाहत को बहुत ही सुन्दरता से सजाया है।

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  5. सत्य ये है----
    कि तुम शक्ति का स्रोत हो
    शिव का त्रिनेत्र
    जिसके लिए वक़्त मुक़र्रर था


    'तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है
    बिना किसी शस्त्र के
    बिना चक्रव्यूह के
    बिना किसी छल के
    .............................
    रख लो अपनी मजबूत हथेली में मेरी हथेली
    काफी है मंजिल के लिए


    bahut achchha likhaa hain aapne

    aapne sty ko likh diyaa hain

    very nice

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  6. रख लो अपनी मजबूत हथेली में मेरी हथेली
    काफी है मंजिल के लिए
    दीदी प्रणाम !
    ye panktiyan bahut kuch kah deti hai ,
    saadar

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  7. हर लफ्ज़ जैसे खुदा की नियमत,
    प्रेम का "तांडव" तुम ही कर सकती हो ...
    चक्रव्यूह को छल से नहीं प्यार से तोडना तुम्ही सीखा सकती हो माँ ...

    मंजिल पर पहुचने का ख्वाब -
    कभी चलना,
    कभी गिरना,
    गिरकर फिर संभालना,
    एसे में किसी अपने की मजबूत हथेली,
    यक़ीनन मजिल आसन है बहुत करीब...ILu !

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  8. Hi..

    Kavita sahaj si chahe lagti..
    Par bhavon ka hai sagar..
    Ant kasak ek jaga gaya hai..
    Ghavon ka marham bankar..

    Antim 4 panktiya sabse marmsparshi hain..

    Deepak..

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  9. रख लो अपनी मजबूत हथेली में मेरी हथेली
    काफी है मंजिल के लिए
    बहुत खुब जी

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  10. 'तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है
    बिना किसी शस्त्र के
    बिना चक्रव्यूह के
    बिना किसी छल के ...
    बहुत सुन्दर शब्द भाव हमेशा की तरह....आभार

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  11. "रख लो अपनी मजबूत हथेली में मेरी हथेली
    काफी है मंजिल के लिए"
    .बड़ी सहजता से इतनी गंभीर बात कह गयीं आप छोटे से ले कर बड़े तक हर किसी को चाहिए एक मजबूत हथेली कितना सच है !!!!

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  12. 'अच्छा' और 'बढ़िया'से बेहतर कोई और शब्द हो तो उसे यहाँ लिखा मान लें !

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  13. 'तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है
    बिना किसी शस्त्र के
    बिना चक्रव्यूह के
    बिना किसी छल के "
    बहुत गंभीर और संवेदनशील रचना ! अन्य रचनाओं के तरह ही विलक्षण !

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  14. अदभुत रचना । बहुत बहुत बहुत बधाई

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  15. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे ०४.0७.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  16. rashmi ji,
    behad saargarbhit rachna. soch ka vistaar aur ati samvedansheel abhivyakti...

    'तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है
    बिना किसी शस्त्र के
    बिना चक्रव्यूह के
    बिना किसी छल के
    .............................
    रख लो अपनी मजबूत हथेली में मेरी हथेली
    काफी है मंजिल के लिए
    saarthak lekhan ke liye badhai sweekaaren.

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  17. तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता
    ...vaah! is kavita ke madhyam se tandav ko vistar diya aapne ..! badhai.

    जवाब देंहटाएं
  18. सारे रास्ते दर्द के
    तुमने भी सहे
    हमने भी सहे
    तुमको एक तलाश रही
    मेरे साथ विश्वास रहा

    naari ke isi vishvas par aakar purush kee talash khatm hoti h. behtareen rachna..

