08 नवंबर, 2010

अधिकार वजूद का



एक स्त्री प्रेम में
राधा बन जाती है
खींच लेती है एक रेखा प्रेम की
एक मर्यादित रेखा
सीमित हो जाती है उसकी दृष्टि
एक साथ वह कई विम्ब बन जाती है
- सीता, राधा, ध्रुवस्वामिनी,यशोधरा ,
हीर, सोहणी

पर पुरुष !
क्यूँ नहीं बनता कोई विम्ब
खींचता कोई मर्यादित रेखा
उसकी रेखाहीन ज़िन्दगी में
कई चिताएं सुलगती हैं
जीते जी राधा, सीता,
ध्रुवस्वामिनी,यशोधरा की मौत
हर बार होती है
एक अंतहीन सिलसिला है
सुलगते एहसासों का ...

प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
पर अधिकार तो मांगता है
एक ठहराव का
अपने वजूद का

37 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम में पुरुष बिम्ब नहीं, प्रतिबिम्ब बन जाता है।

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  2. kyun di!! har sita, radha, heer aur sohni ka raam, krishna, ranjha aur mahiwal to purush hi hota hai..:)


    waise Di!! jaise hi koi purush kisi stri ki adhikar ko todta hai to uska kaaran bhi koi par-stri hi hoti hai.......

    waise ek dil chhune wali kavita..:)
    aapke kalam se nikli ek aur behtareen rachna!!

    happy bhaiya duuj......di!!

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  3. पर पुरुष !
    क्यूँ नहीं बनता कोई विम्ब
    खींचता कोई मर्यादित रेखा
    प्रश्न आपका मुश्किल नहीं है पर उत्तर बहुत मुश्किल से निकलता है दीवाली की शुभकामनायें

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  4. प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
    पर अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का
    अपने वजूद का

    behtareen rashmi ji ................

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  5. प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
    पर अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का
    अपने वजूद का
    दिल को छू गयी आपकी अभिव्यक्ति। औरत की अपने वज़ूद के लिये तलाश न जाने कब खत्म होगी। शुभकामनायें।

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  6. प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
    पर अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का
    अपने वजूद का
    सहमत हूँ की प्रेम के मामले में पुरुष स्त्री से कुछ कमज़ोर ही है ... इसलिए तो स्त्री को इतना ऊंचा दर्जा मिला है .... राधा और सीता का नाम भी तो कृष्ण और राम से पहले ही आता है ...

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  7. प्यार मांगता है ठहराव अपने वजूद का .....??
    मैं सोचती हूँ प्यार स्वतंत्र कर देता है ...प्यार है तो साथ रहेगा या लौट कर आएगा ही ...(प्यार से मेरा मतलब विशुद्ध प्रेम से है जो माता पिता , भाई बहन, प्रेमी प्रेमिका , मित्र सबके लिए एक समान होता है , जिसमे वासना, लेनदेन नहीं निर्मलता हो ...!)

    मुझे एकदम से रश्मि की कहानी याद आ गयी ...इस पीढ़ी में प्रेम की कोई मर्यादा रेखा नहीं है ...ना स्त्री के लिए , ना पुरुष के लिए !

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  8. प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
    पर अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का
    अपने वजूद का..

    विचारणीय बात है ...

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  9. प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
    पर अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का
    अपने वजूद का

    यही तो त्रासदी है……………वजूदों को कब मुकाम मिले हैं।

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  10. अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का
    अपने वजूद का

    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों के साथ भावमय प्रस्‍तुति ।

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  11. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 09-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

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  12. "प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
    पर अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का
    अपने वजूद का"
    मन को भा गयी कविता ! बहुत सुन्दर !!

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  13. Prem ekakaar kar deta hai tabhi to radha aur Krishna “radhe-krishn” ban jaate hai
    Sundar rachnaa

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  14. पुरुष !
    क्यूँ नहीं बनता कोई विम्ब -
    -बहुत सही प्रश्न उठाया है..
    --पुरुष और स्त्री के प्रेम में यही अंतर है ..
    स्त्री का प्रेम अलग अलग रूपों में भी पूर्ण समर्पण होता है..

