28 मार्च, 2011

यकीन अपने होने का !



आँखों के मेघ जब घुमड़ते थे
तो दर्द का सैलाब
सुनामी से कम नहीं होता था
बहता जाता था अपना ही मन
हो जाती थी तबाह अपनी ही सोच
और महीनों कोई बीज
चेहरे पर उगता न था !
किसी चैनल पर
इस तबाही का ज़िक्र कभी नहीं हुआ
कभी किसी ने मर्म को छूना भी चाहा
तो आलोचनाओं की चिंगारी ने
उस स्पर्श को जला दिया
....
वक़्त बदलता है
प्रकृति बदलती है
सारी सोच खुद को बंजर घोषित कर देती है
आँखें भी मेघविहीन हुईं ....
.... पर जब जब तुमसे यूँ भी कुछ कहा है
बादल का एक टुकड़ा आँखों में तैरने लगता है
एक हल्की बारिश .... यकीन दे जाती है
अपने होने का !
संवेदना का एहसास
फिर कई सूखे को झेलने की तीव्रता दे जाता है

44 टिप्‍पणियां:

  1. बहता जाता था अपना ही मन
    हो जाती थी तबाह अपनी ही सोच
    और महीनों कोई बीज
    चेहरे पर उगता न था !
    किसी चैनल पर
    इस तबाही का ज़िक्र कभी नहीं हुआ
    कभी किसी ने मर्म को छूना भी चाहा
    तो आलोचनाओं की चिंगारी ने
    उस स्पर्श को जला दिया
    ....


    isake aage kuchh kahana shesh nahin rah jata hai.

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  2. आदरणीय रश्मि जी
    नमस्कार !
    खूबसुरत कविता के लिए बधाई |
    आपको पढ़ना हमेशा नया अनुभव होता है

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  3. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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  4. दर्द का सैलाब सुनामी से ज्यादा ..और कहीं किसी को पता भी नहीं ...लेकिन फिर भी हल्की सी बारिश का यकीं दिलाना कि अभी संवेदनाएं खत्म नहीं हुईं ....ऐसा कुछ लिख देतीं हैं जो मन में उतरता चला जाता है ..और अक्सर मैं मन ही मन इन पंक्तियों को दोहराती रह जाती हूँ ..

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  5. दिल को छू लेने वाली कविता.

    सादर

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  6. पर जब जब तुमसे यूँ भी कुछ कहा है
    बादल का एक टुकड़ा आँखों में तैरने लगता है
    एक हल्की बारिश .... यकीन दे जाती है
    अपने होने का !
    संवेदना का एहसास
    फिर कई सूखे को झेलने की तीव्रता दे जाता है

    इस एहसास के चलते ही हर दर्द शायद सहना संभव हुआ हो ...।

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  7. सारी सोच बंजर हो जाती है,
    अत्यन्त ही नये भाव, संवेदनशील कविता।

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  8. अभिव्यक्ति बेहद प्रभावी हो कर नि:शब्द कर गयी ..

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  9. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 29 -03 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  10. सारी सोच खुद को बंजर घोषित कर देती है
    आँखें भी मेघविहीन हुईं ....
    .... पर जब जब तुमसे यूँ भी कुछ कहा है
    बादल का एक टुकड़ा आँखों में तैरने लगता है
    एक हल्की बारिश .... यकीन दे जाती है
    अपने होने का !.......
    ..........

    कही अनकही के बीच की खामोशी ही तो है जो जीवन वृत को परिधि से जोड कर,प्रेरणा प्रदान करती है यूँ ही निरंतर चलते रहने की और बहुत कुछ कहने के लिये होने पर भी खामोश ही रहने देने की! ’मानव मन और उसकी गहराईयाँ’ वाह!

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  11. आँखों से दर्द का सैलाब ---
    सुनामी जैसा जो तबाह कर देता है अपनी सोच -
    कितना दर्द है आपकी रचना में ...!
    बहुत ही खूबसूरती से दर्द को व्यक्त किया है .

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  12. pahle lagta tha yeh ehsaas kya hai ?
    kyu kisi baat per mann khush aur kabhi udaas ho jata hai ?....

    Per jabse ehsaaso ke rishte jine lagi,
    Waqt badla, Soch badli...

    BAdal rupi tere Sapne Aankho main tairne lage,
    Mamta ki baarish bhigone lagi...

    Aur tab hua Savedna ka Ehsaas - Haaaa Ehsaas Dil ke dhadkne ka, Apno se pyaare apno ka, Naye Josh ka, Sukhe ko pyaar se sichit kar nayi Fasalo ka, Kuch KAr Gujarne ka...ILu...!

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  13. बहुत प्रभावशाली और भावपूर्ण रचना, बधाई स्वीकारें.

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  14. अच्छा है ...एक एहसास अपनत्व का..

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  15. एक हल्की बारिश .... यकीन दे जाती है
    अपने होने का !
    संवेदना का एहसास
    फिर कई सूखे को झेलने की तीव्रता दे जाता है

    बहुत गहन अहसास...सदैव की तरह एक भावपूर्ण उत्कृष्ट रचना..