    जवाब देंहटाएं
  19. 'तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है

    Prabhawi Panqtiyan. Sundar rachna

    जवाब देंहटाएं
  20. 'तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है
    बिना किसी शस्त्र के
    बिना चक्रव्यूह के
    बिना किसी छल के


    wakai...aur aisa taandav jyada pralayankari hota hai..
    satya vachan

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  21. तुम्हारे मन का कोई संशय
    मुझे विचलित नहीं करता
    गहरे घाव एक बार में नहीं भरते ...!
    मेरे घाव गहरे तो हैं
    पर मरहम इतने असली रहे
    कि आंसू भी खिलखिलाकर बहे....
    ati sunder abhivykti..............

    जवाब देंहटाएं
  22. एक आभासी समर्थन ही पर्याप्त है आगे बढ़ने के लिये ।

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  23. रख लो अपनी मजबूत हथेली में मेरी हथेली
    काफी है मंजिल के लिए
    bahut khoob

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  24. पूर्ण समर्पण देती कविता का रुख !!

    जवाब देंहटाएं
  25. रश्मि जी, क्या कहूँ ... बेहतरीन रचना ...
    शक्ति और शिव का सामंजस्य बिठाया है आपने ...

    जवाब देंहटाएं
  26. तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है
    बिना किसी शस्त्र के
    बिना चक्रव्यूह के
    बिना किसी छल के
    बहुत सुन्दर अद्भुत मगर सत्य

    रख लो अपनी मजबूत हथेली में मेरी हथेली
    काफी है मंजिल के लिए
    इस रचना के लिये निशब्द हूँ। बधाई

    जवाब देंहटाएं
  27. 'कौन है ये?' तुम चौंकते रहे
    तुम साथ हो तो सही ...
    सोचकर मैं शक्ति का पर्याय बनी
    दर्द ने तुम्हारे अस्तित्व को डगमगा दिया
    दर्द ने मुझे मेरे अस्तित्व की पहचान दी
    दर्द ने तुम्हें सजग बनाया
    दर्द ने मुझे गंगा यमुना के मध्य
    सरस्वती बनाया (जो हो ,पर दिखे नहीं)....
    ye pnktiyan khi ghre utr gai
    utkrasht sundar abhivykti.

    जवाब देंहटाएं
  28. सत्य ये है----
    कि तुम शक्ति का स्रोत हो

    'तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है
    बिना किसी शस्त्र के
    बिना चक्रव्यूह के
    बिना किसी छल के......


    bahut sahi kaha aapane...iss katu saty ko shabd dene ke liye, bahut sari shubhkamanaayen.......ek pranaam ke saath.

    जवाब देंहटाएं
  29. 'तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है
    बिना किसी शस्त्र के
    बिना चक्रव्यूह के
    बिना किसी छल के
    रख लो अपनी मजबूत हथेली में मेरी हथेली
    काफी है मंजिल के लिए
    Bahut khoob kaha Aapne. Prerak abhibyakti.

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  30. मैंने तो अपनी हथेली आपकी इस कविता में छिपा ली ...वो सारे शब्द मुझे इतने अपने से लगे ..

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  31. सत्य ये है----
    कि तुम शक्ति का स्रोत हो.....
    har baar ki tarah behtareen rachna....

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  32. 'तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है

    मन के ज़ज्बात बाहर आ ही जाते हैं .. तांडव बार नर्तन नही होता ... बहुत अधबुध पंक्तिया हैं .... सोचने को विवश करता है आपका लेखन ...

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  33. तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है
    बिना किसी शस्त्र के
    बिना चक्रव्यूह के
    बिना किसी छल के ...
    सुन्दर अभिवयक्ति है। शायद ये रचना आप पहले भी सुना चुकी हैं। लाजवाब बधाई

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  34. तांडव' क्रोध का ही नहीं होता
    शांत, सुकून भरे चेहरे का भी होता है
    आँखों से बरसते प्रेम का भी होता है

    वाह..वा...बेमिसाल.....!!

    फलोवर का भी लक्की नम्बर है ......!!

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  35. रख लो अपनी मजबूत हथेली में मेरी हथेली
    काफी है मंजिल के लिए, गहरे भावों के साथ बेहतरीन रचना, आभार ।

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  36. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...