09 अक्तूबर, 2010

अच्छा लगता है


खुद को लिखना
खुद को पढ़ना
खुद को सुनना
अच्छा लगता है...
खुद को देखना
खुद संग मुस्कुराना
अच्छा लगता है ...

यह अकेला बड़ा सा कमरा
मुझसे कभी नहीं उबता
खुद को पुकारना
खुद का आना
इसे भी अच्छा लगता है...

खुद संग बैठकर चाय पीना
बिस्तर की सलवटों को ठीक करना
अच्छा लगता है
खुद के सन्नाटे में
खुद के विचारों का शोर
अच्छा लगता है ...

खुद से दोस्ती
खुद से प्यार
ज़बरदस्त विश्वास
आखिर ये मेरा 'मैं' मुझसे दूर जायेगा कहाँ
खुद में पूरा रहना
अच्छा लगता है !!!


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आदरणीय शेखर सुमन जी ने जो प्रयास शुरू किया है हमारी यादों में झाँकने का
एक खूबसूरत अर्थ तलाशने का , उसमें खुद को पाना अच्छा लगा है

55 टिप्‍पणियां:

  1. ममा....इसीलिए तो मैं खुद से बहुत प्यार करता हूँ.... क्यूंकि मैं कभी खुद से कभी दूर नहीं जाऊंगा...



    आज की यह रचना बहुत ही अच्छी लगी....

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  2. ममा....इसीलिए तो मैं खुद से बहुत प्यार करता हूँ.... क्यूंकि मैं कभी खुद से कभी दूर नहीं जाऊंगा...



    आज की यह रचना बहुत ही अच्छी लगी....

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  3. जिस दिन हम खुद से खुद को ढूढ लें पहचान लें सब झमेला ही मिट जाए! आभार इस कविता के लिए।

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  4. हाँ बहुत अच्छा लगता है खुद का खुद मे लौट आना। अच्छी लगी रचना। बधाई।

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  5. जिस दिन ये "मैं" मुझसे दूर हो गया ज़िन्दगी अधूरी हो जायेगी शायद... बिन रूह का एक खोखला शरीर बस...

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  6. ज़बरदस्त विश्वास
    आखिर ये मेरा 'मैं' मुझसे दूर जायेगा कहाँ
    खुद में पूरा रहना
    अच्छा लगता है !!

    मैं कहीं नहीं जायेगा ..यह चला जायेगा तो खुद की पहचान ही खत्म हो जायेगी ...लेकिन यहाँ मैं मतलब अहम नहीं है ....

    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  7. sahi kaha DI,

    bakai achha lagta he, jab khud se mulakat ho jati he!

    shaandar rachna di

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  8. खुद के सन्नाटे में 'मैं' अहम् हो भी नहीं सकता ...

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  9. सभी को अपना सब कुछ अच्छा लगता है ... सौ टके की बात रचना के माध्यम ... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  10. खूबसूरत अभिव्यक्तियाँ..शानदार प्रस्तुति...बधाई.


    ______________________
    'शब्द सृजन की ओर' पर चिट्ठियों की बातें...

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  11. खुद का खुद में जी लेना आसान नहीं होता , फिर भी ये एक अलग तरह का अनुभव है कि खुद को पहचान कर उसको आत्मसात कर लेना.
    एक अलग अभिव्यक्ति देती हुई सुन्दर से कृति के लिए बधाई.

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  12. खुद को जानना, खुद में सामना और खुद में ही रममाण रहना... संपूर्णता का बयां है...

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  13. आखिर ये मेरा 'मैं' मुझसे दूर जायेगा कहाँ
    खुद में पूरा रहना
    अच्छा लगता है !!!

    जब खुद को जान लिया फिर जानने को कुछ बचता कहाँ है।

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  14. बहुत सुन्दर
    न किसी से गिला न शिकवा

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  15. बहुत ही खुबसूरत रचना...
    हम हम हैं, बाकी सब कम हैं...
    मेरे ब्लॉग पर इस बार रश्मि प्रभा जी की रचनायें....

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  16. आईने में बाल संवारते , मुस्कुराते ...
    गुजरते हैं बहुत से पल गुनगुनाते ...
    चिढ कर आईना बोला ..
    उफ़ ...फिर वही धुन ....!

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  17. बहुत ही खुबसूरत रचना..., आप सब को नवरात्रो की शुभकामनायें,

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  18. खुद से दोस्ती
    खुद से प्यार
    ज़बरदस्त विश्वास
    आखिर ये मेरा 'मैं' मुझसे दूर जायेगा कहाँ
    खुद में पूरा रहना
    अच्छा लगता है...
    अलग, सुखद और सकारात्मक अहसास पेश किए हैं आपने...
    एक शेर याद आ रहा है-
    दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को भी
    थोड़ी बहुत तो ज़ेहन में नाराज़गी रहे.

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  19. khud ke sath jine se achha shayad hin kuchh achha lagta hai. apni marzi apna mann bas...........
    shubhkaamnaayen.

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  20. खुद से बड़ा दोस्त मिलना भी तो मुश्किल है ।

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  21. एक ये खुद ही तो है जहाँ बिना आवरण के आप सब कुछ बता सकती हैं...कुछ नहीं छिपा सकती.

    सुंदर प्रस्तुति.

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  22. खुद से दोस्ती
    खुद से प्यार
    ज़बरदस्त विश्वास
    आखिर ये मेरा 'मैं' मुझसे दूर जायेगा कहाँ
    खुद में पूरा रहना
    अच्छा लगता है !!!
    Adarniya Rashmi ji,
    atmvishvas ko apne bahut hi khubsurati se shabdon men bandha hai----bahut sundar rachna.
    Navratri ki hardik mangalkamnayen sveekaren.
    Poonam

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  23. खुद में पूरा रहना
    अच्छा लगता है !
    -सच एकदम सही लिखा .
    भावपूर्ण कविता .

