कई बातें हमें उद्वेलित करती हैं
पर आत्मसात करना हार नहीं
मजबूती है ...
मजबूत दीवारें ही बता पाती हैं
कि मुझे बेधना आसान नहीं ...
बिल्कुल ज़रूरी नहीं
कि हम बाहर बारूद बिछा दें !
धमाके से किसी निर्दोष का अवसान
क्या हमें सुकून देगा
क्या किसी पंछी का बसेरा
फिर कभी हमारे दालान में बनेगा ?
...
हमें मजबूत होना है
सजग होना है
ना कि असली फूलों की खुशबू से विलग होना है
..
दुर्भाग्य !
तरह तरह की दलीलों से
हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
चेहरा नकली
बोली नकली
खिलखिलाहट नकली ..
डर लगता है
हम सब अपनी ही निगाह में
अजनबी होकर रह गए हैं !
जिंदगी में घुस चुके बनावटीपन पर अच्छी कविता... काश हम भीतर के अजनबी से परिचित हो पाते..
जवाब देंहटाएंस्वयं के मन को झकझोरती अच्छी रचना ..पहले स्वयं की अजनबियत तो दूर करें ....आज खुद से भी मिलते हैं तो एक मुखौटा लगा कर ...विचारणीय रचना ..
जवाब देंहटाएंsach kaha sangeeta di ne..........aakhir kab ham apne ko pahchan payenge......!!
जवाब देंहटाएंas usual ek badhiya post!!
दुर्भाग्य !
जवाब देंहटाएंतरह तरह की दलीलों से
हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
चेहरा नकली
बोली नकली
खिलखिलाहट नकली ..
डर लगता है
हम सब अपनी ही निगाह में
अजनबी होकर रह गए हैं !
सही बात है रश्मिजी। आज हर आदमी के चेहरे पर कई नकाब हैं अपनी खुद की पहचान तो वो खो चुका है। बधाई इस रचना के लिये।
हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
जवाब देंहटाएंचेहरा नकली
बोली नकली
खिलखिलाहट नकली ..
स्वयं का सच बयां करती हुई पंक्तियां ...।
साम्प्रत समय में इंसानी रूह में जो खोखलापन और दिखावा है, उसी का वास्तविक चित्रण... धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसही है मैम... पहले कहते थे कि कुछ लोग सुबह उठ के मेक-अप करते हैं... अब तो लागत अहै कि नकलीपन का ये मेक-अप हर किसी के चहरे, ज़िंदगी में 24 घंटे रहता है...
जवाब देंहटाएंawesome... हमेशा की तरह...
एक- एक पंक्ति से सहमत ...
जवाब देंहटाएं@ हमें मजबूत होना है
सजग होना है
ना कि असली फूलों की खुशबू से विलग होना है
बिलकुल मेरे ही दिल की बात जैसा ...
पहले हम खुद को तो पहचान लें ...
बहुत अपनी सी लगी कविता ...
बहुत अच्छी रचना, बधाई।
जवाब देंहटाएंहमें मजबूत होना है
जवाब देंहटाएंसजग होना है
ना कि असली फूलों की खुशबू से विलग होना है
इस कविता में स्वय्म को तरीक़े से पहचानने की कोशिश नज़र आती है।
रचना तो सुन्दर है पर शायद उससे भी सुन्दर और विचारोत्तेजक उसमें निहित भावना है ...
जवाब देंहटाएंविचारपरक अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंआदरणीय रश्मि प्रभा जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
आपकी कविता पढ़कर मन अभिभूत हो गया ,
............बहुत सुन्दर अहसास , बधाई
शब्द शब्द गहरे भाव जगाती आपकी रचना
जवाब देंहटाएंbahut sunder likhin hain aap.man anandit ho gaya .
जवाब देंहटाएंbahut asardaar rachna didi, ek alag soch ko janm deti hui
जवाब देंहटाएंbadhayi
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
didi
जवाब देंहटाएंpranam !
ek vicharnya kavita ke liye aap ko sdhuwad .
mukhaua dhari on ko karara jawab
जवाब देंहटाएंnice creation
दुर्भाग्य !