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  15. बहुत मुश्किल है समझा पाना .....
    पुरुष और स्त्री के लिए,
    प्रेम की परिभाषा, उसकी अनुभूति, उसका एहसास, उसकी कसक, उसकी तड़प
    एक से नहीं होते,
    या यूँ कहें एक से हो ही नहीं सकते

    दोनों का पूरा चरित्र एक दूसरे के विपरीत है
    एक बाह्यमुखी तो दूसरा अंतर्मुखी है.

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  16. सच कहा...हर नारी की कहानी...इस कविता की जुबानी.

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  17. प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
    पर अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का
    अपने वजूद का
    * * *

    प्रेम में पुरुष बिम्ब नहीं, प्रतिबिम्ब बन जाता है।

    kya kahu? niruttar hu...

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  18. स्त्री का अपने इर्द-गिर्द मर्यादित रेखा खींचना ,उसकी मजबूरी हो जाती है और प्रेम बलि चढ़ जाता है...जबकि पुरुष स्वच्छंद होता है...बिना किसी रेखा के..
    प्रेम करने की भावनाएं तो एक जैसी होती हैं..दोनों की फिर यह अंतर क्यूँ...

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  19. प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
    पर अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का
    अपने वजूद का
    क्या अंदाज़ है... बहुत सुन्दर सीधी और साफ़ बात. सच कहा है आपने प्यार तो वो है जिसमें जो जैसा है वैसा ही स्वीकार्य हो

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  20. वाह !! बहुत खूब ... क्या बात कही है आपने ..

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  21. एक अंतहीन सिलसिला है
    सुलगते एहसासों का ...

    प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
    पर अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का
    अपने वजूद का

    Rashmi Di!
    Bahut sunder Abhivayakti!



    kintu! parantu! ki kai lahronon ke sath man ko mathne wali yah rachna na jane kitne vichron ko janm deti hai!

    sadhuvaad!

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  22. प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
    पर अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का
    अपने वजूद का
    didi pranam !
    sunder abhivyakti , badhai
    saadar

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  23. एक अंतहीन सिलसिला है
    सुलगते एहसासों का
    satya hai...
    ehsaason ki yah katha kavita sundarta se vyakt karti hai!!!
    regards,

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  24. प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
    पर अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का
    अपने वजूद का
    ....sundar bhavabhivykti...aabhar

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  25. प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
    पर अधिकार तो मांगता है!!!
    रश्मि जी ! आप सूत्र वाक्य लिखती हैं या कहूँ की मन्त्र वाक्य तो गलत नही होगा ! शायद आज के पुरुष समझें इस बात को ! इंतजार की उम्मीद बंधी है ! आभार

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  26. नारी के अंतर्मन को कुरेदते प्रश्नों का गहन संवेदनाओं से आप्लावित मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  27. प्यार परिवर्तन नहीं मांगता
    पर अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का
    अपने वजूद का bahut khoobsurat bat kahi aapne....

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  28. नारी की व्यथा-कथा कहती अच्छी कविता

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  29. प्यार परिवर्तन नहीं मांगता पर अधिकार तो मांगता है
    एक ठहराव का, अपने वजूद का .... waaahhhh...ILu...!

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  30. जायज प्रश्न उकेरती रचना

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  31. मुनासिब सवाल उठाती रचना आपने बहुत अच्छे तरीके से पेश की है.

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  32. mudda bahut sateek uthaya hai aapne..par yadi purush koi bimb nahi ban raha ...to prem kar hi nahi pa raha hai...

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  33. पर पुरुष !
    क्यूँ नहीं बनता कोई विम्ब
    खींचता कोई मर्यादित रेखा

    jab ek aurat apne prem me har dharm nibhati hai to kyu purush nahi nibha paata aur de deta hai use vo apni majburi ka naam ....prem ishwar bhakti hai to har yug me sirf seeta ya radha ko tyaga jaata raha hai...agni pariksha sirf seeta ki hoti hai raam ki kyu nhi??

    dil ko chu lene wali abhivyakti .......

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