26 नवंबर, 2010

अपनी ही निगाह में अजनबी


कई बातें हमें उद्वेलित करती हैं
पर आत्मसात करना हार नहीं
मजबूती है ...
मजबूत दीवारें ही बता पाती हैं
कि मुझे बेधना आसान नहीं ...
बिल्कुल ज़रूरी नहीं
कि हम बाहर बारूद बिछा दें !
धमाके से किसी निर्दोष का अवसान
क्या हमें सुकून देगा
क्या किसी पंछी का बसेरा
फिर कभी हमारे दालान में बनेगा ?
...
हमें मजबूत होना है
सजग होना है
ना कि असली फूलों की खुशबू से विलग होना है
..
दुर्भाग्य !
तरह तरह की दलीलों से
हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
चेहरा नकली
बोली नकली
खिलखिलाहट नकली ..
डर लगता है
हम सब अपनी ही निगाह में
अजनबी होकर रह गए हैं !

37 टिप्‍पणियां:

  1. जिंदगी में घुस चुके बनावटीपन पर अच्छी कविता... काश हम भीतर के अजनबी से परिचित हो पाते..

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  2. स्वयं के मन को झकझोरती अच्छी रचना ..पहले स्वयं की अजनबियत तो दूर करें ....आज खुद से भी मिलते हैं तो एक मुखौटा लगा कर ...विचारणीय रचना ..

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  3. sach kaha sangeeta di ne..........aakhir kab ham apne ko pahchan payenge......!!

    as usual ek badhiya post!!

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  4. दुर्भाग्य !
    तरह तरह की दलीलों से
    हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
    चेहरा नकली
    बोली नकली
    खिलखिलाहट नकली ..
    डर लगता है
    हम सब अपनी ही निगाह में
    अजनबी होकर रह गए हैं !
    सही बात है रश्मिजी। आज हर आदमी के चेहरे पर कई नकाब हैं अपनी खुद की पहचान तो वो खो चुका है। बधाई इस रचना के लिये।

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  5. हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
    चेहरा नकली
    बोली नकली
    खिलखिलाहट नकली ..

    स्‍वयं का सच बयां करती हुई पंक्तियां ...।

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  6. साम्प्रत समय में इंसानी रूह में जो खोखलापन और दिखावा है, उसी का वास्तविक चित्रण... धन्यवाद

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  7. सही है मैम... पहले कहते थे कि कुछ लोग सुबह उठ के मेक-अप करते हैं... अब तो लागत अहै कि नकलीपन का ये मेक-अप हर किसी के चहरे, ज़िंदगी में 24 घंटे रहता है...
    awesome... हमेशा की तरह...

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  8. एक- एक पंक्ति से सहमत ...

    @ हमें मजबूत होना है
    सजग होना है
    ना कि असली फूलों की खुशबू से विलग होना है

    बिलकुल मेरे ही दिल की बात जैसा ...
    पहले हम खुद को तो पहचान लें ...
    बहुत अपनी सी लगी कविता ...

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  9. हमें मजबूत होना है
    सजग होना है
    ना कि असली फूलों की खुशबू से विलग होना है
    इस कविता में स्वय्म को तरीक़े से पहचानने की कोशिश नज़र आती है।

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  10. रचना तो सुन्दर है पर शायद उससे भी सुन्दर और विचारोत्तेजक उसमें निहित भावना है ...

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  11. आदरणीय रश्मि प्रभा जी
    नमस्कार !
    आपकी कविता पढ़कर मन अभिभूत हो गया ,
    ............बहुत सुन्दर अहसास , बधाई

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  12. शब्द शब्द गहरे भाव जगाती आपकी रचना

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  13. bahut asardaar rachna didi, ek alag soch ko janm deti hui

    badhayi

    vijay
    kavitao ke man se ...
    pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  14. दुर्भाग्य !
    तरह तरह की दलीलों से
    हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
    चेहरा नकली
    बोली नकली
    खिलखिलाहट नकली ..
    डर लगता है
    हम सब अपनी ही निगाह में
    अजनबी होकर रह गए हैं !

