पेन्ट जो सालों चलता है
जिसका बाह्य सौन्दर्य आकर्षित करता है
सीमेंट भी जिसके अन्दर पक्के होते हैं
होती हैं ख़ास ईंटें
उस मकान को
कोई घर नहीं बना पाता
न वक़्त होता है न सुकून
मोटे गद्दों पर बेचैन करवटें लेता इन्सान
कई मंजिलों से नीचे देखता है हतप्रभ
टूटी फूटी झोपडी का इन्सान
खुली ज़मीन पर
कैसे इतने सुकून से सोता है !
उसे भी भरनी होती है फीस
कमाए गए चंद रुपयों से
निकलते हैं उसके घर से
इंजिनियर , डॉ०, ....बड़े आराम से
....कैसे होता है यह चमत्कार
मुट्ठियों में रूपये मसलते वह सोचता रहता है
जब उत्तर में कुछ हाथ नहीं आता
या प्रतिस्पर्धा का जवाब रास नहीं आता
तो फिर
सुबह अपनी लम्बी सी कार में
हिकारत से उन्हें देखता
वह सर्र से निकल जाता है
... कुछ और की चाह में !
sundar.maarmik rachna.
जवाब देंहटाएंek baar fir se apne dard ko bolti hui rachna......!! bahut khub Di!
जवाब देंहटाएंबस, प्रतिस्पर्धा का जवाब रास नहीं आता
जवाब देंहटाएं"टूटी फूटी झोपडी का इंसान
जवाब देंहटाएंखुली ज़मीन पर
कैसे इतने सुकून से सोता है !"
भावपूर्ण रचना .....prabhavi prastuti
भूख और जरुरत का फर्क है ये ...
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता... कहाँ से विम्ब उठती हैं आप... आपकी कविता अचंभित करती है...
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
मोटे गद्दों पर बेचैन करवटें लेता इन्सान
जवाब देंहटाएंकई मंजिलों से नीचे देखता है हतप्रभ
टूटी फूटी झोपडी का इन्सान
खुली ज़मीन पर
कैसे इतने सुकून से सोता है !
asamanta ka bara hi achcha chitran ki hain.....upri tam-jham ko achchi maat di hai.
nind paiso se kab milti hai
जवाब देंहटाएंvidroop amiri ka marmik chitran
सुबह अपनी लम्बी सी कार में
जवाब देंहटाएंहिकारत से उन्हें देखता
वह सर्र से निकल जाता है
... कुछ और की चाह में !
ye to sach hai ,ati sundar .
लाजवाब सच्ची रचना...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत ही संवेदनशील और सार्थक रचना...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंbhaavpoorn rachna.
जवाब देंहटाएंयही... कुछ और की चाह ने ही सबकुछ चीन लिया है...
जवाब देंहटाएंइसीलिए कहते है... संतोषम परम सुखं...
बहुत बड़े सत्य को प्रस्तुत कर दिया आपने...
यह कुछ और की चाह ही तो जीने नहीं देती एक खुश हाल ज़िंदगी ...प्रतिभाओं को कोई नहीं रोक सकता ...अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंचित्र और कविता पारस्परिक गहनता ला रहे हैं।
जवाब देंहटाएंसुबह अपनी लम्बी सी कार में
जवाब देंहटाएंहिकारत से उन्हें देखता
वह सर्र से निकल जाता है
... कुछ और की चाह में !
ज़रुरत और इच्छाओं का द्वन्द .... बहुत सुंदर रश्मि जी....
एक शेर याद आ रहा है नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है
जवाब देंहटाएंयह जरुरी नही कि उनकी आगोश में हो सिर अपना |
santosh agar kahi h to bheetar
जवाब देंहटाएंdhan hamesha ichhaon ko badhaega hi
sunder prastuti...
बहुत अच्छी ओर सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएं.. कुछ और की चाह में !
जवाब देंहटाएंअगर ये शब्द जीवन के शब्दकोश में नहीं होता तो शायद इतनी मुश्किलें नहीं आती ...गहन भावों का संगम है यह अभिव्यक्ति ...।।
गहरी अनुभूति और संवेदना को आपने काव्य में उतार दिया है।
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna....
जवाब देंहटाएंkaya kahun javab nahi hai mere pas....bahut sunder chitran kiya hai
सुबह अपनी लम्बी सी कार में
जवाब देंहटाएंहिकारत से उन्हें देखता
वह सर्र से निकल जाता है
... कुछ और की चाह में !
bahut sunder
मन कहां कहीं रूकता है
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना ! आभार.
जवाब देंहटाएंहोली के पावन पर्व की आपको अग्रिम शुभकामनाएं.
आदरणीय रश्मि प्रभा जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
बहुत अच्छी ओर सुन्दर प्रस्तुति!
.....गहन भावों का संगम है यह अभिव्यक्ति
यह कुछ और कभी नहीं मिलता .... बहुत सुन्दर कविता !
जवाब देंहटाएंकुछ और सबके लिए इसकी अलग अलग परिभाषा होती है. हर इंसान के लिए अपना कुछ और अपनी जरूरत के अनुसार होता है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
Wah, kya abhivyakti hai! Kya anuthee kavita hai! Bahut khub!!!
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