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  24. बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
    या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
    नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!, राजभाषा हिन्दी पर कहानी ऐसे बनी

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  25. बढ़िया .. कभी कभी खुद को भी समय देना चाहिए !

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  26. खुद में पूरा रहना
    अच्छा लगता है !
    -सच एकदम सही लिखा .
    भावपूर्ण कविता .

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  27. अक्सर तन्हाई में इंसान खुद से ही बातें करता है .. खुद से ही मिलता है ...
    बहुत अच्छी रचना है ...

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  28. कल से बाहर था इसलिए इस पोस्ट को नही देख सका!
    --
    आपने बहुत ही उम्दारचना लगाई है!

    --
    नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ!
    --
    जय माता जी की!

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  29. बहुत ही खुबसूरत रचना..., आपको नवरात्रो की शुभकामनायें

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  30. Ek sher kabhi kaha tha hamne....aapki creativity ne yaad dila diya .....to arz hai

    "हमें खुद से मोहब्बत अब और ज्यादा करने लगे है, ...पर इस उन्सियत से थोडा डरने लगे है

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  31. खुद से खुद की पहचान जितनी जल्‍दी हो जाए उतना ही अच्‍छा होता है।

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  32. कविता में स्वकेन्द्रित होने के बावजूद पात्र का आत्मविश्वास अधिक मुखर है और यही इस कविता की विशेषता है।

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  33. bohot hi acchi kavita hai rashmi ji. in fact, padhte padhte maine realise kiya ke haan, mujhe bhi to accha lagta hai yahi sab. pehle main sochti thi ke accha nahin lagta mujhe, main bore ho rahi hoon, all alone..blah blah....par haan, ab..accha lagta hai ;)

    bohot sundar kavita

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  34. अद्भुत ! अनुपम !
    बेहद खूबसूरत !

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  35. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों के साथ खुद का साथ अनुपम प्रस्‍तुति, आप की लेखनी को सलाम ।

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  36. आखिर ये मेरा 'मैं' मुझसे दूर जायेगा कहाँ
    खुद में पूरा रहना
    अच्छा लगता है !!!


    -क्या बात है...

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  37. ..खुद के साथ रहना आसान पर ...खुद से मिलना..खुद को जानना पर कितना मुश्किल है..

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  38. अच्छे भावो‍ से परिपूर्ण रचना. मुझे लगा कि आप गज़ल शुरू कर रही है‍ लेकिन बाद मे आपने ट्रैक बदल दिया. मै समझता हू आपको गज़ल भी कहनी चाहिए, अगर कह्ती है तो --- वाह.

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  39. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति. रश्मि जी मेरे पास पन्त जी की एक पाण्डुलिपि की फोटो है जिसे मैंने इलाहाबाद म्युजियम मे रखी उनकी पाण्डुलिपि को अपने कमरे मे कैद किया था जो इस लिंक पर है ..

    http://www.orkut.co.in/Main#AlbumZoom?gwt=1&uid=11733698565820094814&aid=1269666388&pid=1278443103058

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  40. didi pranm !
    main'' kitna kuch kah jaata hai apne hone ka wazood aur kahi kahi swayam ko khone ka aanad aata hai , main aur meri tanhaiya .
    sunder
    sadhuwad!

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  41. बहुत अच्छा लगा ,अपने को ढूँढना । नवरात्री की शुभकामनायें

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  42. कभी शयद खुद को भूल जाते और उसकी वजह को तलाशते , थकते वापस खुद का ही सहारा पते ..तब खुद को समझना और अच्छा लगता है !

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  43. हर बार की तरह फिर से इक बार अद्वतीय रचना ....
    अब इतनी तारीफ के बात मैं क्या तारीफ करूँ, सभी शब्द तो तरकश से पहले ही निकले जा चुके हैं.........
    सिर्फ और सिर्फ अब अपना खाली तरकश ही बचा है मेरी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए.... फिर भी कोई गम नहीं...., समझदार के लिए मौन की अभिव्यक्ति भी बहुत कुछ कह ही जाती है..............

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  44. kash kudh se milna itna aasan hota...

    bhikhra pada hoo mai...
    sahejta koi nahi...

    chal rha hoo mai...
    manzil deta koi nahi...

    khud ki talash aur bhietar jane ka sahas nahi...

    mujhko pookarta hai koi...


    rashmi ji...achchi rachna hai...

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  45. AAP BAHUT ACHA LIKHTI HAI... I THINK YOU ARE A GREAT WOMAN LIKE MY MOTHER.

    -SUBODH

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  46. कितनी ही बार अपने ही कमरे के बाहर पर्ची लिख कर टाँग देती थी - मुझे अकेला रहने दो ... और मजाल है कि बच्चे अन्दर आ जाएँ ... कई बार तो पति ऑफिस से आकर बच्चो के साथ ही बैठे रहते....लेकिन इस बीच अपने से बाहर आने मे वक्त भी न लगता...

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  47. khud mein rahkar khud ko khojna acchha lagta hai...
    bahut pyaaree rachna...

    जवाब देंहटाएं
  48. सच है...अपनी एक कविता की पंक्तियाँ लिखना चाहती हूँ....
    "कर सकता है वो मुझको ,
    मजबूर सदा चुप रहने को
    न किसी की सुनने को
    न खुद कहने को...
    मगर मेरे मन से मेरा
    संवाद तो मेरा अपना है...

    ..बहुत सुन्दर बात कही आपने.

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दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...