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  16. पर जब जब तुमसे यूँ भी कुछ कहा है
    बादल का एक टुकड़ा आँखों में तैरने लगता है
    एक हल्की बारिश .... यकीन दे जाती है
    अपने होने का !
    संवेदना का एहसास
    फिर कई सूखे को झेलने की तीव्रता दे जाता है

    बहुत सुंदर......प्रभावित करते भाव....

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  17. ये संवेदनाएं ही हैं जो हमें जोड़े रहती हैं।

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  18. संवेदना जगाती शानदार कविता के लिए बहुत बधाई।

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  19. बादल का एक टुकड़ा आँखों में तैरने लगता है
    एक हल्की बारिश .... यकीन दे जाती है
    अपने होने का !.....

    बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
    शुभकामनायें !

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  20. बादल का एक टुकड़ा आँखों में तैरने लगता है
    एक हल्की बारिश .... यकीन दे जाती है
    अपने होने का !
    wah.kitna apna hota hai ye yakeen.

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  21. एक हल्की बारिश .... यकीन दे जाती है
    अपने होने का !
    संवेदना का एहसास
    फिर कई सूखे को झेलने की तीव्रता दे जाता है ...

    नेह में भीगे नैना , सूखा टिकता कहा तक !

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  22. क्या कहूं , एक संवेदनशील रचना या हृदय के कोमल उदगार बधाई

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  23. वक़्त बदलता है
    प्रकृति बदलती है
    सारी सोच खुद को बंजर घोषित कर देती है
    आँखें भी मेघविहीन हुईं ....

    सच कहा रश्मि जी धीरे धीरे तो ये चर्चा भी बंद हो जाती. खाली चर्चाओं से कुछ नहीं होता. वक्त के साथ नयी शरुआत करनी पड़ती है. सुंदर विचार और सुंदर कविता.

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  24. संवेदनशील रचना.
    शुभ कामनाएं.

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  25. .... पर जब जब तुमसे यूँ भी कुछ कहा है
    बादल का एक टुकड़ा आँखों में तैरने लगता है
    एक हल्की बारिश .... यकीन दे जाती है
    अपने होने का !

    bahut sundar panktiyan ! manav samvedanayen manav jeevan ka aham hissa hai !

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  26. एक हल्की बारिश ....
    यकीन दे जाती है
    अपने होने का !
    संवेदना का एहसास
    फिर कई सूखे को झेलने की तीव्रता दे जाता है

    बहुत बढ़िया !!!

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  27. संवेदना का एहसास
    फिर कई सूखे को झेलने की तीव्रता दे जाता है


    बेहद संवेदनशील कविता रश्मि जी. ऐसी सुन्दर रचना के लिए बधाई आपको.

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  28. खींच ले गई कविता अपने प्रवाह में एक तेज़ लहर सी।

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  29. पर जब जब तुमसे यूँ भी कुछ कहा है
    बादल का एक टुकड़ा आँखों में तैरने लगता है
    एक हल्की बारिश .... यकीन दे जाती है
    अपने होने का !
    संवेदना का एहसास
    फिर कई सूखे को झेलने की तीव्रता दे जाता है

    Behad sundar panktiyaan....

    जवाब देंहटाएं
  30. पर जब जब तुमसे यूँ भी कुछ कहा है
    बादल का एक टुकड़ा आँखों में तैरने लगता है
    एक हल्की बारिश .... यकीन दे जाती है
    अपने होने का !
    संवेदना का एहसास
    फिर कई सूखे को झेलने की तीव्रता दे जाता है

    Behad sundar panktiyaan....

    जवाब देंहटाएं
  31. पर जब जब तुमसे यूँ भी कुछ कहा है
    बादल का एक टुकड़ा आँखों में तैरने लगता है
    एक हल्की बारिश .... यकीन दे जाती है
    अपने होने का !

    वाह...क्या कहूँ...शब्द हीन हूँ...बेजोड़ रचना...

    नीरज

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  32. विचार प्रवाह के लहरों पर टपकती बूंदों संग भावनाओं की यह राह ना जाने कितनी दूर तलक अपने संग लेते चली गई।

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  33. "किसी चैनल पर
    इस तबाही का ज़िक्र कभी नहीं हुआ
    कभी किसी ने मर्म को छूना भी चाहा
    तो आलोचनाओं की चिंगारी ने
    उस स्पर्श को जला दिया "

    very touching....

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  34. भावुक कर देने वाली बेहतरीन प्रस्तुति ।

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  35. गहनतम अभिव्यक्ति , शब्द शब्द भावनाओ के वेग में प्रवाहित .

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  36. पर जब जब तुमसे यूँ भी कुछ कहा है
    बादल का एक टुकड़ा आँखों में तैरने लगता है
    एक हल्की बारिश .... यकीन दे जाती है
    अपने होने का !
    संवेदना का एहसास
    फिर कई सूखे को झेलने की तीव्रता दे जाता है.

    बड़ी अलंकारिक अभिव्यक्ति है इस कविता में. बहुत खूब.

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  37. किसी के एहसास से क्या कुछ हो जाता है ... लाजवाब ...

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एहसास

 मैंने महसूस किया है  कि तुम देख रहे हो मुझे  अपनी जगह से । खासकर तब, जब मेरे मन के कुरुक्षेत्र में  मेरा ही मन कौरव और पांडव बनकर खड़ा रहता...