जवाब देंहटाएंतरह तरह की दलीलों से
हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
चेहरा नकली
बोली नकली
खिलखिलाहट नकली ..
डर लगता है
हम सब अपनी ही निगाह में
अजनबी होकर रह गए हैं !
नकाब ओढे मुखौटों का सच्……………बेहद संवेदनशील और सोचने को मजबूर करती रचना।
हम सब अपनी ही निगाह में
जवाब देंहटाएंअजनबी होकर रह गए हैं !
... bahut khoob ... behatreen !!!
हमें मजबूत होना है
जवाब देंहटाएंसजग होना है
ना कि असली फूलों की खुशबू से विलग होना है
अजनबी हो आए मन को आत्मसाक्षात्कार करने एवं खुद को तलाशने और परखने का सफ़र इन्हीं राहों से होकर गुजरता है. गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
बहुत बहुत बहुत ही सही कहा आपने....
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायी अतिसुन्दर पोस्ट/रचना..
bahut badhiya..preranaadayi rachna.
जवाब देंहटाएंहम बनावटी होकर रह गए हैं ...
जवाब देंहटाएंचेहरा नकली
बोली नकली
खिलखिलाहट नकली ..
डर लगता है
हम सब अपनी ही निगाह में
अजनबी होकर रह गए हैं
सच कहा आपने ,good
हमें मजबूत होना है
जवाब देंहटाएंसजग होना है
ना कि असली फूलों की खुशबू से विलग होना है...
रश्मि जी, ये रचना आज की तिथि को कितना छू रही है...और बहुत बड़ा संदेश दे रही है.
बहुत सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएं--
अपने से तो सभी अनजान हैं!
आत्मसात ही कहीं इश्वर से भी मिलाता है... बहुत सुंदर विचार!
जवाब देंहटाएंrashmi di
जवाब देंहटाएंbilkuulsach aur sarthak post.naqab ke peechhe chehara asli hai ya naqli koun janta hai?
दुर्भाग्य !
तरह तरह की दलीलों से
हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
चेहरा नकली
बोली नकली
खिलखिलाहट नकली ..
डर लगता है
हम सब अपनी ही निगाह में
अजनबी होकर रह गए हैं!
sachmuch
poonam
बिल्कुल ज़रूरी नहीं
जवाब देंहटाएंकि हम बाहर बारूद बिछा दें !
धमाके से किसी निर्दोष का अवसान
क्या हमें सुकून देगा
क्या किसी पंछी का बसेरा
फिर कभी हमारे दालान में बनेगा ?
भावपूर्ण रचना ............
इस छद्म के बीच से ही हमे अपनी वास्तविकता की तलाश करनी है । अच्छी कविता ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति...................
जवाब देंहटाएंकभी-कभी सचमुच ऐसा लगता है...सबकुछ यंत्रवत हो रहा है....खुद से ही अजनबी होते जा रहें हैं...
जवाब देंहटाएंकई सवाल खड़े करती सशक्त रचना
दुख में कठोर और सुख में द्रवित।
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........
जवाब देंहटाएंhttp://saaransh-ek-ant.blogspot.com
दुर्भाग्य !
जवाब देंहटाएंतरह तरह की दलीलों से
हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
चेहरा नकली
बोली नकली
खिलखिलाहट नकली ..
डर लगता है
हम सब अपनी ही निगाह में
अजनबी होकर रह गए हैं !
जाने कैसे कैसे नकाब पहन रखे हैं हर इक चहरे ने
हर चहरे के पीछे सूरत जानी पहचानी देखी ......
तो अजनबी तो होंगे ही .....
हमेशा की तरह बहुत अच्छी रचना .......!!
दुर्भाग्य !
जवाब देंहटाएंतरह तरह की दलीलों से
हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
चेहरा नकली
बोली नकली
खिलखिलाहट नकली ..
डर लगता है
हम सब अपनी ही निगाह में
अजनबी होकर रह गए हैं!
कितनी सीधी सच्ची खरी बातें
bahut khub di
जवाब देंहटाएं"yahan sab dhundla sa hai
main khud ko pehchan ni pa raha"
sach me hum zindagi me bhagte hue khud se kitna durr ho jate hain