05 सितंबर, 2010

परछाईं


एक परछाईं सी गुज़रती है
खाली खाली कमरों में
अपलक, अनजान, अनसुनी सी मेरी आँखें
उसे देखती रहती हैं ...

परछाईं !
आवाज़ देती है उन लम्हों को
जिसे कतरा कतरा उसने जिया था
अपनी रूह बनाया था ...

लम्हों के कद बड़े होते गए
परछाईं ने उनके पैरों में
लक्ष्य के जूते डाल दिए
और अब
उनकी आहटों को
हर कमरे में तलाशती है
दुआओं के दीप जलाती है
फिर थक हारके
मुझमें एकाकार हो जाती है...

उसको दुलारते हुए
मेरी अनकही आँखें
बूंद बूंद कुछ कहने लगती हैं
हथेलियाँ उनको पोछने लगती हैं
फिर स्वतः
फ़ोन घुमाने लगती हैं
'कैसे हो तुम ? और तुम? और तुम?
... मैं अच्छी हूँ '

क्या कहूँ ...
कि खुद को इस कमरे से उस कमरे
घूमते देखा करती हूँ
क्या समझाऊँ
खाली शरीर की बात क्या समझाऊँ !
.....................!!!
क्या कहूँ
कैसा लगता है खुद से खुद को देखना ...

25 टिप्‍पणियां:

  1. =====और कुछ नहीं दोस्त --
    यह तेरी और मेरी ही तो परछाई हैं

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी अनकही आँखें
    बूंद बूंद कुछ कहने लगती हैं
    हथेलियाँ उनको पोछने लगती हैं
    फिर स्वतः
    फ़ोन घुमाने लगती हैं

    मन में उठाते हुए उद्वेग को बखूबी शब्द दिए हैं ...
    होती है जब
    तन्हाई
    तो
    मैं और मेरी
    परछाईं
    बात किया करते हैं

    जवाब देंहटाएं
  3. भावुक कर देने वाली रचना ... प्रस्तुति...
    शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  4. भावुक कर देने वाली रचना ... प्रस्तुति...
    शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  5. समझ, समझना और समझाना, सम्भव है क्या?
    इस संसार में २ + २ = ४ होने के लिए भी ईश्वर का आशीर्वाद होना जरुरी है.

    जवाब देंहटाएं
  6. लम्हों के कद बड़े होते गए
    परछाईं ने उनके पैरों में
    लक्ष्य के जूते डाल दिए
    और अब
    उनकी आहटों को
    हर कमरे में तलाशती है
    दुआओं के दीप जलाती है
    फिर थक हारके
    मुझमें एकाकार हो जाती है...
    वाह...

    ये अलग अंदाज़ ही आपकी पहचान बन चुका है...

    जवाब देंहटाएं
  7. मम्मी जी .... बहुत भावुक कर देने वाली रचना है...

    लम्हों के कद बड़े होते गए
    परछाईं ने उनके पैरों में
    लक्ष्य के जूते डाल दिए
    और अब
    उनकी आहटों को
    हर कमरे में तलाशती है
    दुआओं के दीप जलाती है
    फिर थक हारके
    मुझमें एकाकार हो जाती है...


    यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं...

    जवाब देंहटाएं
  8. rashmi ji ki har kavita eak naya bimb liye hoti hai.. nai baat kehti hai.. aadhnik jiwan me jo ekaki pan hai us se jhujhti eak sunder kavita.. marmsparshi

    जवाब देंहटाएं
  9. लम्हों के कद बड़े होते गए
    परछाईं ने उनके पैरों में
    लक्ष्य के जूते डाल दिए
    और अब
    उनकी आहटों को
    हर कमरे में तलाशती है

    ये परछाईयाँ घूमती रहती हैं मन के हर कोने में ... आवारा यादों की तरह ... बहुत खूब लिखा है ...

    जवाब देंहटाएं
  10. कुछ पंक्तियाँ याद आ गईं
    "मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं ..."
    बहुत सुन्दर...

    जवाब देंहटाएं
  11. लम्हों के कद बड़े होते गए
    परछाईं ने उनके पैरों में
    लक्ष्य के जूते डाल दिए
    और अब
    उनकी आहटों को
    हर कमरे में तलाशती है
    भावनाओं को कितने सही और अनोखे शब्द दिए हैं भावुक कर गई आपकी ये रचना

    जवाब देंहटाएं
  12. परछाई से तो नहीं पर दर्पण के सामने यह प्रश्न कई बार पूछ चुका हूँ स्वयं से।

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
    --
    भारत के पूर्व राष्ट्रपति
    डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिन
    शिक्षकदिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  14. क्या कहूँ कैसा लगता है ... परछाईं पढ़ क्या महसूस होता है... ILu..!

    जवाब देंहटाएं
  15. निःसंदेह यह एक श्रेष्ठ रचना है।

    जवाब देंहटाएं
  16. एक मन के बहुत करीब रचना |भावना को बहुत सही दिशा देती कविता |बहुत बहुत बधाई |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  17. उसको दुलारते हुए
    मेरी अनकही आँखें
    बूंद बूंद कुछ कहने लगती हैं
    हथेलियाँ उनको पोछने लगती हैं
    फिर स्वतः
    फ़ोन घुमाने लगती हैं
    'कैसे हो तुम ? और तुम? और तुम?
    ... मैं अच्छी हूँ '

    बहुत ही सुन्दर और कोमल अभिव्यक्ति ! जैसे आँसू पलकों पर थरथराते रहें और गिर न पायें ! बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना !

    जवाब देंहटाएं
  18. behtareen rachna....man ke bhaavon ko sakshamta se abhivyakt karti hui..

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत सुन्दर और भावुक कर देने वाली रचना! बहुत बढ़िया लगा!

    जवाब देंहटाएं
  20. mumkin hai ki khali sharir ko dekhna jivan ko dekhna ho apne saaye ke maadhyam se...bhaavpurn rachna, badhai rashmi ji.

    जवाब देंहटाएं
  21. क्या कहूँ ...
    कि खुद को इस कमरे से उस कमरे
    घूमते देखा करती हूँ
    क्या समझाऊँ
    खाली शरीर की बात क्या समझाऊँ !
    .....................!!!
    क्या कहूँ
    कैसा लगता है खुद से खुद को देखना ...
    ...man ke ghor nirasha ke kshanon mein sach mein apne aap ko samjhana kabhi-kabhi kitna mushkil hone lagta hai..
    ..betreen prastuti

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...