    नकाब ओढे मुखौटों का सच्……………बेहद संवेदनशील और सोचने को मजबूर करती रचना।

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  15. हम सब अपनी ही निगाह में
    अजनबी होकर रह गए हैं !
    ... bahut khoob ... behatreen !!!

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  16. हमें मजबूत होना है
    सजग होना है
    ना कि असली फूलों की खुशबू से विलग होना है

    अजनबी हो आए मन को आत्मसाक्षात्कार करने एवं खुद को तलाशने और परखने का सफ़र इन्हीं राहों से होकर गुजरता है. गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  17. बहुत बहुत बहुत ही सही कहा आपने....

    प्रेरणादायी अतिसुन्दर पोस्ट/रचना..

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  18. हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
    चेहरा नकली
    बोली नकली
    खिलखिलाहट नकली ..
    डर लगता है
    हम सब अपनी ही निगाह में
    अजनबी होकर रह गए हैं

    सच कहा आपने ,good

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  19. हमें मजबूत होना है
    सजग होना है
    ना कि असली फूलों की खुशबू से विलग होना है...

    रश्मि जी, ये रचना आज की तिथि को कितना छू रही है...और बहुत बड़ा संदेश दे रही है.

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  20. बहुत सुन्दर रचना!
    --
    अपने से तो सभी अनजान हैं!

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  21. आत्मसात ही कहीं इश्वर से भी मिलाता है... बहुत सुंदर विचार!

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  22. rashmi di
    bilkuulsach aur sarthak post.naqab ke peechhe chehara asli hai ya naqli koun janta hai?
    दुर्भाग्य !
    तरह तरह की दलीलों से
    हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
    चेहरा नकली
    बोली नकली
    खिलखिलाहट नकली ..
    डर लगता है
    हम सब अपनी ही निगाह में
    अजनबी होकर रह गए हैं!
    sachmuch
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  23. बिल्कुल ज़रूरी नहीं
    कि हम बाहर बारूद बिछा दें !
    धमाके से किसी निर्दोष का अवसान
    क्या हमें सुकून देगा
    क्या किसी पंछी का बसेरा
    फिर कभी हमारे दालान में बनेगा ?
    भावपूर्ण रचना ............

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  24. इस छद्म के बीच से ही हमे अपनी वास्तविकता की तलाश करनी है । अच्छी कविता ।

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  25. कभी-कभी सचमुच ऐसा लगता है...सबकुछ यंत्रवत हो रहा है....खुद से ही अजनबी होते जा रहें हैं...
    कई सवाल खड़े करती सशक्त रचना

    जवाब देंहटाएं
  26. बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति.........

    http://saaransh-ek-ant.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  27. दुर्भाग्य !
    तरह तरह की दलीलों से
    हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
    चेहरा नकली
    बोली नकली
    खिलखिलाहट नकली ..
    डर लगता है
    हम सब अपनी ही निगाह में
    अजनबी होकर रह गए हैं !

    जाने कैसे कैसे नकाब पहन रखे हैं हर इक चहरे ने
    हर चहरे के पीछे सूरत जानी पहचानी देखी ......
    तो अजनबी तो होंगे ही .....
    हमेशा की तरह बहुत अच्छी रचना .......!!

    जवाब देंहटाएं
  28. दुर्भाग्य !
    तरह तरह की दलीलों से
    हम बनावटी होकर रह गए हैं ...
    चेहरा नकली
    बोली नकली
    खिलखिलाहट नकली ..
    डर लगता है
    हम सब अपनी ही निगाह में
    अजनबी होकर रह गए हैं!
    कितनी सीधी सच्ची खरी बातें

    जवाब देंहटाएं
  29. bahut khub di
    "yahan sab dhundla sa hai
    main khud ko pehchan ni pa raha"

    sach me hum zindagi me bhagte hue khud se kitna durr ho jate hain

    जवाब देंहटाएं

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